NI Act की धारा 93,94,97 और 98 के प्रावधान

Update: 2025-04-14 04:16 GMT
NI Act की धारा 93,94,97 और 98 के प्रावधान

अधिनियम की धारा 93 में अप्रतिग्रहण या असंदाय लिखत के अनादर की सूचना देने की अपेक्षा की गई है-

उन सब पक्षकारों को, जिन्हें कि धारक उस पर अलग-अलग दायी बनाना चाहता है।

उन कई पक्षकारों में से किसी एक को, जिन्हें कि वह उस पर संयुक्तत: दायी बनाना।

चेक की दशा में असंदाय की दशा में लेखोवाल को आपराधिक आवद्धता से भारित करने में चाहता है।

अनादर के पश्चात् माँग सूचना भेजना आवश्यक होता है। (धारा 138) अनादर की सूचना क्यों?- अनादर की सूचना देने का प्रयोजन संदाय की माँग करना नहीं होता है, बल्कि उसकी आबद्धता को सूचना द्वारा चेतावनी देना होता है एवं लेखीवाल की दशा में उसे स्वयं ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता जिसने अनादर किया है, से संरक्षित करना होता है।

कब अनादर की सूचना अनावश्यक होती है- धारा 93 का परन्तुक एवं धारा 98 में उन परिस्थितियों का उपबन्ध किया गया है। जिसके अधीन अनादर की सूचना अनावश्यक होती है-

धारा 93 का परन्तुक-इस परन्तुक के अधीन अनादर को सूचना से अभिमुक्ति प्रदान की गई है।

अनादृत वचन पत्र के रचयिता को या

अनादृत विनिमय पत्र या चेक के ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता को

विनिमय पत्र या चेक के ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता को उक्त पक्षकार लिखत पर मुख्य ऋणी होते हैं, और उनका यह कर्तव्य होता है कि वे लिखत के शोध्य होने पर समुचित स्थान पर संदाय का प्रावधान करें। ये वे पक्षकार होते हैं जो स्वयं लिखत का अप्रतिग्रहण या असंदाय के लिए जिम्मेदार होते हैं एवं उन्हें ऐसी सूचना केवल ऐसी सूचना होती है जिसे वे जानते हैं।

सूचना किसके द्वारा अनादर की सूचना धारक द्वारा या लिखत पर आबद्ध किसी व्यक्ति के द्वारा दी जाएगी। एक व्यक्ति द्वारा अनादर की विधिसम्मत सूचना देने के लिए यह आवश्यक है कि अनादर की सूचना देने के समय लिखत पर स्वयं उसकी आबद्धता होनी चाहिए। अतः किसी अजनबी व्यक्ति द्वारा अनादर की सूचना अकृत होगी।

यहाँ तक कि लिखत को किसी पक्षकार के द्वारा दी गई सूचना अवैध होगी जिसकी लिखत के अधीन सूचना देने के समय आवद्धता नहीं थी।

सूचना किसे- धारा 93 में यह उपबन्धित है कि अनादर की सूचना दी जाएगी उसे (i) उन सभी पक्षकारों को, जिन्हें कि धारक उस पर अलग-अलग दायी बनाना चाहता है।

उन कई पक्षकारों में से किसी एक को जिन्हें कि वह उस पर संयुक्ततः दायी बनाना चाहता है।

उस व्यक्ति जिसे देने की अपेक्षा है उसके सम्यक् रूप से प्राधिकृत अभिकर्ता को।

जहाँ ऐसे व्यक्ति की मृत्यु की दशा में उसके विधिक प्रतिनिधि को, या

ऐसे व्यक्ति के दिवालिया की दशा में उसके समनुदेशिती को।

अनादर की सूचना न देने का प्रभाव- जब तक की धारा 98 के अधीन अनादर की सूचना से अभिमुक्ति नहीं है, अनादर की सूचना देने में लोप करने की दशा में उन सभी पक्षकारों को उन्मोचित करना होगा जो सूचना पाने का हकदार है।

द्वितीय यह कि जब तक कि धारक द्वारा अनादर की सूचना नहीं दी जाएगी, वह अपने अधिकारों को अन्य पक्षकार के प्रति लागू नहीं करा सकेगा।

यह धारा 30 के अधीन लेखीवाल एवं धारा 35 के अधीन पृष्ठांकक की आबद्धता की पूर्ववर्ती शर्त कि उन्हें अनादर को सम्यक सूचना दी जाए। अनादर की सूचना देने की आबद्धता हुण्डी पर भी लागू होती है।

