राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 11 के तहत उचित शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया

Update: 2025-03-29 11:28 GMT
राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 11 के तहत उचित शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया

न्यायालय में मुकदमा दायर करने की प्रक्रिया में उचित कोर्ट फीस (Court Fee) का भुगतान आवश्यक होता है। राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) के तहत, किसी भी मुकदमे में उचित शुल्क के निर्धारण की जिम्मेदारी न्यायालय की होती है। इस संबंध में धारा 11 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायालय को यह तय करने का अधिकार देता है कि मुकदमे के लिए सही कोर्ट फीस क्या होनी चाहिए। यह धारा यह भी स्पष्ट करती है कि यदि कोई पक्षकार मुकदमे की विषय-वस्तु (Subject Matter) के मूल्यांकन को लेकर आपत्ति करता है, तो न्यायालय को इस पर निर्णय लेना होगा।

धारा 11(1): न्यायालय द्वारा उचित शुल्क का निर्धारण (Court's Determination of Proper Fee)

धारा 11 के पहले उपखंड में कहा गया है कि जब भी किसी न्यायालय में कोई मुकदमा दायर किया जाता है, तो न्यायालय को वादपत्र (Plaint) में दिए गए तथ्यों और धारा 10 के अंतर्गत प्रस्तुत किए गए विवरणों (Statement of Particulars) के आधार पर उचित कोर्ट फीस का निर्धारण करना होगा। यह निर्णय न्यायालय द्वारा मुकदमे को पंजीकृत (Register) करने से पहले किया जाएगा।

हालांकि, यह निर्णय अंतिम नहीं होता, और इसे पुनः परीक्षण (Review) या संशोधन (Correction) किया जा सकता है। यदि बाद में यह पाया जाता है कि न्यायालय ने गलत शुल्क निर्धारित किया है, तो इसे बदला जा सकता है। यह प्रावधान न्यायालय को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि वादी (Plaintiff) द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर शुल्क की सही गणना हो।

धारा 11(2): प्रतिवादी द्वारा आपत्ति का अधिकार (Right of Defendant to Object)

किसी भी मुकदमे में, प्रतिवादी (Defendant) को यह अधिकार होता है कि वह यह आपत्ति कर सके कि:

1. मुकदमे की विषय-वस्तु का उचित मूल्यांकन नहीं किया गया है।

2. वादी द्वारा जमा किया गया शुल्क पर्याप्त नहीं है।

यदि कोई प्रतिवादी ऐसी आपत्ति करता है, तो न्यायालय को इन मुद्दों पर मुकदमे की मुख्य सुनवाई (Main Hearing) से पहले निर्णय लेना होगा। यह प्रक्रिया सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) के आदेश XVIII (Order XVIII) के अनुसार होगी।

यदि न्यायालय यह तय करता है कि मुकदमे की सही मूल्यांकन नहीं किया गया है या शुल्क पर्याप्त नहीं है, तो न्यायालय वादी को निर्देश देगा कि वह वादपत्र में आवश्यक संशोधन करे और निर्धारित शुल्क जमा करे। इसके लिए न्यायालय एक समय सीमा तय करेगा।

यदि वादी इस समय सीमा के भीतर वादपत्र में संशोधन नहीं करता या शेष शुल्क जमा नहीं करता, तो न्यायालय वादपत्र को खारिज (Reject) कर सकता है। इसके अलावा, न्यायालय यह भी तय करेगा कि मुकदमे की लागत (Cost) किसे वहन करनी होगी।

धारा 11(3): नए प्रतिवादी द्वारा आपत्ति (Objection by Newly Added Defendant)

यदि मुकदमे में नए प्रतिवादी को जोड़ा जाता है, तो वह भी अपने लिखित बयान (Written Statement) में यह आपत्ति कर सकता है कि मुकदमे की विषय-वस्तु का सही मूल्यांकन नहीं किया गया है या कोर्ट फीस पर्याप्त नहीं है।

हालांकि, यह आपत्ति तभी सुनी जाएगी जब मुकदमे में उस प्रतिवादी से संबंधित साक्ष्य (Evidence) दर्ज करने से पहले यह मुद्दा उठाया जाए। यदि न्यायालय पाता है कि मुकदमे की विषय-वस्तु का उचित मूल्यांकन नहीं हुआ या शुल्क पर्याप्त नहीं है, तो वही प्रक्रिया अपनाई जाएगी जो उपखंड (2) में दी गई है।

स्पष्टीकरण (Explanation)

इस उपखंड में एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया गया है कि यदि कोई नया प्रतिवादी केवल किसी पूर्व प्रतिवादी का उत्तराधिकारी (Successor) या प्रतिनिधि (Representative in Interest) है, तो वह इस आधार पर आपत्ति नहीं कर सकता कि मुकदमे की विषय-वस्तु का उचित मूल्यांकन नहीं हुआ या शुल्क पर्याप्त नहीं है। यदि पहले से मुकदमे में शामिल प्रतिवादी को यह अवसर दिया गया था कि वह इस मुद्दे पर आपत्ति कर सके, तो उसके उत्तराधिकारी को यह अधिकार नहीं होगा।

उदाहरण (Illustrations)

उदाहरण 1: राम ने श्याम के खिलाफ संपत्ति के स्वामित्व को लेकर मुकदमा दायर किया और संपत्ति का मूल्य 10 लाख रुपये बताया। न्यायालय ने धारा 11(1) के तहत इस मूल्यांकन को सही मानकर शुल्क निर्धारित किया। लेकिन मुकदमे के दौरान, श्याम (प्रतिवादी) ने धारा 11(2) के तहत आपत्ति की कि संपत्ति का बाजार मूल्य 20 लाख रुपये है और शुल्क कम जमा किया गया है। न्यायालय ने इस मुद्दे पर पहले सुनवाई की और पाया कि वादी द्वारा गलत मूल्यांकन किया गया था। इस कारण, राम को अतिरिक्त शुल्क जमा करने का आदेश दिया गया।

उदाहरण 2: मुकदमे की सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने मुकदमे में गीता को एक नए प्रतिवादी के रूप में जोड़ा। गीता ने अपने लिखित बयान में आपत्ति की कि मुकदमे की सही मूल्यांकन नहीं हुआ है। न्यायालय ने इस मुद्दे को सबूत दर्ज होने से पहले हल किया और पाया कि शुल्क कम जमा किया गया था। वादी को संशोधन और अतिरिक्त शुल्क जमा करने के लिए समय दिया गया।

धारा 11, राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के तहत एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि न्यायालय में दाखिल किए गए मुकदमों के लिए उचित शुल्क निर्धारित हो। यह न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह वादपत्र की विषय-वस्तु और प्रस्तुत विवरणों के आधार पर शुल्क निर्धारित करे। साथ ही, प्रतिवादी को यह अधिकार देता है कि वह मूल्यांकन और शुल्क के संदर्भ में आपत्ति कर सके।

यदि न्यायालय को यह लगता है कि वादी ने गलत मूल्यांकन किया है या कम शुल्क जमा किया है, तो उसे संशोधन करने का अवसर दिया जाता है। यदि वादी इसे पूरा करने में असफल रहता है, तो न्यायालय वादपत्र को खारिज कर सकता है। यह प्रावधान न्यायालय में पारदर्शिता बनाए रखने और उचित न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। भाग 2 में धारा 11 के शेष प्रावधानों को विस्तार से समझाया जाएगा।

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