अपील की सुनवाई की प्रक्रिया जब उसे तुरंत खारिज नहीं किया गया हो – धारा 426 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Update: 2025-04-18 12:54 GMT
अपील की सुनवाई की प्रक्रिया जब उसे तुरंत खारिज नहीं किया गया हो – धारा 426 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

आपराधिक न्याय व्यवस्था (Criminal Justice System) में अपील (Appeal) की प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब किसी व्यक्ति को निचली अदालत (Lower Court) द्वारा दोषी (Convicted) ठहराया जाता है, तो उसे यह अधिकार (Right) होता है कि वह उस निर्णय (Decision) को ऊपरी अदालत (Appellate Court) में चुनौती दे सके।

लेकिन जरूरी नहीं कि हर अपील पर तुरंत सुनवाई हो। कभी-कभी अगर अपीलीय अदालत को लगता है कि अपील में कोई मजबूत आधार (Strong Ground) नहीं है, तो वह उसे बिना किसी लंबी प्रक्रिया के तुरंत खारिज (Dismiss) कर सकती है। इसे Summary Dismissal कहा जाता है, जिसे धारा 425 में समझाया गया है।

लेकिन यदि अपीलीय अदालत यह तय करती है कि अपील को तुरंत खारिज नहीं किया जाना चाहिए और उस पर पूरी सुनवाई होनी चाहिए, तो फिर धारा 426 लागू होती है। यह धारा पूरी प्रक्रिया बताती है कि ऐसी स्थिति में अदालत को क्या-क्या करना होता है।

धारा 426 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 कब लागू होती है? (When Section 426 Applies)

यह धारा तभी लागू होती है जब अदालत अपील की प्रारंभिक जांच (Preliminary Examination) के बाद यह तय कर ले कि इसे तुरंत खारिज नहीं किया जाना चाहिए। यानी जब अपील धारा 425 की छंटनी से बच जाती है, तब यह धारा उसके बाद की प्रक्रिया तय करती है।

अपीलीय अदालत की ज़िम्मेदारी – संबंधित पक्षों को सूचना देना (Duty of the Appellate Court to Notify the Parties)

धारा 426 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अनुसार, जब अपील को पूरी तरह से सुना जाना है, तो अदालत को सभी संबंधित पक्षों को यह सूचना (Notice) देना जरूरी है कि अपील की सुनवाई कब और कहाँ होगी। इसका मकसद यह है कि कोई भी पक्ष बिना जानकारी के न्याय से वंचित न रह जाए।

चार प्रकार के लोगों/पक्षों को सूचना देना अनिवार्य है:

1. अपीलकर्ता या उसके वकील को (Appellant or His Advocate) – जिसने अपील दायर की है, उसे या उसके वकील को सूचना देना अनिवार्य है क्योंकि वही इस प्रक्रिया का मुख्य पक्ष होता है।

2. राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी को (Officer Appointed by the State Government) – राज्य सरकार (State Government) अपीलों की प्रक्रिया के लिए एक अधिकारी नियुक्त कर सकती है। यह अधिकारी अभियोजन (Prosecution) पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है।

3. शिकायतकर्ता को (Complainant in Complaint Cases) – यदि मामला पुलिस की रिपोर्ट पर नहीं बल्कि किसी व्यक्ति की निजी शिकायत (Private Complaint) से शुरू हुआ था, तो उस शिकायतकर्ता को सूचना दी जानी चाहिए।

4. धारा 418 या 419 के तहत अपील होने पर अभियुक्त को (Accused in Appeals under Section 418 or 419) – अगर अपील राज्य सरकार ने अभियुक्त की बरी (Acquittal) या हल्की सजा (Insufficient Sentence) के खिलाफ की है, तो अभियुक्त को भी सूचना देना आवश्यक है।

इसके अलावा, अदालत को इन सभी पक्षों को अपील के आधारों की एक प्रति (Copy of the Grounds of Appeal) भी देनी होती है, ताकि सभी को यह पता हो कि अपील में क्या-क्या बातें उठाई गई हैं।

मूल रिकॉर्ड मंगवाना (Calling for the Record of the Case)

सूचना देने के बाद, अदालत को यह सुनिश्चित करना होता है कि उसके पास निचली अदालत के फैसले और कार्यवाही का पूरा रिकॉर्ड (Full Record) हो। अगर रिकॉर्ड पहले से मौजूद नहीं है, तो उसे मंगवाना आवश्यक होता है।

