डिफॉल्ट बेल' कब मिल सकती है? : राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य मामले का विश्लेषण

Update: 2024-10-23 11:36 GMT

राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य का मामला डिफॉल्ट बेल और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) की धारा 167(2) की व्याख्या पर आधारित है।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उन परिस्थितियों पर ध्यान दिया जब जांच समय पर पूरी नहीं होती और अभियुक्त को बिना चार्जशीट (Chargesheet) दाखिल किए हिरासत में रखा जाता है। इस मामले का मुख्य बिंदु यह था कि जब अभियोजन पक्ष जांच पूरी करने में असफल रहता है, तो क्या अभियुक्त को डिफॉल्ट बेल का अधिकार मिलना चाहिए।

मुख्य प्रावधान (Key Legal Provision): धारा 167(2) Cr.P.C.

धारा 167(2) Cr.P.C. में यह निर्धारित किया गया है कि किसी अभियुक्त को कितने दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है:

• 90 दिन, यदि अपराध मृत्यु, आजीवन कारावास (Life Imprisonment), या कम-से-कम दस साल की सजा का प्रावधान रखता है।

• 60 दिन, यदि अपराध की सजा इससे कम अवधि की हो।

मामले में प्रश्न यह था कि क्या कथित अपराध कम-से-कम 10 साल की सजा की श्रेणी में आता है, जिससे यह निर्धारित हो सके कि अभियुक्त को हिरासत में 60 दिन तक रखा जा सकता है या 90 दिन की अवधि का प्रावधान लागू होगा।

मुख्य मुद्दा (Fundamental Issue): “दस साल से कम नहीं” (Imprisonment for a Term Not Less Than Ten Years) की व्याख्या

इस मामले में, अदालत को “दस साल से कम नहीं” (Not Less Than Ten Years) के अर्थ की व्याख्या करनी पड़ी। इसमें यह प्रश्न था कि क्या ऐसे अपराध, जिनमें अधिकतम सजा 10 साल तक हो सकती है लेकिन अनिवार्य न्यूनतम सजा (Minimum Sentence) नहीं है, भी 90 दिन की हिरासत के नियम में आएंगे।

पिछले निर्णय, जैसे कि राजीव चौधरी बनाम दिल्ली राज्य (2001), में अदालत ने कहा था कि "दस साल से कम नहीं" का अर्थ तभी लागू होता है जब अपराध के लिए न्यूनतम 10 साल की सजा का प्रावधान हो। यदि किसी अपराध में सिर्फ 10 साल तक की सजा का प्रावधान है, तो उसे 60 दिन की हिरासत के प्रावधान में रखा जाएगा, न कि 90 दिन के प्रावधान में।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता और डिफॉल्ट बेल (Personal Liberty and Default Bail): एक अनिवार्य अधिकार (Indefeasible Right)

व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है। अदालत ने कहा कि चार्जशीट दाखिल करने के लिए समय-सीमा का पालन करना आवश्यक है ताकि अभियुक्त को अनावश्यक रूप से हिरासत में न रखा जाए।

यदि 60 या 90 दिन की निर्धारित अवधि के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं होती, तो अभियुक्त को डिफॉल्ट बेल का अधिकार स्वतः मिल जाता है। यह अधिकार तब भी मिलता है जब अभियुक्त इस बेल के लिए आवेदन करे और उचित बेल बॉन्ड (Bail Bond) पेश करने को तैयार हो।

इस मामले में अदालत ने जोर देकर कहा कि डिफॉल्ट बेल का अधिकार केवल इसलिए खत्म नहीं हो सकता क्योंकि अभियोजन पक्ष ने बाद में चार्जशीट दाखिल कर दी। अदालतों को इस अधिकार के बारे में अभियुक्त को सूचित करना चाहिए और तकनीकी कारणों से इस अधिकार को नकारा नहीं जा सकता।

प्रासंगिक निर्णय (Relevant Judgments)

इस निर्णय में कई पूर्व के मामलों का उल्लेख किया गया है ताकि कानूनी व्याख्या में मार्गदर्शन मिल सके।

• भूपिंदर सिंह बनाम जरनैल सिंह (2006) के मामले में, अदालत ने विभिन्न सजा प्रावधानों के बीच अंतर स्पष्ट किया था, खासकर धारा 304-B (दहेज मृत्यु) के तहत, जहां न्यूनतम सजा 7 साल और अधिकतम आजीवन कारावास तक हो सकती है।

• अदालत ने राजीव चौधरी के फैसले को अधिक स्वीकार्य माना और कहा कि जब भी किसी प्रावधान में “दस साल से कम नहीं” लिखा हो, तो इसका मतलब स्पष्ट रूप से 10 साल या उससे अधिक की सजा होनी चाहिए।

अदालत का निष्कर्ष (Court's Conclusion)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राकेश कुमार पॉल को 60 दिन पूरे होने के बाद डिफॉल्ट बेल का अधिकार था, क्योंकि उनकी हिरासत के दौरान कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की गई थी। चूंकि उन पर लगे अपराध की न्यूनतम सजा 10 साल नहीं थी, इसलिए 90 दिन की अवधि का नियम उन पर लागू नहीं होता था।

अदालत ने यह भी कहा कि अगर एक बार डिफॉल्ट बेल का अधिकार उत्पन्न हो गया, तो उसे चार्जशीट दाखिल करके समाप्त नहीं किया जा सकता। अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियुक्त को इस अधिकार के बारे में समय पर सूचित किया जाए।

व्यापक प्रभाव (Broader Implications)

यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोपरि है और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन सख्ती से किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि अभियुक्त को हिरासत में रखना केवल तभी उचित है जब जांच एजेंसी समय पर चार्जशीट दाखिल करे। अदालतों और अभियोजन पक्ष को यह भी हिदायत दी गई कि वे डिफॉल्ट बेल देने में कोई बहाना न बनाएं।

राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य का यह निर्णय डिफॉल्ट बेल के कानून की महत्वपूर्ण व्याख्या करता है। यह स्पष्ट करता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान न्यायिक प्रणाली की प्राथमिकता होनी चाहिए और कानूनी समय-सीमाओं का पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि डिफॉल्ट बेल का अधिकार अभियुक्त का एक अनिवार्य अधिकार है, जिसे किसी भी तकनीकी कारण से रोका नहीं जा सकता।

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