धारा- 94 वह रीति जिसमें सूचना दी जा सके

अधिनियम की धारा 94 में यह उपबन्धित है कि अनादर की सूचना देने की रीति क्या होगी, साथ ही साथ किसे सूचना दी जाएगी। अनादर की सूचना दी जाएगी

मौखिक या लिखित या

डाक के द्वारा अनादर की सूचना पोस्ट बाक्स में डालकर जा सकेगी। डाक में सूचना को डालना या रजिस्टर्ड पत्र द्वारा भेजना इस प्रयोजन के लिए पर्याप्त होगा। जहाँ द्वारा प्रेषित है और अन्यत्र चला जाता है, वहाँ सूचना सम्यक् रूप से प्रेषित है या डाक गलत गन्तव्य पर जाने से सूचना को अवैध नहीं बनाएगा।

कोरियर द्वारा अब रजिस्टर्ड कोरियर संस्था के द्वारा भी सूचना दी जा सकती है।

केवल इसका संज्ञान कि लिखत अनादृत हो गया है सूचना नहीं होगी सूचना का समय एवं स्थान- अनादर की सूचना अनादर के समय से युक्तियुक्त समय में दी जाएगी। ऐसी सूचना कारोबार स्थल, या जहाँ कारोबार स्थल नहीं है वहाँ सूचना पाने वाले व्यक्ति के निवास पर सूचना दी जाएगी

धारा 97 यह कहती है कि पक्षकार जिसे सूचना भेजी गयी है, मर गया है, किन्तु सूचना भेजने वाले पक्षकार को उसकी मृत्यु की जानकारी नहीं है, तब वह सूचना पर्याप्त होगी।

धारा- 98 अनादर की सूचना कब अनावश्यक है- अनादर की कोई भी सूचना तब आवश्यक नहीं है, जब कि उसके हकदार पक्षकार को उसके लिए अभिमुक्ति दे दी है।

(ख) लेखीवाल को भारित करने के लिए तब आवश्यक नहीं है, जब कि उसने संदाय प्रत्यादिष्ट कर दिया है।

(ग) तब आवश्यक नहीं है, जब कि भारित पक्षकार को कोई नुकसान सूचना के अभाव से नहीं हो सकता था।

(घ) तब आवश्यक नहीं, जब कि सूचना का हकदार पक्षकार सम्यक् तलाश के पश्चात् नहीं पाया जा सकता या सूचना देने के लिए आबद्ध पक्षकार अपनी किसी त्रुटि के बिना उसे देने में अन्य कारणवश असमर्थ है।

(ङ) लेखीवालों को भारित करने के लिए तब आवश्यक नहीं है, जब कि प्रतिग्रहीता उसका लेखीवाल भी है।

(च) उस वचन-पत्र के बारे में आवश्यक नहीं है, जो परक्राम्य नहीं है।

(छ) तब आवश्यक नहीं है, जब कि सूचना का हकदार पक्षकार लिखत पर देने का अशर्त वचन तथ्यों को जानते हुए दे देता है।

लिखतों के अनादर चाहे वह अप्रतिग्रहण या असंदाय से हो, के सम्बन्ध में कोई वाद लाने के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे अनादर की सूचना दी गई हो। अनादर से उत्पन्न अधिकार प्रवृत्त कराने के लिए अनादर की सूचना पूर्ववर्ती शर्त है। धारा 98 में यह उपबन्धित है कि ऐसी सूचना कब अनावश्यक है और तद्धीन अधिकार का दावा किया जा सकता है। ये हैं: (i) जहाँ सूचना की अभिमुक्ति या अभिव्यक्त परित्याग किया गया है

धारा 98 (क) - जहाँ अनादर की सूचना के हकदार व्यक्ति ने इसे अभिमुक्ति दे दी है। यह अभिव्यक्त परित्याग से हो सकता है।

इसे उस समय किया जा सकता है जब इसे देने का समय आ गया है उसके पूर्व या उसके पश्चात् या सूचना देने के लोप हो गया है। इसका हकदार व्यक्ति शब्दों से अभिव्यक्त कर सकता है कि "अनादर की सूचना का परित्याग एक फैकलटेटीव पृष्ठांकन ऐसा परित्याग सम्मिलित कर सकता है।

जहाँ लेखीवाल ने संदाय प्रत्यादिष्ट किया है: [ धारा 98 (ख ) ] - जहाँ चेक के लेखीवाल ने संदाय को प्रत्यादिष्ट किया है वहाँ अनादर सूचना देना अनावश्यक होता है, क्योंकि ऐसा कार्य संविदा भंग होता है एवं सूचना उपधारित की जाती है।

