क्या किसी Criminal Case को सिर्फ Political Rival के दर्ज कराने पर रद्द किया जा सकता है?

Update: 2025-04-14 12:12 GMT
क्या किसी Criminal Case को सिर्फ Political Rival के दर्ज कराने पर रद्द किया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने Ramveer Upadhyay & Anr. v. State of U.P. & Anr. मामले में यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि क्या किसी Criminal Case को सिर्फ इसलिए खारिज (Quash) किया जा सकता है क्योंकि वह मामला Political Rival द्वारा दर्ज कराया गया है? इस फैसले में कोर्ट ने CrPC की धारा 482 (Section 482 of CrPC), Complaint को शुरुआती स्तर पर खारिज करने की प्रक्रिया, और Political Rivalry के प्रभाव को गहराई से समझाया। इस लेख में हम कोर्ट द्वारा तय किए गए महत्वपूर्ण कानून बिंदुओं को सरल भाषा में समझेंगे।

धारा 482 CrPC की अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power under Section 482 CrPC)

CrPC की धारा 482, High Court को यह शक्ति देती है कि वह किसी मामले में न्याय दिलाने के लिए, या Court Process के दुरुपयोग (Abuse of Process) को रोकने के लिए आवश्यक आदेश जारी कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि यह शक्ति "असाधारण" (Extraordinary) होती है और इसका उपयोग बहुत सोच-समझकर और केवल विशेष परिस्थितियों में किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने दोहराया कि अगर कोई Complaint (शिकायत) पहली नजर में (Prima Facie) किसी अपराध (Offence) को दर्शाती है, तो सिर्फ इसलिए कि शिकायतकर्ता राजनीतिक विरोधी है, मामला खत्म नहीं किया जा सकता।

Political Vendetta को Complaint खारिज करने का आधार नहीं माना जा सकता (Political Vendetta Not Ground to Quash Complaint)

इस केस में Petitioners ने कहा कि उनके खिलाफ दर्ज Complaint Political Rivalry के कारण है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि सिर्फ Political Rivalry का होना, Complaint को खारिज करने का पर्याप्त कारण नहीं बनता।

कोर्ट ने Sheonandan Paswan v. State of Bihar में दिए गए विचार का समर्थन किया जिसमें कहा गया था कि यदि Complaint में अपराध के तत्व (Ingredients of Offence) मौजूद हैं, तो यह मायने नहीं रखता कि शिकायतकर्ता की मंशा क्या थी।

Criminal Case के शुरुआती चरण में कोर्ट की भूमिका सीमित होती है (Limited Role of Courts at Preliminary Stage)

कोर्ट ने दोहराया कि शुरुआती स्तर पर यह देखा जाना चाहिए कि क्या Complaint में Prima Facie किसी अपराध की बात की गई है। सच्चाई की जांच (Truth Verification) या गवाही की विश्वसनीयता (Reliability of Evidence) का विश्लेषण ट्रायल (Trial) में होता है, न कि धारा 482 CrPC के अंतर्गत।

कोर्ट ने State of Haryana v. Bhajan Lal मामले में बताए गए 7 विशेष हालातों का जिक्र किया जिनमें Criminal Proceedings को खारिज किया जा सकता है, परंतु यह केस उन हालातों में नहीं आता।

SC/ST Atrocities Act के अंतर्गत Cognizance लेने की शक्ति (Cognizance under SC/ST (Prevention of Atrocities) Act)

Petitioners ने यह तर्क दिया कि केवल Special Court ही Atrocities Act के अंतर्गत Cognizance ले सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज किया और Shantaben Bhurabhai Bhuriya v. Anand Athabhai Chaudhari फैसले का हवाला दिया।

कोर्ट ने कहा कि 2016 के संशोधन (Amendment) द्वारा धारा 14 में दूसरा Proviso जोड़ा गया, जिससे Special Court को Direct Cognizance लेने की Power दी गई, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि Magistrate को Cognizance लेने की Power खत्म हो गई है। इसलिए अगर Magistrate ने Cognizance लिया और फिर मामला Special Court को भेजा, तो पूरी प्रक्रिया अवैध नहीं हो जाती।

कई महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख (Reference to Important Judgments)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई पुराने और महत्वपूर्ण मामलों का हवाला दिया जो Section 482 CrPC के उपयोग को लेकर मार्गदर्शन देते हैं:

• Monica Kumar v. State of U.P. – धारा 482 का उपयोग सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए।

• Inder Mohan Goswami v. State of Uttaranchal – Court की शक्ति का इस्तेमाल किसी को परेशान करने या बदला लेने के लिए नहीं होना चाहिए।

• Madhavrao Scindia v. Sambhajirao Angre – अगर ट्रायल से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होने वाला और Conviction की संभावना बहुत कम है, तब मामला खत्म किया जा सकता है।

• Kapil Agarwal v. Sanjay Sharma – Section 482 का मकसद है कि Criminal Proceedings को उत्पीड़न (Harassment) का हथियार न बनने दिया जाए।

• Ram Kishan Rohtagi – Section 482 की शक्ति Section 397 जैसी Revisional Power से अलग और सीमित है।

• State of Andhra Pradesh v. Gourishetti Mahesh – यह जांच करना कि Complaint सही है या नहीं, High Court की भूमिका नहीं है।

न्याय के हित और प्रक्रिया के दुरुपयोग से सुरक्षा (Ends of Justice and Protection from Abuse of Process)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर Complaint में अपराध की बात कही गई है और कुछ गवाह भी मौजूद हैं, तो ट्रायल से पहले उसे खत्म करना न्याय के विपरीत होगा।

Hamida v. Rashid मामले में भी कोर्ट ने कहा था कि अदालत का कीमती समय ट्रायल और अपील सुनने में लगना चाहिए, न कि शुरुआती स्तर पर मामलों को खारिज करने में।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय (Conclusion of the Supreme Court)

सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि सिर्फ इसलिए कि Complaint एक Political Rival द्वारा प्रेरित हो सकती है, मामला Section 482 के तहत खत्म नहीं किया जा सकता। Complaint में स्पष्ट रूप से Scheduled Caste के व्यक्ति के खिलाफ जातिसूचक गाली और धमकी की बात कही गई है, जो कि SC/ST Act के तहत अपराध है।

इसलिए यह तय करना कि आरोप सही हैं या नहीं – यह कार्य ट्रायल कोर्ट का है, न कि High Court का। हाई कोर्ट का यह निर्णय कि Complaint खारिज न की जाए, सही था। सुप्रीम कोर्ट ने भी Petition को खारिज कर दिया।

विशेष टिप्पणियाँ (Final Observations)

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि Petitioner No.1 की सेहत खराब है, तो ट्रायल कोर्ट उनकी Personal Appearance से छूट (Exemption) पर विचार कर सकता है, अगर ऐसी अर्जी दी जाती है।

यह निर्णय एक महत्वपूर्ण संदेश देता है – कि कोर्ट की शक्तियां किसी Political Rivalry के डर से नहीं चलतीं, बल्कि न्याय की प्रक्रिया को कायम रखने के लिए चलाई जाती हैं। यदि Complaint में Prima Facie अपराध दिखता है, तो उसे सिर्फ इस आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता कि वह विरोधी पार्टी से संबंधित है।

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