
इस अधिनियम की धारा 14 Negotiation को परिभाषित करती है, जबकि वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक किसी व्यक्ति को ऐसे अन्तरित कर दिया जाता है कि वह व्यक्ति उसका धारक हो जाता है तब यह कहा जाता है कि वह उसमें पृष्ठांकित करता है और वह पृष्ठांकक कहलाता है। इस प्रकार लिखत का Negotiation केवल लिखत के सम्पत्ति का (स्वामित्व) का अन्तरण होता है जिसके अधीन कोई व्यक्ति इसका धारक हो जाता है।
Negotiation लिखत का सबसे प्रमुख लक्षण उसकी परक्राम्यता का है । इसका संकल्पनीय पहलू अन्तरणीयता के सम्बन्ध में समझा जा सकता है। सभी स्थावर एवं गैर-स्थावर सम्पत्ति का प्रमुख लक्षण विक्रय, बन्धक, गिरवी, अदला-बदली, दान, पट्टा, समनुदेशन इत्यादि के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अन्तरित होने का है। उक्त सभी अभिव्यक्ति भिन्न अर्थ एवं विधिक प्रभाव की होती हैं।
कोई सम्पत्ति सामान्य रूप में अन्तरित की जा सकती है जहाँ स्वामित्व का अन्तरण होता है या विशेष अर्थ में जहाँ स्वामित्व नहीं, बल्कि केवल कब्जा का अन्तरण होता है।
हालांकि "Negotiation " समान भाव में लिया जाता है, क्योंकि दोनों में स्वामित्व का अन्तरण होता है फिर भी विधिक अर्थ एवं परिणाम भिन्न होते हैं।
इस प्रकार "Negotiation " केवल वचन पत्र, विनिमय पत्र एवं चेक के सम्बन्ध में प्रयुक्त किया जाता है और इसका कार्य इनको किसी व्यक्ति को अन्तरित करना है जिससे वह व्यक्ति इसका धारक बन जाए। अतः यहाँ पर ऐसे व्यक्ति को धारक बनाने का आशय होना चाहिए और जहाँ यह नहीं होता है केवल इसे दूसरे को देना Negotiation नहीं होगा जैसे चेक को उगाही के लिए बैंक को देने या सुरक्षित करने के लिए लिखतों को अभिकर्ता या सेवक को देना।
उदाहरण के लिए 'क' एक चेक को उगाही (वसूली के लिए बैंक को देता है। यह Negotiation नहीं होगा, परन्तु यदि 'क' इसे बैंक के नाम से पृष्ठांकित कर बैंक को परिदन कर देता है, Negotiation है।
इंग्लिश विल्स ऑफ एक्सचेंज अधिनियम, 1882 की धारा 31 के अनुसार "एक बिल परक्रामित किया गया है जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को इसे इस तरह से अन्तरित करता है कि अन्तरिती बिल का धारक बन जाए।
यह ध्यान देने योग्य है कि इंग्लिश विधि में बिल को भारतीय विधि के परक्राम्य लिखत के हो समान माना जाता है। एक लिखत निम्नलिखित दो तरह से अन्तरित हो सकता है
Negotiation द्वारा परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अधीन।
समनुदेशन द्वारा सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 130 के अधीन।
"अन्तरण" एवं "Negotiation " में अन्तर-
"अन्तरण" शब्द को सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अधीन स्थावर एवं गैर-स्थावर सम्पत्तियों के सम्बन्ध में प्रयुक्त किया जाता है, जबकि Negotiation " को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के सम्बन्ध में केवल लिखतों के सम्बन्ध में प्रयुक्त किया जाता है। "अन्तरण" शब्द बहुत ही विस्तृत है और यह सभी प्रकार की सम्पत्तियों के सम्बन्ध में प्रयुक्त होता है जो लैटिन सूत्र "Nemo dat quod non habet" कोई भी व्यक्ति अपने से बेहतर स्वत्व अन्तरित नहीं कर सकता" से शासित होता है जिसे माल विक्रय अधिनियम, 1930 की धारा 27 में उपबन्धित किया गया है।
