भारतीय दंड विधान में केवल मानव जीवन के प्रति होने वाले अपराधों को ही अपराध नहीं माना है, अपितु पशुओं के प्रति होने वाले अपराधों को भी अपराध माना है।
इस मामले में भारतीय दंड विधान अत्यंत उदार है तथा वह भारत की सीमा के भीतर रहने वाले पशुओं की भी सुरक्षा करता है और भारत की सीमा में रहने वाले पशुओं को भी अधिकार प्रदान करता है।
हालांकि भारतीय दंड विधान में अलग-अलग अधिनियम एवं विशेषतः भारतीय दंड संहिता के भीतर पशुओं को संपत्ति माना गया है, लेकिन संपत्ति के संबंध में ही दंड भी रखा गया है। ऐसा नहीं है कि भारत की सीमा के भीतर कोई भी व्यक्ति किसी भी पशु को परेशान कर सकता है या किसी पशु का वध कर सकता है।
अभी हाल ही के मामले में एक गर्भवती हथिनी को बारूद खिलाकर मारा गया और एक गाय के मुंह में भी बारूद रखा गया। इस तरह की घटनाएं आए दिन देखने को मिलती हैं, इन घटनाओं से निपटने के लिए ही भारतीय दंड संहिता और कुछ अन्य अधिनियमों के माध्यम से पशुओं के अधिकारों को भी सुरक्षित किया गया है।
लेखक इस लेख के माध्यम से पशुओं के वध और पशु क्रूरता के संबंध में होने वाले अपराधों के लिए प्रावधान एवं प्रावधानों में कितने दंड की व्यवस्था की गई है, इसके संबंध में विस्तृत चर्चा कर रहा है।
भारतीय संविधान द्वारा पशुओं की रक्षा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(क) के अंतर्गत मूल कर्तव्य दिए गए हैं। इन मूल कर्तव्यों में प्रत्येक नागरिक पर कुछ कर्तव्य रखे गए हैं, ये कर्तव्य भारत राष्ट्र के प्रति एक नागरिक के कर्तव्य हैं। हालांकि ये कर्तव्य न्यायालय द्वारा प्रवर्तन नहीं कराए जा सकते, परंतु इन कर्तव्य से प्रेरणा लेकर भारत की संसद नवीन विधानों की रचना अवश्य कर सकती है, जो विधान इन कर्तव्यों को पूरा करने में सहायक हों।
भारत के संविधान में मूल कर्त्तव्य एक महत्वपूर्ण भाग है। अनुच्छेद 51(क) (छ) में एक प्रावधान किया गया है जिसके अंतर्गत प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें झील,नदी, वन्यजीव की रक्षा करने का कर्तव्य दिया गया है।
वन्यजीवों की रक्षा करनी है, उनका संवर्धन भी करना है। प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव भी रखना है।
संविधान में दी गयी इस व्यवस्था से प्रेरणा लेकर भारत की संसद में पशुओं के प्रति क्रूरता अधिनियम 1960, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 और स्लाटर हाउस रूल्स 2001 का निर्माण किया है।
भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध
पशुओं के होने वाले वध और उनके प्रति होने वाली क्रुरता को भारतीय दंड संहिता में भी अपराध का रूप दिया गया है तथा भारतीय दंड संहिता में पशुओं के जीवन को मानव के जीवन के समान तो नहीं माना गया है, परंतु पशु को एक संपत्ति की तरह ही मानकर इनके वध एवं इनके प्रति क्रूरता को दंडनीय अपराध बनाया गया है।
भारतीय दंड संहिता के अध्याय 17 में संपत्ति के विरुद्ध अपराधों के संबंध में प्रावधान है। इन प्रावधानों में एक प्रावधान रिष्टि है, जिसे अंग्रेजी में मिशचीफ कहते हैं। किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करना ही नहीं, अपितु उस को क्षति पहुंचाना भी एक अपराध है, क्योंकि ऐसी क्षति या तो उसकी उपयोगिता नष्ट कर देती है या उसमें ऐसा परिवर्तन आ जाता है जो स्वामी एवं उपभोक्ताओं के उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाती है।
यह अपराध पूर्व अपराधों से कम गंभीर प्रकृति का हो सकता है फिर भी अपराध तो अपराध है, चाहे वह कैसा भी हो और ऐसे अपराध के लिए दंड की व्यवस्था है। इस ही रिष्टि के भीतर पशुओं से संबंधित अपराधों की व्यवस्था की गयी है। पशुओं के प्रति क्रूरता एवं उनके वध किए जाने को रिष्टि का गंभीर स्वरूप माना गया है।
