क्या राष्ट्रीयकृत बैंक का अधिकारी सरकारी मंज़ूरी के बिना Section 197 CrPC की सुरक्षा का हकदार हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने ए. श्रीनिवास रेड्डी बनाम राकेश शर्मा व अन्य (Criminal Appeal No. 2339 of 2023, निर्णय दिनांक 8 अगस्त 2023) में यह स्पष्ट किया कि क्या राष्ट्रीयकृत (Nationalised) बैंक के एक अधिकारी को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 - CrPC) की धारा 197 के तहत सरकारी मंज़ूरी के बिना अभियोजन (Prosecution) से सुरक्षा प्राप्त हो सकती है।
इस फैसले में कोर्ट ने यह साफ किया कि सभी पब्लिक सर्वेंट (Public Servant) को इस धारा के तहत सुरक्षा नहीं मिलती, विशेष रूप से जब वे ऐसे पद पर नहीं हैं जिन्हें हटाने के लिए सरकार की मंज़ूरी आवश्यक हो।
धारा 197 CrPC की सुरक्षा किन्हें मिलती है? (Who Can Claim Protection under Section 197 CrPC?)
CrPC की धारा 197(1) के अनुसार, यदि कोई लोक सेवक (Public Servant) अपनी ड्यूटी के दौरान कोई अपराध करता है, तो उस पर मुकदमा चलाने से पहले सरकार की अनुमति (Sanction) लेना आवश्यक होता है। लेकिन यह सुरक्षा सिर्फ उन्हीं को मिलती है जिन्हें उनके पद से हटाने के लिए सरकार की मंज़ूरी जरूरी हो।
इस केस में अपीलकर्ता (Appellant) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में असिस्टेंट जनरल मैनेजर थे। कोर्ट ने यह कहा कि भले ही वह पब्लिक सर्वेंट थे, लेकिन वह ऐसे पद पर नहीं थे जिसे हटाने के लिए सरकार की अनुमति लेनी पड़े। इसलिए उन्हें Section 197 CrPC की सुरक्षा नहीं मिल सकती।
CrPC की धारा 197 और Prevention of Corruption Act की धारा 19 में अंतर (Difference between Section 197 CrPC and Section 19 of PC Act)
कोर्ट ने बताया कि CrPC की धारा 197 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act, 1988 - PC Act) की धारा 19 अलग-अलग स्थिति में लागू होती हैं। CrPC की धारा 197 केवल उन्हीं अपराधों पर लागू होती है जो भारतीय दण्ड संहिता (IPC) के तहत होते हैं और जो अधिकारी की ड्यूटी से जुड़े हों।
जबकि धारा 19 PC Act उन अपराधों पर लागू होती है जो घूस (Bribery) और पद का दुरुपयोग (Misuse of Position) जैसे हैं, और ये कृत्य कभी भी अधिकारी की वैधानिक ड्यूटी (Official Duty) का हिस्सा नहीं माने जा सकते।
“Public Servant” की व्याख्या (Interpretation of the Term “Public Servant”)
कोर्ट ने दोहराया कि हर Public Servant को CrPC की धारा 197 के तहत संरक्षण (Protection) नहीं मिलता। यह सिर्फ उन्हीं को मिलता है जिन्हें सरकार की मंज़ूरी के बिना नहीं हटाया जा सकता।
यह बात कोर्ट ने के. च. प्रसाद बनाम जे. वनलता देवी (1987) 2 SCC 52 और एस.के. मिगलानी बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) (2019) 6 SCC 111 में भी कही थी। इन मामलों में यह साफ किया गया कि राष्ट्रीयकृत बैंक के अधिकारी धारा 197 की सुरक्षा के दायरे में नहीं आते।
IPC अपराधों पर मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं (No Protection under Section 197 Even If Accused is a Public Servant)
अपीलकर्ता ने यह भी दलील दी कि क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Act) के तहत मंज़ूरी नहीं दी गई थी, इसलिए IPC के तहत भी उन्हें अभियोजन से राहत मिलनी चाहिए। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज किया और कहा कि IPC और PC Act के तहत अपराध स्वतंत्र होते हैं। एक में मंज़ूरी का न होना दूसरे में भी अभियोजन को रोक नहीं सकता।
इस संबंध में कोर्ट ने कालिचरण महापात्र बनाम उड़ीसा राज्य (1998) 6 SCC 411 और लालू प्रसाद यादव बनाम बिहार राज्य (2007) 1 SCC 4 का उल्लेख किया। इन निर्णयों में कहा गया कि IPC और PC Act के अपराधों का अलग-अलग मूल्यांकन होता है और दोनों के लिए अलग-अलग प्रक्रिया होती है।
विभागीय क्लीन चिट अभियोजन को नहीं रोकती (Departmental Clearance Does Not Bar Criminal Prosecution)
अपीलकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि उन्हें विभागीय जांच में क्लीन चिट मिल चुकी है, इसलिए अभियोजन नहीं चलाया जाना चाहिए। कोर्ट ने इसे अस्वीकार किया और कहा कि विभागीय कार्यवाही (Departmental Inquiry) और आपराधिक कार्यवाही (Criminal Trial) दोनों अलग हैं। यदि अपराध के लिए पर्याप्त प्राथमिक साक्ष्य हैं, तो आपराधिक प्रक्रिया चल सकती है।
कोर्ट का निष्कर्ष (Conclusion of the Court)
कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि अपीलकर्ता को CrPC की धारा 197 के तहत कोई सुरक्षा नहीं मिलती क्योंकि वह ऐसे पद पर नहीं थे जिसे सरकार की अनुमति के बिना हटाया नहीं जा सकता। उन्होंने बैंक लोन देने के नियमों का उल्लंघन किया था और उनके कार्य “Official Duty” के दायरे में नहीं आते थे।
कोर्ट ने स्पष्ट किया:
• सिर्फ पब्लिक सर्वेंट होने से CrPC की धारा 197 की सुरक्षा नहीं मिलती।
• IPC और PC Act के अपराध अलग होते हैं और उन्हें अलग-अलग ट्रायल किया जा सकता है।
• अगर PC Act के तहत मंज़ूरी नहीं मिली, तो IPC के तहत अभियोजन फिर भी संभव है यदि CrPC की धारा 197 लागू नहीं होती।
इस फैसले से यह संदेश स्पष्ट हो जाता है कि CrPC की धारा 197 के तहत संरक्षण कोई सार्वभौमिक छूट नहीं है। सिर्फ उन्हीं अधिकारियों को यह सुरक्षा मिलती है जिनकी नियुक्ति और हटाना सरकारी अनुमति के अधीन होता है। राष्ट्रीयकृत बैंक के अधिकारी इस श्रेणी में नहीं आते।
यह फैसला विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी है जहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अधिकारी भ्रष्टाचार या धोखाधड़ी के आरोपों का सामना कर रहे हैं। यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि ईमानदार अधिकारियों को अनुचित कार्यवाही से बचाया जाए, लेकिन साथ ही यह भी कि भ्रष्टाचार करने वालों को कानून के दायरे से छूट न मिले।