
किसी भी इंस्ट्रूमेंट के बाउंस हो जाने पर उसकी सूचना प्रेषित करना होती है। परक्राम्य लिखत में विनिमय पत्र एवं चेक की दशा में एक निश्चित धनराशि के संदाय करने का आदेश एवं वचन पत्र की दशा में निश्चित धनराशि के संदाय का वचन अन्तर्विष्ट होता है। ऐसी आबद्धता संविदात्मक सम्बन्ध भी उत्पन्न करती है। जब यह आबद्धता उन्मोचित हो जाती है तो यह कहा जाता है कि लिखत का आदरण कर दिया गया है एवं मना करने की दशा में यह कहा जाता है कि लिखत का अनादर कर दिया गया है एवं यह संविदा भंग होता है।
एक लिखत का अनादर हो सकता है-
विनिमय पत्र की दशा में अप्रतिग्रहण द्वारा एक विनिमय पत्र लिखे जाने के बाद ऊपरवाल के प्रतिग्रहण अपेक्षित होता है। जब विनिमय पत्र का धारक द्वारा प्रतिग्रहण के लिये उपस्थापित किया जाता है और ऊपरवाल उसे प्रतिग्रहीत नहीं करता है, यह कहा जाता है कि विनिमय पत्र अप्रतिग्रहण से अनादृत हो गया है।
असंदाय द्वारा अनादर सभी लिखतों की दशा में यदि लिखत का उसके परिपक्वता पर या उसके पश्चात् संदाय के लिए उपस्थापना पर संदाय मना कर दिया जाता यह कहा जाता है कि लिखत असंदाय से अनादृत हो गया है। [धारा 92] एक चेक का असंदाय के वजह से अनादर होना अब बड़ा ही महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि अब इसे कतिपय मामले में 1988 के बाद अपराध बना दिया गया है जिसका उपबन्ध धाराएं 138 से 148 (सत्रहवें अध्याय में) में किया गया है। धाराएं 91 से 98 लिखतों के अनादर से सम्बन्धित हैं।
अप्रतिग्रहण से अनादर [ धारा 91]- अधिनियम की धारा 92 विनिमय पत्र के अप्रतिग्रहण से सम्बन्धित है। एक विनिमय पत्र का अनादर अप्रतिग्रहण की दशा में निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर किया जा सकता है।
जब किसी विनिमय पत्र को सम्यक् रूप में प्रतिग्रहण के लिए उपस्थापित किया जाता है, या अनेक ऊपरवाल की दशा में किसी एक के द्वारा, भागीदार न होने की दशा में प्रतिग्रहण करने से मना कर देता है, विनिमयं पत्र को अनादृत कहा जाता है।
धारा 83 के प्रभाव से ऊपरवाल यह विचार करने के लिये कि वह विनिमय पत्र को प्रतिग्रहण करे या न करे उपस्थापना के समय से 48 घण्टे का हकदार होता है। यदि वह उपस्थापना के समय से 48 घण्टे के अवसान पर प्रतिग्रहण करने से मना कर देता है, विनिमय पत्र अनादृत हो जाता है।
विनिमय पत्र को प्रतिग्रहण के पश्चात् धारक को वापसी परिदत्त किया जाना आवश्यक है, परिदत्त नहीं किये जाने की दशा में विनिमय पत्र को अनादृत माना जाता है।
जहाँ ऊपरवाल संविदा करने में अक्षम होता है, विनिमय पत्र को अनादृत माना जा सकता।
जहाँ ऊपरवाल विशेषित प्रतिग्रहण देता है, धारक विनिमय पत्र को अनादृत मान सकता है।
जहाँ प्रतिग्रहण के लिए उपस्थापन से उन्मुक्त किया गया है एवं विनिमय पत्र को प्रतिग्रहीत नहीं किया जाता है, यह अनादृत माना जाता है। [धारा 61] राम राव जी बनाम प्रहलाद दास में यह धारित किया गया है कि विनिमय पत्र के अप्रतिग्रहण से धारक को तुरन्त लेखीवाल के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार प्रदत्त हो जाता है। अतः उसे विनिमय पत्र के परिवपक्वता तक या इसे संदाय के लिए उपस्थापित करने तक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं होती है।
असंदाय द्वारा अनादर अधिनियम की धारा 92 वचन पत्र विनिमय पत्र या चेक का असंदाय के वजह से अनादर का उपबन्ध करती है। यह तब होता है जब वचन पत्र का रचयिता, विनिमय पत्र का प्रतिग्रहीता एक चेक का ऊपरवाल सम्यक् रूप से इसे संदाय के लिए उपस्थापित करने पर, संदाय करने में व्यतिक्रम करता है।
एक लिखत असंदाय से अनादृत हो सकता है, यदि 1. संदाय के लिए उपस्थापना पर एक वचन पत्र में, विनिमय पत्र या चेक को जब सम्यक् रूप से संदाय के उपस्थापित करने पर, संदाय मना कर दिया जाता है या इसे अभिप्राप्त नहीं किया जा सकता है।
जहाँ संदाय के लिये उपस्थापना से माफी किया गया है और लिखत अतिशोध्य होने पर असंदत रह जाता है। (धारा 76)
असंदाय से माना हुआ अनादर (धारा 76)
धारा 76 (क) इन परिस्थितियों का वर्णन करती है जिसके अन्तर्गत असंदाय से धारक लिखत को अनादृत मान सकता है
यदि रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता उपस्थापन साशय निवारित करता है।
जहाँ लिखत उसके कारबार के स्थापन पर देय है, यदि वह कारवार के दिन कारबार के प्रारम्भिक समय के दौरान में ऐसा स्थान बन्द कर देता है।
किसी अन्य विनिर्दिष्ट स्थान में देय लिखत की दशा में यदि न तो वह और न उसका संदाय करे के लिए अधिकृत कोई व्यक्ति कारबार के प्रायिक समय के दौरान में ऐसे स्थान में हाजिर रहता है।
किसी विनिर्दिष्ट स्थान में देय लिखत न होने की दशा में यदि वह सम्यक् तलाशी के पश्चात् नहीं पाया जा सकता है।
"अनादर" अभिव्यक्ति की व्याख्या केवल इस धारा में अनुध्यात से केवल अर्थ नहीं लेना चाहिए, परन्तु अन्य अनिश्चितताओं से भी लिया जाना चाहिए वहाँ भी अनादर हो सकता है जहाँ रचयिता वचन पत्र में अपने दायित्व को पूरा करने से मना कर देता है।