धारा 27 के अनुसार "एक विक्रेता अपने से बेहतर स्वत्व जो वह स्वयं रखता है, अन्तरित नहीं कर सकता है। सभी अन्तरण इस सिद्धान्त से शासित होते हैं।
उदाहरण के लिए 'अ', 'ब' से एक घड़ी क्रय करता है जिसे उसने 'स' से चुरायी है। अ ने इसकी जानकारी के प्रतिफल के साथ 'ब' से क्रय किया है फिर भी 'अ', 'स' को घढ़ी वापस करने को बाध्य होगा। अत: 'स' घड़ी को 'अ' से वापस ले सकेगा।
यह सामान्य सिद्धान्त स्थावर एवं गैर-स्थावर सभी प्रकार की सम्पत्तियों के सम्बन्ध में चाहे विक्रय बन्धक, गिरवी, दान आदि हो, पर प्रयोज्य होता है। परन्तु परक्राम्य लिखत इस अन्तरणीयता के सामान्य सिद्धान्त के अपवाद होते हैं परक्राम्य लिखत परिदान या पृष्ठांकन एवं परिदान से अन्तरित होते हैं। इस प्रकार, एक व्यक्ति जो परक्राम्य लिखत को कब्जे में रखता है किसी भी व्यक्ति को अन्तरित कर सकता है यहाँ तक कि अन्तरक सही स्वामी के साथ कपट कारित कर या यहाँ तक कि वह स्वामी नहीं है इसे अन्तरित कर सकेगा।
उदाहरण के लिए 'अ' ने एक चेक चुराया और इसे 'ब' को अन्तरित करता है जो प्रतिफल सहित एवं 'अ' के चोरी के तथ्य को नहीं जानता है, 'ब' को अच्छी स्वामित्व लिखत का प्राप्त हो जाएगा। इसे अच्छा प्रतिफल होगा और यह एक सम्यक् अनुक्रम धारक का विशेष अधिकार होगा।
इन दोनों में अन्य अन्तर है कि "अन्तरण" शब्द को सभी प्रकार की सम्पत्तियों के सम्बन्ध में प्रयुक्त किया जाता है जिसमें परक्राम्य लिखत भी सम्मिलित है, परन्तु " परक्राम्य" शब्द केवल लिखतों के सम्बन्ध में प्रयुक्त होता है। सभी प्रकार की सम्पत्तियों के अन्तरण केवल गैर-स्थावर सम्पत्तियों के विक्रय एवं गिरवी को छोड़कर सम्पत्ति अन्तरण से शासित होते हैं, परन्तु लिखतों को परक्राम्यता परक्राम्य अधिनियम, 1881 से शासित होती है।
"परक्राम्यता" एवं "समनुदेशन" में अन्तर-
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 130 यह स्पष्ट करती है कि वाद योग्य दावे भी अन्तरणीय सम्पत्ति होते हैं और यह धारा वाद योग्य दावों के अन्तरण के तरीके को स्पष्ट करती है।
इस धारा के अनुसार वाद योग्य दावों का अन्तरण प्रतिफल या बिना प्रतिफल के साथ लिखित विलेख से ही किया जाएगा। ऐसा विलेख अन्तरक या उसके अधिकृत अभिकर्ता से सम्यक् रूप में हस्ताक्षरित होगा। मौखिक समनुदेशन किसी वाद योग्य दावे का नहीं हो सकता है। यहाँ तक कि इसका रजिस्ट्रेशन भी आवश्यक नहीं होगा। यद्यपि कि सम्पत्ति अन्तरण की धारा 137 परक्राम्य लिखतों को इस अध्याय के उपबन्धों के प्रभाव से उन्मुक्त करती है फिर भी परक्राम्य लिखत वाद योग्य दावे होने के नाते इसे समनुदेशन भी किया जा सकता है।
