बफर जोन में निर्माण मामले में हाईकोर्ट ने SDO को एक्टर रणदीप हुड्डा को जांच रिपोर्ट देने का निर्देश दिया

Update: 2024-07-20 05:42 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बफर जोन में निर्माण के आरोपों पर बॉलीवुड एक्टर रणदीप हुड्डा के खिलाफ जारी कारण बताओ नोटिस रद्द करने से इनकार किया। हालांकि, राजस्व अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे एक्टर को जांच रिपोर्ट की एक प्रति उपलब्ध कराएं तथा विवादित संपत्ति का संयुक्त रूप से निरीक्षण करें।

जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकल पीठ ने यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य बनाम कुनीसेट्टी सत्यनारायण, (2006) 12 एससीसी 28 के संदर्भ में पक्षकारों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि केवल कारण बताओ नोटिस के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

हालांकि, न्यायालय ने हुड्डा को निर्देश दिया कि वे कारण बताओ नोटिस के पीछे की जांच रिपोर्ट प्राप्त करने तथा शीघ्रता से मौके पर निरीक्षण करने के लिए 15 दिनों के भीतर SDO (राजस्व), बैहर, जिला बालाघाट के समक्ष आवेदन करें।

पीठ ने कहा,

"कारण बताओ नोटिस से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता को अपना मामला आगे रखने का अवसर दिया गया। याचिकाकर्ता ने यह दावा करते हुए अपना जवाब भी दाखिल किया कि उसने किसी भी तरह का कोई निर्माण नहीं किया। यह भी आश्वासन दिया कि यदि भविष्य में कोई निर्माण किया जाता है तो यह सभी आवश्यक/अनिवार्य अनुमति/मंजूरी लेने के बाद ही किया जाएगा।"

दिनांक 18.06.2024 को जारी कारण बताओ नोटिस में कहा गया कि हुड्डा ने बफर/कोर जोन में निर्माण के लिए विभिन्न विभागों से अनिवार्य मंजूरी प्राप्त किए बिना कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के पास की जमीन पर निर्माण किया।

चूंकि किसी भी निर्माण को बढ़ाने का तथ्य विवादित है, इसलिए अदालत ने कहा कि वह वर्तमान में मामले का निपटारा नहीं कर सकती। कारण बताओ नोटिस का फैसला SDO द्वारा प्रस्तावित स्पॉट निरीक्षण करने के 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए।

47 वर्षीय एक्टर-डायरेक्टर ने कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के पास जमीन का टुकड़ा खरीदा था। हुड्डा के वकील एडवोकेट सिद्धार्थ शर्मा के अनुसार, याचिकाकर्ता को अधिकारियों ने 'सस्ती लोकप्रियता हासिल करने' के लिए प्रताड़ित किया, क्योंकि वह फिल्म एक्टर हैं। इसके अलावा, एक्टर द्वारा उक्त भूमि पर एक भी ईंट नहीं रखी गई।

एक्टर को अनावश्यक रूप से परेशान करने के लिए 80 करोड़ रुपये के हर्जाने के लिए अधिकारियों को दीवानी मानहानि नोटिस पहले ही भेजा जा चुका है।

यह कहने के अलावा कि याचिका अपरिपक्व है, प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि हुड्डा को SDO के समक्ष कार्यवाही में अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा।

दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि निर्माण को रोकने के लिए अंतरिम निर्देश को अंतिम आदेश नहीं माना जा सकता, जिसे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी जा सकती है। SDO (राजस्व) एक जांच रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता-एक्टर सहित कुछ व्यक्तियों के खिलाफ अस्थायी निषेधाज्ञा आदेश जारी कर सकते हैं: इसे गुण-दोष के आधार पर निष्कर्ष नहीं माना जा सकता है।

न्यायालय ने SDO को निर्देश दिया कि एक्टर द्वारा उक्त प्रयोजन के लिए आवेदन किए जाने के 3 दिन के भीतर याचिकाकर्ता को जांच रिपोर्ट की कॉपी उपलब्ध कराई जाए। इसी प्रकार, याचिकाकर्ता-एक्टर सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्थल निरीक्षण के लिए SDO के समक्ष एक और आवेदन प्रस्तुत करने के हकदार होंगे।

एकल न्यायाधीश पीठ ने स्पष्ट किया,

“SDO (राजस्व), बैहर, जिला बालाघाट द्वारा निर्धारित तिथि सभी प्राधिकारियों के साथ-साथ याचिकाकर्ता पर भी बाध्यकारी होगी। यदि याचिकाकर्ता या उनके अधिकृत व्यक्ति स्थल निरीक्षण में भाग लेने में विफल रहते हैं तो याचिकाकर्ता को यह दावा करने का कोई अधिकार नहीं होगा कि स्थल निरीक्षण उनकी या उनके अधिकृत व्यक्ति की अनुपस्थिति में किया गया।”

इस बीच हुड्डा स्थल निरीक्षण पूरा होने के 3 दिन के भीतर इसे चुनौती दे सकेंगे। न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि जांच रिपोर्ट के अनुसरण में शुरू की गई कार्यवाही स्थल निरीक्षण रिपोर्ट प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।

राज्य ने जब प्रस्तुत किया कि यह संभव है कि SDO (राजस्व) ने याचिकाकर्ता को 19.06.2024 को जवाब दाखिल करने के लिए अनिवार्य करने के बाद 18.06.2024 को कारण बताओ नोटिस पर अंतिम आदेश जारी कर दिया हो तो अदालत ने याचिकाकर्ता को अपील करने की स्वतंत्रता प्रदान की।

अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा,

"चूंकि कारण बताओ नोटिस की वर्तमान स्थिति स्पष्ट नहीं है, इसलिए यह देखा गया कि यदि अंतिम आदेश पहले ही पारित हो चुका है तो उपरोक्त अवलोकन अपीलीय प्राधिकरण पर भी लागू होंगे। यदि अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष आवश्यक आवेदन किए जाते हैं तो अपीलीय प्राधिकरण आवश्यक आदेश पारित करेगा।"

राज्य की ओर से एडवोकेट मोहन सौसरकर पेश हुए।

केस टाइटल: रणदीप हुड्डा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

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