यह इसलिए जरूरी है क्योंकि जब तक अदालत को पूरी जानकारी नहीं होगी कि पहले क्या हुआ था, तब तक वह न्यायपूर्ण फैसला नहीं ले सकती।

सिर्फ सजा से संबंधित अपील होने पर विशेष प्रावधान (Exception for Sentence-Only Appeals)

लेकिन अगर अपील सिर्फ सजा की मात्रा (Extent) या वैधता (Legality) को लेकर है, यानी अपीलकर्ता यह नहीं कह रहा कि वह दोषी नहीं है बल्कि सिर्फ यह कह रहा है कि सजा बहुत ज्यादा है या गलत है, तो अदालत बिना पूरा रिकॉर्ड मंगवाए भी अपील का निपटारा कर सकती है।

उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति को चोरी के आरोप में 10 साल की सजा मिली है, और वह कहता है कि अधिकतम सजा सिर्फ 7 साल हो सकती थी, तो अदालत सिर्फ सजा से संबंधित दस्तावेज़ देखकर निर्णय ले सकती है।

नए आधार उठाने पर प्रतिबंध (Restriction on Raising New Grounds)

धारा 426 यह भी कहती है कि अगर अपील का आधार सिर्फ सजा की कठोरता (Severity of Sentence) है, तो अपीलकर्ता कोई और आधार नहीं उठा सकता जब तक अदालत उसे विशेष अनुमति (Leave of the Court) न दे।

इसका मतलब यह है कि यदि आपने अपनी अपील में सिर्फ सजा को चुनौती दी है, तो आप यह नहीं कह सकते कि आपने अपराध किया ही नहीं, जब तक कि अदालत इसकी इजाज़त न दे।

उदाहरण (Illustration)

मान लीजिए रमेश को चोरी के मामले में दोषी ठहराकर 3 साल की सजा दी गई है। वह इस फैसले को सत्र न्यायालय (Sessions Court) में चुनौती देता है। उसकी अपील अदालत के सामने जाती है और अदालत यह पाती है कि अपील में कुछ दम है और इसे तुरंत खारिज नहीं किया जाना चाहिए। तब धारा 426 लागू होती है।

अब अदालत रमेश या उसके वकील को सुनवाई की तारीख, समय और स्थान की सूचना देती है। यदि मामला निजी शिकायत (Complaint Case) से शुरू हुआ था, तो शिकायतकर्ता को भी सूचना दी जाती है। इसके अलावा, राज्य सरकार के अधिकारी को भी नोटिस दिया जाता है।

इसके बाद अदालत मुकदमे का पूरा रिकॉर्ड मंगवाती है और सुनवाई शुरू होती है। लेकिन अगर रमेश की अपील सिर्फ यह कहती है कि 3 साल की सजा बहुत ज्यादा है और वह सिर्फ सजा की मात्रा से असंतुष्ट है, तो अदालत बिना रिकॉर्ड मंगवाए भी अपील निपटा सकती है।

साथ ही, रमेश को अन्य मुद्दों (जैसे कि वह निर्दोष है) पर बहस करने की इजाज़त नहीं मिलेगी, जब तक कि अदालत स्वयं उसे ऐसा करने की अनुमति न दे।

धारा 426, भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अपीलीय प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा है। यह सुनिश्चित करती है कि जब कोई अपील तुरंत खारिज नहीं होती, तो उसे उचित और पारदर्शी ढंग से सुना जाए। इस धारा के अनुसार, सभी पक्षों को सूचना देना, अपील के आधार साझा करना और रिकॉर्ड मंगवाना जरूरी होता है।

इसके अलावा, यह धारा सुनवाई की प्रक्रिया को सुचारु बनाने के लिए कुछ अपवाद (Exceptions) भी प्रदान करती है और यह सुनिश्चित करती है कि अपील की प्रक्रिया का दुरुपयोग (Misuse) न हो।

इस प्रकार, धारा 426 न्याय और प्रक्रिया के संतुलन को बनाए रखते हुए अपीलों को प्रभावी रूप से निपटाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसे समझना न सिर्फ वकीलों और कानून के छात्रों के लिए, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी जरूरी है ताकि वे न्यायिक प्रक्रिया की गहराई को बेहतर ढंग से समझ सकें।

Tags:    

Similar News