देखिए भारतीय दंड संहिता के कुछ प्रावधान
धारा 428
₹10 के मूल्य के जीव जंतु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि-
जो कोई ₹10 या उससे अधिक के मूल्य के किसी जीव जंतु या जीव जंतुओं का वध करने, विष देने ,विकलांग करने एवं अनुपयोगी बनाने द्वारा दृष्टि करेगा, दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से दोनों से दंडित किया जाएगा।
इस धारा के भीतर किसी भी पशु का नाम नहीं बताया गया है, केवल मूल्य बताया गया है। इस मूल्य के किसी जीव जंतु के प्रति कोई इस प्रकार का कृत्य किया जाता है जिससे वह जीव जंतु मर जाए, विकलांग हो जाए या फिर ऐसा हो जाए की वह कोई उपयोग का नहीं रहे। ऐसा कृत्य करने वाले के लिए 2 साल तक का कारावास रखा गया है।
धारा 429
भारतीय दंड संहिता की धारा 429 किसी भी मूल्य के मवेशी या फिर ₹50 से ज्यादा के मूल्य के किसी जीव जंतु का वध करना या उसे विकलांग करने से संबंधित है।
इस धारा में हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भैंस, गाय,सांड, या बेल को उसका जो भी मूल्य हो या ₹50 से अधिक मूल्य का कोई जीव जंतु हो ऐसे जीव जंतु को जहर देने उसे विकलांग करने या फिर ऐसा बनाने जिससे कोई उपयोगी नहीं रहे यह गंभीर रिष्टि है।
इसके लिए 5 साल तक का कारावास और दोनों से दंडित किया जा सकता है।
गोपाल कृष्ण बनाम कृष्ण भट्ट एआईआर 1960 केरल 74 के मामले में यह भी निर्धारित किया गया है किया धारा पशु को स्थाई क्षति पहुंचाए जाने से संबंधित है।
जैसा कि हाल ही में अभी हमने एक हथिनी को बारूद खिलाकर मारे जाने की घटना को देखा है तो ऐसी परिस्थिति में धारा 429 प्रयोज्य होगी।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अंतर्गत धारा को संज्ञेय अपराध बनाया गया है अर्थात जैसे ही पुलिस को इसका संज्ञान मिलता है, वह वैसे ही गिरफ्तारी भी कर सकती है और अन्वेषण प्रारंभ कर सकती है। हालांकि दंड प्रक्रिया संहिता में ही इस अपराध को जमानतीय भी रखा गया है परंतु भारतीय दंड संहिता इस अपराध में 5 साल तक का कठोर कारावास दिए जाने का प्रावधान करती है।
यह धारा धार्मिक प्रयोजन हेतु किसी पशु को बलि दिए जाने पर प्रयुक्त नहीं होती है, परंतु ऐसी बलि भी धार्मिक रीति अनुसार होना चाहिए।
भारत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम1972 के अंतर्गत हाथी, ऊंट, घोड़े इत्यादि की बलि नहीं दी जा सकती तथा बैल और सांड गोवंश संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अलग अलग राज्यो में संरक्षित कर दिए गए हैं। अब केवल कुछ चुने हुए पशु रह गए हैं, जिनकी बलि दी जाती है, जैसे बकरा, भैंस, भेड़ और मुर्गा।
धारा 429 स्पष्ट हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भैंस, सांड गाय, बैल इनका नाम लेकर उल्लेख करती है। इस धारा में पशु को संपत्ति बताया गया है। इसका अर्थ यह है कि यदि मालिक संपत्ति का उपभोग करता है तो वह पशु को विकलांग भी कर सकता है उसका वध भी कर सकता है या फिर उसे विष भी दे सकता है परंतु हाथी ऊंट घोड़े खच्चर इन्हें वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण दिया गया है, गाय बैल को गोवंश संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है तथा भैंस बकरी भेड़ को यहां संरक्षण प्राप्त नहीं है परंतु यह भी पशु क्रूरता अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित होते होते है। सलास्टर हाउस रूल्स 2001 के अंतर्गत ही इन पशुओं का वध किया जा सकता है।
पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960
