खाते के मामलों में Court Fee कैसे लगेगी – राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 33

Update: 2025-04-18 12:52 GMT
खाते के मामलों में Court Fee कैसे लगेगी – राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 33

जब कोई व्यक्ति Court में मुकदमा करता है, तो उसे Court Fee (अदालत शुल्क) देना होता है। यह शुल्क इस आधार पर तय होता है कि वह किस प्रकार का मुकदमा है और उसमें कितनी राशि का दावा किया गया है। Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 में अलग-अलग प्रकार के मामलों में Court Fee कैसे लगेगी, यह साफ-साफ बताया गया है।

ऐसे कई मुकदमे होते हैं जिनमें यह साफ नहीं होता कि वास्तव में कितनी राशि किसी पक्ष को मिलनी चाहिए। खासकर ऐसे मामलों में जहाँ Accounts (लेखा-जोखा) बनाना या जाँच करना जरूरी हो, वहाँ Court Fee से जुड़े कुछ अलग प्रावधान होते हैं। इस तरह के मामलों को “Suits for Accounts” कहा जाता है। धारा 33 (Section 33) इस प्रकार के मामलों से संबंधित है और यह बताती है कि ऐसे suits में Court Fee किस आधार पर तय होगी।

इस लेख में हम धारा 33 के हर sub-section को सरल हिंदी में समझेंगे, English शब्दों के अर्थ भी साथ में brackets में दिए गए हैं ताकि आम पाठक भी इसे आसानी से समझ सके। जहाँ जरूरी हुआ, वहाँ उदाहरण (Illustration) भी दिए गए हैं।

धारा 33(1): Plaint में अनुमानित राशि पर Court Fee देनी होगी (Court Fee Based on Estimated Amount in the Plaint)

जब कोई व्यक्ति किसी के खिलाफ Suit for Accounts दायर करता है, तो उसे Plaint (अर्थात मुकदमे की प्रारंभिक अर्जी) में यह अनुमान लगाना होता है कि उसे कितनी राशि मिलने की उम्मीद है। Court Fee उसी अनुमानित राशि (Estimated Amount) के आधार पर देनी होती है।

उदाहरण के लिए, अगर राम ने श्याम के खिलाफ एक व्यापारिक साझेदारी में हिस्सेदारी का हिसाब करने के लिए मुकदमा किया और उसने Plaint में लिखा कि उसे लगभग ₹50,000 मिलने चाहिए, तो उसे ₹50,000 के अनुसार Court Fee देनी होगी।

यह प्रावधान Section 32(8) से मिलता-जुलता है, जिसमें कहा गया है कि जब Mortgage (बंधक) का मामला हो तो Court Fee Plaint में बताई गई राशि पर ही लगेगी।

धारा 33(2): अगर वास्तविक राशि ज्यादा निकले, तो अतिरिक्त Court Fee देनी होगी (Additional Court Fee Payable if Actual Amount is Higher)

मुकदमे के दौरान अगर Court को यह पता चलता है कि Plaintiff (मुकदमा दायर करने वाला) को Plaint में बताई गई राशि से ज्यादा पैसा मिलना चाहिए, तो Court तब तक Decree (आदेश) पास नहीं करेगा जब तक Plaintiff उस Extra राशि पर लगने वाली Additional Court Fee नहीं चुका देता।

उदाहरण: अगर राम ने ₹50,000 का अनुमान लगाकर Fee दी और मुकदमे में Court ने पाया कि श्याम को वास्तव में ₹80,000 देना है, तो राम को ₹30,000 पर लगने वाली Extra Fee देनी होगी। तभी Court ₹80,000 का Decree पास करेगा।

यह बात Section 32(8) से भी मेल खाती है, जिसमें कहा गया है कि अगर Mortgage की रकम Plaint में दी गई राशि से अधिक पाई जाती है, तो Plaintiff को Extra Fee देनी होगी।

