
वाहक को देय लिखत का पृष्ठांकन एक वाहक को देय लिखत के Negotiation के लिए पृष्ठांकन की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे वाहक को देय लिखत का Negotiation धारा 46 के अनुसार केवल परिदान के द्वारा पूर्ण हो जाता है। परन्तु विधि में किसी वाहक के देय लिखत के धारक को पृष्ठांकन करने से प्रतिबन्धित नहीं किया गया है। यदि इसका पृष्ठांकन किया जाता है तो तत्पश्चात् इसका परिदान किया जाना आवश्यक होगा, क्योंकि परिदान के बिना पृष्ठांकन पूर्ण नहीं होता है यद्यपि कि व्यवहार में एक वाहक लिखत के धारण को चेक का संदाय लेने के पूर्व इसका पृष्ठांकन करने का अनुरोध करता है।
इस प्रकार केवल उसे पहचान करने के प्रयोजन से कि ऐसा व्यक्ति संदाय प्राप्त कर रहा है, यह भुगतान कर दिया गया कि वाउचर के रूप में प्रयुक्त होता है। बैंक 500 रुपए से अधिक की धनराशि की दशा में क्षतिपूरक बान्ड की भी अपेक्षा कर सकता है। लेकिन यहाँ पर एक वाहक चेक के धारक को संदाय लेने के पूर्व पृष्ठांकन करने के लिए बैंक बाध्य नहीं कर सकता है।
पृष्ठांकन द्वारा- अधिनियम की धारा 15 पृष्ठांकन को परिभाषित करती है जिसका सामान्य अर्थ पृष्ठांकक द्वारा लिखत के पृष्ठ पर अन्तरण के प्रयोजन से हस्ताक्षर करना होता है। जहाँ पृष्ठ पर रिक्त स्थान नहीं है वहाँ पृष्ठांकन लिखत से सम्बद्ध एक कागज पर कराया जाता है जिसे Allonge कहते हैं जो लिखत का भाग बन जाता है।
पृष्ठांकन आदेशित देय लिखत को अन्तरण करने का एक तरीका है। पृष्ठांकन को अलग किया गया है।
परिदान – वाहक या आदेशित देय लिखत का पृष्ठांकन उसके परिदान से पूर्ण होता है। परिदान नहीं Negotiation नहीं-एक पृष्ठांकन लिखत को उसके पृष्ठांकिती को परिदान से पूर्ण होता है।
इंग्लिश विधि के अन्तर्गत “एक बिल पर हर संविदा चाहे लेखक के प्रतिग्रहीता के या पृष्ठांकक के हो अपूर्ण एवं विखण्डनीय हैं, जब तक लिखत का परिदान इसे प्रभावी बनाने के लिए न किया जाय। पुनः एक पृष्ठांकन से अभिप्राय एक पृष्ठांकन जो परिदान में पूर्ण हो।
इस प्रकार, बिना परिदान के पृष्ठांकन अपूर्ण एवं निष्प्रभावी होता है। विधिक प्रतिनिधि Negotiation को पूर्ण नहीं कर सकते। अधिनियम की धारा 57 में यह उपबन्धित करती है-
"आदेशानुसार देय और मृतक द्वारा पृष्ठांकित, किन्तु अपरिदत्त वचन पत्र, विनिमय पत्र या चैक को मृतक का विधिक प्रतिनिधि केवल परिदान द्वारा परक्रामित नहीं कर सकता है।"
यह धारा इस तथ्य का स्पष्टीकरण है कि पृष्ठांकक, पृष्ठांकन करने के पश्चात् इस लिखत को पृष्ठांकिती को अवश्य परिदत्त करे और जहाँ पृष्ठांकक की पृष्ठांकन करने के पश्चात् लिखत को परिदत करने के पूर्व मृत्यु हो जाती है तो पृष्ठांकन प्रभावी और बाध्यकारी नहीं होगा और मृतक के विधिक प्रतिनिधि पृष्ठांकन को परिदान द्वारा पूर्ण नहीं बना सकेंगे।
उदाहरण के लिए 'अ' एक आदेशित देय चेक 'ब' को पृष्ठांकित करता है। पृष्ठांकन के पश्चात् वह चेक को टेबुल के ड्रावर में रख देता है और मर जाता है। इसके पश्चात् 'अ' का विधिक उत्तराधिकारी इसे पाता है और ब को परिदत्त कर देता है। 'ब' बैंक से संदाय की मांग करता है जिसे बैंक मना कर देता है, क्योंकि पृष्ठांकन पूर्ण नहीं है 'ब' संदाय के लिए वाद लाता है वह सफल नहीं होगा।
