धारा 418 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 – जब सरकार अपर्याप्त सजा के खिलाफ अपील करती है

Update: 2025-04-14 12:18 GMT
धारा 418 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 – जब सरकार अपर्याप्त सजा के खिलाफ अपील करती है

संदर्भ (Reference): इससे पहले के लेखों में हमने धारा 415, 416 और 417 के अंतर्गत यह समझा कि कौन व्यक्ति अपील कर सकता है, और किन परिस्थितियों में अपील का अधिकार नहीं होता। अब हम धारा 418 के माध्यम से यह जानेंगे कि राज्य सरकार या केंद्र सरकार किस स्थिति में यह मानते हुए कि किसी दोषी को मिली सजा बहुत कम (Inadequate) है, उसके खिलाफ अपील कर सकती है।

अपील की अनुमति – जब सजा अपर्याप्त हो

धारा 418 के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो और उसे जो सजा दी गई हो, वह सरकार को अपर्याप्त (Inadequate) लगती हो, तब सरकार अपील कर सकती है ताकि सजा बढ़ाई जा सके।

यह धारा मुख्यतः सरकार द्वारा की जाने वाली Sentence Appeal से संबंधित है।

उपधारा (1): राज्य सरकार द्वारा अपील

राज्य सरकार किसी भी अदालत (High Court को छोड़कर) द्वारा दोषसिद्ध व्यक्ति को दी गई सजा के खिलाफ, यदि वह सजा अपर्याप्त प्रतीत होती है, तो लोक अभियोजक (Public Prosecutor) को यह निर्देश दे सकती है कि वह अपील करे:

• अगर सजा मजिस्ट्रेट (Magistrate) द्वारा दी गई हो, तो अपील सत्र न्यायालय (Court of Session) में की जाएगी।

• अगर सजा किसी अन्य अदालत (High Court के अतिरिक्त) द्वारा दी गई हो, तो अपील हाई कोर्ट (High Court) में की जाएगी।

उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति ने गंभीर मारपीट (Grievous Hurt) का अपराध किया हो, और मजिस्ट्रेट ने उसे केवल 2 महीने की सजा दी हो, तो राज्य सरकार यह मान सकती है कि यह सजा अपराध की गंभीरता के मुकाबले बहुत कम है। तब वह लोक अभियोजक को निर्देश दे सकती है कि वह सत्र न्यायालय में अपील करे।

उपधारा (2): केंद्रीय सरकार द्वारा अपील

यदि मामला ऐसा हो जिसमें अपराध की जांच किसी केंद्रीय कानून (Central Act) के तहत अधिकृत एजेंसी द्वारा की गई हो — जैसे कि CBI, NIA या ED जैसी केंद्रीय एजेंसियाँ — तो केंद्र सरकार भी अपील कर सकती है।

ऐसी स्थिति में अपील इस प्रकार की जाएगी:

• अगर सजा मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई है, तो अपील सत्र न्यायालय में की जाएगी।

• अगर सजा किसी अन्य अदालत द्वारा दी गई है, तो अपील हाई कोर्ट में की जाएगी।

यह उपधारा यह सुनिश्चित करती है कि जिन मामलों की जांच केंद्रीय स्तर पर हुई है, उनमें केंद्र सरकार को भी सजा की पर्याप्तता (Adequacy of Punishment) पर निगरानी और हस्तक्षेप का अधिकार हो।

उपधारा (3): दोषी को सुनवाई का अवसर

यदि सत्र न्यायालय या हाईकोर्ट में ऐसी अपील की गई है जिसमें सरकार सजा बढ़ाने की मांग करती है, तो अदालत तब तक सजा नहीं बढ़ा सकती जब तक कि दोषी व्यक्ति को उचित अवसर (Reasonable Opportunity) नहीं दिया जाए कि वह अपनी बात रख सके।

इस प्रक्रिया में दोषी व्यक्ति निम्न बातें कह सकता है:

• कि उसे दोषमुक्त (Acquitted) किया जाए।

• कि उसकी सजा कम की जाए (Reduction of Sentence)।

उदाहरण: यदि किसी अपील में अभियोजन पक्ष सजा 6 महीने से बढ़ाकर 2 साल करवाना चाहता है, तो अदालत पहले दोषी व्यक्ति को नोटिस भेजेगी और उसे यह कहने का अवसर देगी कि सजा क्यों नहीं बढ़ाई जानी चाहिए। वह व्यक्ति यह भी कह सकता है कि उसका अपराध इतना गंभीर नहीं था, या उसकी भूमिका कम थी, इसलिए सजा और कम होनी चाहिए।

उपधारा (4): समयसीमा

यदि अपील उस सजा के खिलाफ की गई हो जो धारा 64, 65, 66, 67, 68, 70 या 71 के अंतर्गत दी गई हो, तो ऐसी अपील को दायर होने की तारीख से छह महीने के भीतर निपटाया जाना चाहिए।

यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि जिन धाराओं के तहत त्वरित न्याय की अपेक्षा है, उनमें अपील की प्रक्रिया लंबी न खिंचे।

ध्यान दें: ये धाराएँ (64-71) भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत कुछ विशिष्ट सजा संबंधी प्रावधानों से संबंधित हैं — जैसे कि जुर्माने की सजा, जब्ती, मुआवजा आदि। इन्हें लेकर अपीलें समयबद्ध तरीके से तय की जाएँ, यह न्याय प्रणाली की कुशलता के लिए आवश्यक है।

धारा 418 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि यदि किसी अपराध में दी गई सजा समाज और कानून के अनुरूप नहीं है — यानी बहुत कम या हल्की है — तो सरकार के पास यह अधिकार हो कि वह उस सजा को चुनौती दे और उसकी पुनः समीक्षा (Review) करवाए।

यह धारा न्याय की एक और परत जोड़ती है — जहाँ केवल दोषी नहीं बल्कि राज्य भी अपीलकर्ता (Appellant) हो सकता है।

धारा 415 से 417 तक जहां दोषसिद्ध व्यक्ति के अपील के अधिकारों की सीमाएं तय की गई थीं, वहीं धारा 418 इस बात की व्यवस्था करती है कि न्याय केवल अपराधी के अधिकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के हित में राज्य भी न्यायिक हस्तक्षेप कर सकता है।

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