धारा 33(3): Extra Court Fee समय पर नहीं दी, तो Decree सीमित रहेगा (If Additional Fee Not Paid in Time, Decree Will Be Limited)

अगर Plaintiff निर्धारित समय में Extra Fee नहीं देता, तो Court सिर्फ उतनी ही राशि का Decree पास करेगा, जितनी राशि पर Fee पहले दी गई थी।

उदाहरण: अगर राम को ₹80,000 मिलना है पर उसने Fee केवल ₹50,000 पर दी है और शेष ₹30,000 की Fee Court द्वारा तय समय में नहीं दी, तो Court केवल ₹50,000 का ही Decree पास करेगा।

यह नियम इस बात को सुनिश्चित करता है कि Plaintiff जानबूझकर अपनी राशि कम न बताए और बाद में Extra Fee देने से बच न सके।

धारा 33(4): Defendant को राशि मिलने पर उसे भी Court Fee देनी होगी (If Defendant is Entitled to Amount, He Too Must Pay Court Fee)

अगर मुकदमे में Court यह पाता है कि Plaintiff को कोई राशि नहीं मिलनी चाहिए बल्कि Defendant (उत्तरदाता) को ही कुछ राशि मिलनी चाहिए, तो Court तब तक कोई Decree पास नहीं करेगा जब तक Defendant भी उस राशि पर लगने वाली Court Fee न चुका दे।

उदाहरण: अगर Court को पता चलता है कि राम को कुछ नहीं मिलना चाहिए बल्कि उसे ही श्याम को ₹20,000 देने हैं, तो Court तब तक श्याम के पक्ष में Decree नहीं देगा जब तक श्याम ₹20,000 पर लगने वाली Court Fee न भर दे।

यह नियम न्याय की दृष्टि से बहुत आवश्यक है और यह सुनिश्चित करता है कि Defendant भी यदि मुकदमे से लाभ पाता है, तो उसे भी Court Fee देनी ही होगी।

यह प्रावधान Section 32(4) की तरह है, जहाँ कहा गया है कि अगर Defendant Co-mortgagee होकर ज्यादा राशि का दावा करता है तो उसे भी Extra Court Fee देनी होगी।

Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 की धारा 33 खास तौर पर उन मामलों के लिए बनाई गई है जहाँ Plaintiff को यह नहीं पता होता कि उसे कितनी राशि मिलने वाली है, और इसका निर्णय मुकदमे की सुनवाई के बाद ही हो सकता है। ऐसे मामलों में एक अनुमानित राशि के आधार पर Court Fee दी जाती है, पर अगर मुकदमे के दौरान स्पष्ट होता है कि असली राशि अधिक है, तो Plaintiff को Extra Fee भरनी पड़ती है।

यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी पक्ष Court Fee से बच न सके और Court के समय और संसाधनों का दुरुपयोग न हो। चाहे Plaintiff हो या Defendant, अगर उन्हें कोई Decree अपने पक्ष में चाहिए, तो उन्हें अपनी देय Court Fee भरनी ही होगी।

धारा 33, धारा 32 के जैसे ही नियमों को आगे बढ़ाती है – जैसे कि बंधक (Mortgage) मामलों में Court Fee कैसे तय होगी। यह सभी प्रावधान इस बात को स्पष्ट करते हैं कि मुकदमे की ईमानदारी और न्याय सुनिश्चित करने के लिए सही Court Fee का भुगतान बहुत जरूरी है।

यदि आप एक वादी (Plaintiff) या प्रतिवादी (Defendant) हैं और कोई ऐसा मुकदमा दायर कर रहे हैं या आपके खिलाफ ऐसा मुकदमा है जिसमें accounts तैयार करने की आवश्यकता है, तो यह जरूरी है कि आप धारा 33 को अच्छे से समझें। सही अनुमान लगाएँ, सही समय पर Court Fee भरें और न्यायिक प्रक्रिया का पूरा सम्मान करें।

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