जब एक व्यक्ति किसी ऋण के संदाय पाने के अधिकार का अन्तरण करता है, इसे समनुदेशन कहते हैं। जीवन बीमा पॉलिसी का धारक इसके अधीन संदाय पाने के अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को अन्तरित कर सकता है, यही समनुदेशन है। जब कोई वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक का धारक इसके अधीन संदाय पाने के अधिकार को अन्तरित करता है तो यह समनुदेशन होता है। इस प्रकार "Negotiation " एवं "समनुदेशन" दोनों में किसी कर्ज के संदाय पाने के अधिकार में सन्निहित होता है। इन दोनों में यही समानता है, परन्तु "Negotiation " के अधीन अन्तरिती का अधिकार एक समनुदेशिती से श्रेष्ठ होता है।
यद्यपि कि इन दोनों में निम्नलिखित अन्तर होता है-
स्वत्व के सम्बन्ध में एक लिखत का अन्तरिती साम्या से स्वतंत्र अधिकार प्राप्त करता है। अर्थात् एक स्वत्व जो पूर्व के स्वामी के सभी दोषों से स्वतंत्र होता है। परन्तु एक ऋण का समनुदेशिती इसे समनुदेशक के विद्यमान सभी दोषों के साथ प्राप्त करता है।
उदाहरण के लिए 'अ' एक चेक 'ब' से प्रतिफल सहित बिना इस संज्ञान के कि उसने इसे 'स' से चुराया है, प्राप्त करता है। 'अ' एक स्वतंत्र स्वत्व प्राप्त करेगा Negotiation की दशा में 'अ' का स्वत्य 'ब' के स्वत्व सम्बन्धी दोष से प्रभावित होगा।
प्रतिफल की उपधारणा Negotiation के सम्बन्ध में धारक के पक्ष में बहुत सी उपधारणाएं अधिनियम की धारा 118 में होती हैं। उदाहरण के लिए धारक के प्रति यह उपधारणा होती है कि उसने लिखत को प्रतिफल सहित प्राप्त किया है। विरोधी पक्ष पर यह साबित करने का भार होता है कि उसने प्रतिफल नहीं दिया है। परन्तु ऐसी उपधारणा समनुदेशिती के पक्ष में नहीं होती है।
अन्तरण का तरीका लिखत का Negotiation कोई अन्य औपचारिकता की अपेक्षा नहीं करता केवल वाहक लिखत की दशा में परिदान एवं आदेशित लिखत की दशा में पृष्ठांकन एवं परिदान। परन्तु धारा 130 (सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम) के अधीन समनुदेशन के लिए एक लिखित अभिलेख का निष्पादन अन्तरक द्वारा हस्ताक्षरित एवं स्टाम्प ड्यूटी का संदाय अपेक्षित करता है।
अन्तरण की सूचना- एक समनुदेशन तभी ऋणी को बाध्य बनाता है जब इसकी (समनुदेशन की) उसे सूचना दी गई है और उसने अभिव्यक्त या विवक्षित तरीके से इसकी सहमति दी हो। Negotiation में ऐसे अन्तरण की सूचना ऋणी को देना अनावश्यक होता है।
स्टाम्पिंग की अपेक्षा Negotiation में स्टाम्प शुल्क अपेक्षित नहीं होता, जबकि समनुदेशन में अपेक्षित होता है।
Negotiation कैसे किया जाता है:– इंग्लिश विल ऑफ एक्सचेंज एक्ट की धारा 31 लिखतों के Negotiation के निम्न दो तरीकों का उपबन्ध करती है-
परिदान द्वारा जहाँ लिखत वाहक को देय है।
पृष्ठांकन एवं परिदान द्वारा जहाँ लिखत आदेशित देय है।
इसी प्रकार का प्रावधान परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 को धारा 46 में उपबन्धित है। इसके अनुसार एक वाहक को देय वचन पत्र, या चेक उसके परिदान द्वारा परक्राम्य है।
'आदेशानुसार देय वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक धारक द्वारा उसके पृष्ठांकन और परिदान द्वारा परक्राम्य है।"