राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की कठिनाइयों को दूर करने और नियम बनाने की राज्य सरकार की शक्तियाँ – धारा 30 और 31

धारा 30 – कठिनाइयाँ दूर करने की शक्ति
कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी कानून को लागू करने में व्यवहारिक समस्याएँ (Practical Difficulties) आ जाती हैं। ऐसा ही कुछ अगर राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) के साथ हो, तो इस कानून की धारा 30 राज्य सरकार को यह अधिकार (Power) देती है कि वह ऐसी किसी भी कठिनाई (Difficulty) को दूर करने के लिए एक आदेश (Order) जारी कर सकती है।
यह आदेश तभी जारी हो सकता है जब वह कानून के अन्य प्रावधानों (Provisions) के विपरीत न हो और उस समस्या को हल करने के लिए आवश्यक या उपयुक्त (Necessary or Expedient) हो।
लेकिन इस शक्ति पर एक समय-सीमा (Time Limit) भी तय की गई है। अधिनियम लागू होने की तारीख से केवल तीन वर्ष की अवधि तक ही राज्य सरकार यह विशेष शक्ति प्रयोग कर सकती है। उसके बाद, चाहे कोई भी कठिनाई क्यों न आए, इस विशेष व्यवस्था के तहत आदेश नहीं दिया जा सकता।
यह भी आवश्यक है कि राज्य सरकार जो भी ऐसा आदेश जारी करे, वह 'राजपत्र' (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाए ताकि जनता को उसके बारे में जानकारी मिल सके।
उदाहरण:
मान लीजिए कि इस अधिनियम में कहीं स्पष्ट नहीं है कि किरायेदार द्वारा ऑनलाइन किराया जमा करने की स्थिति में मकान मालिक को उसकी सूचना कैसे दी जाए, और इस वजह से मकान मालिक विवाद खड़ा कर देता है। अगर अधिनियम में इस बारे में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है और किरायेदारों को परेशानी हो रही है, तो राज्य सरकार इस विषय पर एक नियम/आदेश जारी कर सकती है जिससे यह समस्या हल हो सके।
धारा 31 – नियम बनाने की शक्ति (Power to Make Rules)
राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह इस अधिनियम को लागू करने के उद्देश्य (For Carrying out the Purposes of the Act) से आवश्यक नियम (Rules) बना सकती है। यह अधिकार कानून को कारगर बनाने के लिए दिया गया है ताकि व्यवहार में आने वाली बातों का संचालन सही तरीक़े से किया जा सके।
जब राज्य सरकार कोई नियम बनाती है, तो वह नियम भी विधानसभा (State Legislature) के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं। नियमों को विधानसभा के सामने प्रस्तुत करने की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि नियम पारदर्शिता (Transparency) और विधिक जांच (Legislative Scrutiny) से गुजरें।
यह नियम विधानसभा में प्रस्तुत किए जाने के बाद लगातार चौदह दिनों तक रखे जाते हैं। यह चौदह दिन एक सत्र (Session) या दो लगातार सत्रों में पूरे किए जा सकते हैं।
यदि विधानसभा यह तय करती है कि कोई नियम बदला जाए या उसे पूरी तरह रद्द कर दिया जाए, तो वह नियम आगे से उसी रूप में प्रभावी होगा जैसा कि संशोधित (Modified) किया गया हो या वह अमान्य (Invalid) हो जाएगा। लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि यदि किसी नियम को बाद में अमान्य किया गया, तो उसके पहले किए गए कामों की वैधता (Validity of Past Actions) बनी रहेगी।
उदाहरण:
मान लीजिए कि राज्य सरकार यह नियम बनाती है कि किरायेदार को किराया जमा करने के लिए Rent Authority की वेबसाइट पर लॉग-इन करना होगा और एक निर्धारित फॉर्म भरना होगा। यह नियम अधिनियम के उद्देश्य को पूरा करता है, इसलिए इसे बनाना सरकार का अधिकार है। लेकिन अगर विधानसभा को लगे कि यह फॉर्म बहुत जटिल है और आम जनता को परेशानी हो रही है, तो वह इसे संशोधित करने या रद्द करने का प्रस्ताव पास कर सकती है।
धारा 30 और 31, राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की दो अहम व्यवस्थाएँ हैं जो राज्य सरकार को इस कानून के लागू होने में आने वाली चुनौतियों से निपटने और स्पष्टता बनाए रखने का अवसर देती हैं।
धारा 30 यह सुनिश्चित करती है कि अगर अधिनियम के प्रावधानों में कोई कमी रह जाए, तो सरकार आवश्यक दिशा-निर्देश दे सके। वहीं, धारा 31 यह सुनिश्चित करती है कि कानून के रोज़मर्रा के संचालन के लिए सरकार आवश्यक नियम बना सके और यदि ज़रूरत हो, तो विधानसभा इन नियमों पर अपनी मंज़ूरी या असहमति व्यक्त कर सके।
ये प्रावधान यह भी दिखाते हैं कि कानून केवल स्थिर शब्दों का संग्रह नहीं होता, बल्कि उसे व्यावहारिक बनाना और समय के साथ-साथ आवश्यकतानुसार ढालना भी उतना ही ज़रूरी होता है। इसीलिए, सरकार को कुछ सीमित शक्तियाँ दी गई हैं ताकि कानून का उद्देश्य (Purpose of the Act) पूरा किया जा सके और जनता को राहत मिल सके।