मध्यस्थता कड़वाहट कम करती है, बोझ बांटती है और टूटे हुए रिश्तों में आशा का संचार करती है: जस्टिस सूर्यकांत
शनिवार को भुवनेश्वर में आयोजित दूसरे राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस सूर्यकांत ने न्याय प्रदान करने में मध्यस्थता की परिवर्तनकारी भूमिका पर प्रकाश डाला, जो अदालती फैसलों से कहीं आगे जाती है। उद्घाटन सत्र में बोलते हुए उन्होंने कलिंग की ऐतिहासिक धरती से प्रेरणा लेते हुए कहा कि सच्ची ताकत ताकत में नहीं, बल्कि संवाद में निहित है, जो घाव भरता है, पुनर्स्थापित करता है और जोड़ता है।
जस्टिस कांत ने कहा,
"समकालीन विवाद शायद ही कभी सरल होते हैं। अदालतें कानूनी जवाब दे सकती हैं। हालांकि, मानवीय संघर्ष की गहरी धाराएँ अक्सर अनसुलझी रह जाती हैं। लोग केवल एक फैसला नहीं, बल्कि आगे बढ़ने का एक रास्ता चाहते हैं। मध्यस्थता वह संभावना प्रदान करती है, क्योंकि यह किसी मामले को सुलझाने से कहीं अधिक करती है। यह ऐसे समाधान को बढ़ावा देती है जो स्थायी हों।"
"मध्यस्थता के गणित" के रूपक का उपयोग करते हुए उन्होंने समझाया कि जहां कुछ विवादों का कोई समाधान या केवल एक ही परिणाम सामने आता है, वहीं मध्यस्थता कई संभावनाओं के द्वार खोलती है। हाईकोर्ट जज के रूप में अपने कार्यकाल को याद करते हुए उन्होंने पानीपत के दो भाइयों का उदाहरण दिया, जो विरासत में मिले कपड़ा व्यवसाय को लेकर आपस में उलझे हुए थे। मध्यस्थता के माध्यम से उन्हें एहसास हुआ कि उनकी असली विरासत मशीनरी नहीं, बल्कि उनके पिता द्वारा बनाया गया बंधन है।
उन्होंने कहा,
"यही मध्यस्थता का गणित है- यह कड़वाहट को कम करता है, बोझ को बांटता है और मानवीय रिश्तों के टूटे हुए समीकरणों में आशा का संचार करता है।"
जस्टिस कांत ने ज़ोर देकर कहा कि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 ने वैधानिक आधार प्रदान किया, "इस अधिनियम की असली परीक्षा इसके प्रावधानों के मूल पाठ में नहीं, बल्कि हमारे नागरिकों के जीवन में इसके द्वारा निर्मित विश्वास में होगी।" उन्होंने बताया कि मध्यस्थता की सांस्कृतिक स्वीकृति पहले से ही बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि मुवक्किल मुकदमेबाजी से पहले मध्यस्थता पर ज़ोर दे रहे हैं। क़ानूनी कंपनियां सहयोग को रिश्तों को नष्ट करने के बजाय उन्हें बनाए रखने के एक साधन के रूप में पहचान रही हैं।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की हालिया पहल "राष्ट्र के लिए मध्यस्थता" का भी उल्लेख किया, जो एक 90-दिवसीय अभियान है, जिसका उद्देश्य मध्यस्थता के माध्यम से विभिन्न प्रकार के विवादों का समाधान करना है।
परंपरा का हवाला देते हुए उन्होंने याद दिलाया कि कैसे एक ज़माने में बुजुर्ग लोग बरगद के पेड़ों के नीचे सद्भाव की भावना से झगड़ों को सुलझाने के लिए इकट्ठा होते थे।
जस्टिस कांत ने कहा,
"अगर मुक़दमे फ़ैसले सुनाते हैं तो मध्यस्थता भविष्य तय करती है। न्याय का असली पैमाना मामलों के निपटारे में नहीं, बल्कि उससे पैदा होने वाली शांति में निहित होगा।"
ऋग्वेद के "संगच्छध्वं संवदध्वं, सं वो मन संसस ज नत म्" (एक साथ चलें, एक साथ बोलें, अपने मन को सद्भाव में रखें) का हवाला देते हुए उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि मध्यस्थता इस प्राचीन ज्ञान का प्रतीक है, जो विवादों को संवाद में और संवाद को शांति में बदल देती है।