इसी प्रकार एक व्यक्ति जो सम्यक् रूपेण पृष्ठांकित चेक़ को चुराता है या खोने पर पाता है, लिखत पर कोई अधिकार प्राप्त नहीं करता है। जहाँ पृष्ठांकक किसी लिखत को डाक से भेजने के लिए अधिकृत है, लिखत पृष्ठांकितों को परिदत्त मान लिया जाएगा जैसे ही इसे पोस्ट किया जाता है और यह त्वहीन होगा कि चेक पोस्ट में चोरी चला जाता है और चोर इसे नकद करा लेता है।
बम्बई हाईकोर्ट के समक्ष एक मामले में पाने वाले को एक बैंक ड्राफ्ट डाक से भेजने के पश्चात् भेजने वाले ने इसका भुगतान न करने का निदेश बैंक को भेजा कोर्ट ने यह धारित किया कि ड्राफ्ट को भेजने के पश्चात् भेजने वाला भुगतान को रद्द करने का निर्देश नहीं दे सकता, क्योंकि ड्राफ्ट को परिदान पाने वाले को देने के पश्चात् पृष्ठांकन पूर्ण हो जाता है। जब ड्राफ्ट को पोस्ट कर दिया गया तो इसका परिदान उसी समय पृष्ठांकिती को हो गया। बम्बई हाईकोर्ट ने जगदीश मिल्स लि० बनाम सी० आई० टोड के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित विधि सिद्धान्त के अनुसरण में निर्णय दिया है।
पृष्ठांकन सही होना चाहिए एवं कूटरचित नहीं होना चाहिए। जहाँ कोई व्यक्ति कूटरचित लिखत प्राप्त करता है, यह एवं पक्षकार जो लिखत को प्राप्त करते हैं, स्वत्व प्राप्त नहीं करते। परन्तु जहाँ कोई लिखत सम्यक् रूप में पृष्ठांकित है जिसे कोई व्यक्ति इसे चुराता है या पाता है या जिसे यह पृष्ठांकक के प्राधिकार के बिना परिदत्त किया जाता है, वह एक अच्छा स्वत्व किसी सदभाव पूर्वक पृष्ठांकिती को प्रदान कर सकेगा।
रद्द करना या विखण्डन एक पृष्ठांकन को पृष्ठांकिती को परिदत्त करने के पूर्व रद या विखण्डित किया जा सकता है। पृष्ठांकिती को लिखत का परिदान पृष्ठांकन को पूर्ण एवं बाध्य बनाता है जिसे तत्पश्चात विखंडित नहीं किया जा सकता है।
धारा 58 के उपबन्धों के अधीन धारा 47 एवं 48 का प्रारम्भिक वाक्य प्रारम्भ होता है कि धारा 58 के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए इसका अर्थ है कि धारा 47 एवं धारा 48 के अधीन पृष्ठांकन धारा 58 के अध्यधीन है।
धारा 58 विधिविरुद्ध साधनों द्वारा या विधिविरुद्ध प्रतिफलार्थ अभिप्राप्त लिखत- इसके अनुसार
"जबकि परक्राम्य लिखत खो गई है या उसके किसी रचयिता प्रतिग्रहीता या धारक से अपराध या कपट द्वारा या विधिविरुद्ध प्रतिफल के लिए अभिप्राप्त की गई है तब जिस व्यक्ति ने लिखत को पाया था या ऐसे अभिप्राप्त किया था उससे व्युत्पन्न अधिकार से दावा करने वाला कोई कब्जाधारी या पृष्ठांकिती उस पर शोध्य रकम को ऐसे रचयिता, प्रतिग्रहीता या धारक से या ऐसे धारक के पूर्विक किसी भी पक्षकार से उस दशा के सिवाय प्राप्त करने का हकदार नहीं है, जिसमें कि ऐसा कब्जाधारी या पृष्ठांकिती या वह कोई व्यक्ति, जिसमें व्युत्पन्न अधिकार से यह दावा करता है, उसका सम्यक अनुक्रम धारक है या था।"