पशु क्रूरता से निपटने के उद्देश्य से पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960 का निर्माण भारत की संसद द्वारा किया गया है। इस अधिनियम के माध्यम से पशुओं के प्रति होने वाली क्रूरता को रोकने के संपूर्ण प्रयास किए गए हैं। अधिनियम की धारा 11पशुओं के प्रति क्रूरता के व्यवहार का उल्लेख करती है जो साधारण शब्दों में निम्न है-
1) किसी पशु को पीटना, ठोकर मारना, बहुत ज्यादा सवारी लगाना, बहुत अधिक बोझ लाद देना उसे यातना देना या फिर उसके साथ में कोई भी ऐसा व्यवहार करना जिससे उसे अनावश्यक पीड़ा हो।
2) कोई पशु अपनी उम्र, कोई अंग के शिथिल हो जाने, कोई घाव, किसी फोड़े के कारण कोई कार्य कर पाने में असमर्थ है, उस पशु को फिर भी उस कार्य में लगाया जाए।
3) किसी भी पशु को कोई भी नुकसान पहुंचाने वाली दवाई या फिर क्षति कारक पदार्थ जानबूझकर देगा या खिलाएगा या खिलवाएगा।
4) किसी पशु या पशुओं को कोई ऐसी रीति से किसी गाड़ी मोटर यान में लेकर जाना जिस रीति से ले जाने में पशु को यातना पहुंचे।
5) किसी पशु को किसी ऐसे पिंजरे में रखना जिसकी लंबाई चौड़ाई छोटी हो और पशु को यातना पहुंचे।
6) किसी पशु को अनुचित या छोटी रस्सी या जंजीर से बांध के रखना या फिर कोई भारी वस्तु से बांध के रखना।
7) पशु का मालिक होने के बाद भी पशु को खाना पानी नहीं देना।
8) बिना कोई उचित कारण किसी पशु को ऐसी जगह छोड़ देना जहां पर उसको दाना पानी खाना नहीं मिले और वह भूखा मर जाए।
9) कोई विकलांग, भूखा, बीमार और प्यासा ऐसा पशु बिक्री के लिए बाजार में रखना।
10) दो पशुओं को आपस में लड़ा कर लड़ाई का मनोरंजन लेना।
11) गोली चला कर निशाना लगाकर पशुओं को मारना।
यह सभी बातें क्रूरता की श्रेणी में रखी गयी हैं और इन्हें अपराध बनाया गया है और इस अपराध के लिए यदि प्रथम बार यह अपराध किया जाता है तो कम से कम ₹25000 का जुर्माना है और जो ₹100000 तक का हो सकता है। दूसरी बार फिर या अपराध किया जाता है तो इसमें तीन महीने तक की सजा का प्रावधान रखा गया है।
इन पशुओं की सुरक्षा के लिए एक बोर्ड का गठन किया गया है, जो कि केंद्रीय बोर्ड होता है। इसका गठन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जिसका अध्यक्ष केंद्र सरकार का वन महानिरीक्षक होता है। यह बोर्ड अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समितियां बनाता है। ये समितियां नगर निगम और नगर निकाय के अंतर्गत संचालित होती है। इन समितियों द्वारा जो कार्यवाही की जाती है वह इस अधिनियम के अंतर्गत की जाती है।
यह क्रांतिकारी अधिनियम है जो भारत की सीमा के भीतर पशुओं की सुरक्षा के लिए अत्यंत कारगर है। इस अधिनियम के अंतर्गत मनुष्य से भिन्न किसी भी जीव को पशु कहा गया है, अर्थात सारी धरती के जीवित प्राणी भारत की सीमा के भीतर सुरक्षित कर दिए गए हैं।
हालांकि जैसे आवारा कुत्तों को मारने और चिड़ियाघर चलाने के लिए कुछ नियम तय किए गए हैं। चिड़ियाघर केवल वैज्ञानिक अनुसंधान एवं जानकारी के लिहाज से चलाया जाता है।
चिड़ियाघर का उद्देश जानवरों की नुमाइश कर उन से धन कमाना नहीं होता है। जैसा कि भारत में बंदरिया को नचाकर मदारी खेल दिखाया करते थे, सांपों को नचा कर सपेरे खेल दिखाया करते थे। इसे भी इस अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित किया गया है।
कोई सर्कस इत्यादि में कोई प्रशिक्षण देकर जानवरों से काम लिया जाता है तो ऐसे परीक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए इस बोर्ड के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन लेना होता है। यह बोर्ड इसकी निगरानी करता है। पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960 ही रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया का भी उल्लेख करता है।