सूचना के अभाव में भारित पक्षकार को कोई क्षति कारित नहीं हुई है: [ धारा 98 (ग) ] - जहाँ भारित किया जाने वाले पक्षकार को कोई क्षति कारित नहीं हुई है, वहाँ उसे ऐसी सूचना देना आवश्यक नहीं होता है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि न तो उपस्थापन और न तो अनादर को सूचना देना आवश्यक होता है, यदि यह दिखाया जाता है कि जिस समय चेक लिखा गया था लेखीवाल के हाथ में अर्थात् उसके खाते में पर्याप्त धन नहीं था।

निम्नलिखित उदाहरण इसे समर्थित करते हैं-

(क) अका उसके बैंक खाते में बैलेन्स रु० 5,000 का था जिस पर अधिविकर्ष की सुविधा थी, 10,000 रु० का चेक लिखा अको चेक के अनादर की सूचना आवश्यक नहीं होगी।

(ख) अ एक विनिमय पत्र ब पर लिखता है जो किसी आबद्धता के अन्तर्गत नहीं है कि वह विनिमय पत्र का प्रतिग्रहण करे या संदाय करे और यह इसे प्रतिग्रहीत न करने को स्पष्ट करता है। अ को अनादर की सूचना अनावश्यक होगी।

सूचना का हकदार व्यक्ति सम्यक् तलाश के पश्चात् नहीं पाया जाता है।

98 (घ)- यह खण्ड दो आधारों को सम्मिलित करता है :-

(क) जहाँ पक्षकार सम्यक् तलाश के पश्चात् भी नहीं पाया जा सकता है। यह वहाँ होता है जहाँ पक्षकार जिसके द्वारा सूचना दी जानी दूसरे पक्षकार के निवास से अनभिज्ञ है। परन्तु ऐसे मामलों में उसे सूचना के हकदार व्यक्ति के निवास का पता करने के लिए युक्तियुक्त प्रयास किया जाना चाहिए और यदि सम्यक् प्रयास के पश्चात् भी वह पता करने में असमर्थ है, अनादर की सूचना आवश्यक नहीं होगा। जहाँ लेखीवाल दिए गए पते पर पाया नहीं जा सकता है, परन्तु कार्यवाही करने के पूर्व धारक को सूचित किया जाता है कि लेखीवाल कहा. पाया जा सकेगा, धारक उसे उस स्थान पर सूचना देने के लिए आबद्ध होगा।

(ख) धारक अन्य किसी कारण से जिसमें उसका कोई दोष नहीं है।

जहाँ प्रतिग्रहीता स्वयं लेखीवाल है: [ धारा 98 (ङ) ] - जहाँ लिखत का प्रतिग्रहीता लेखीवाल में से एक है, लेखीवाल एवं ऊपरवाल या लेखीवाल एवं प्रतिग्रहीता एक ही व्यक्ति है अनादर की सूचना अनावश्यक होगी। पर यह तथ्य कि विनिमय पत्र का ऊपरवाल भागीदार है, यह उपधारणा उत्पन्न नहीं करने देगा कि विनिमय पत्र लिखने के सम्बन्ध में, या कि विनिमय पत्र उनमें से एक के द्वारा दूसरे की ओर से लिखा गया है।

जहाँ वचन पत्र परक्रमणीय नहीं है: [ धारा 98 (च) ] - जहाँ वचन पत्र परक्राम्य नहीं है, अतः यह केवल रचयिता एवं पाने वाले के ही बीच सीमित होता है अत: वचन पत्र के अनादर से रचयिता को कोई हानि नहीं होती है, क्योंकि उसे अनादर के तथ्य की जानकारी है। अत: अनादर की सूचना उसे अपेक्षित नहीं है।

जबकि सूचना का हकदार व्यक्ति शोध्य रकम देने का अशर्त वचन देता है: [ धारा 98 (छ) ] –धारा 98 (छ) उस मामले से सम्बन्धित है जहाँ एक पक्षकार जो सूचना का हकदार है अनादृत लिखत के शोध्य रकम को देने अशर्त वचन तथ्यों को जानते हुए देता है। यह आबद्धता को पुष्टि करने के समान होता है।

संदाय का वचन या तो अनादर की सूचना का साक्ष्य या पूर्व में इसके अभिमुक्ति या पश्चात्वर्ती सूचना का परित्याग होता है।

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