केरल हाईकोर्ट ने कंवर्जन थैरेपी कराने के दबाव का सामना कर रही ट्रांसवुमन को पेश करने का आदेश दिया

Update: 2024-06-28 05:12 GMT

केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई। उक्त याचिका में आरोप लगाया गया कि कोच्चि के अमृता अस्पताल में ट्रांसवुमन को कंवर्जन थैरेपी (Conversion Therapy) करवाने का दबाव बनाया जा रहा है।

जस्टिस अमित रावल और जस्टिस ईश्वरन एस की खंडपीठ ने सोमवार को एलिडा रुबिएल को न्यायालय में पेश करने का आदेश दिया। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि इस बीच उस पर कोई सर्जरी नहीं की जानी चाहिए।

याचिका एलिडा की दोस्त ने दायर की। याचिका में कहा गया कि ट्रांसवुमन की पहचान उजागर होने के बाद उसके परिवार ने उसे मानसिक और मौखिक रूप से प्रताड़ित किया। इस पर उसने एनजीओ से संपर्क किया, जिसने पलारीवट्टोम पुलिस थाने में उसकी ओर से शिकायत दर्ज कराई।

याचिका के अनुसार, पुलिस ने एलिडा और उसके पिता को थाने आने को कहा। एलिडा ने अपने पिता के सामने पुलिस को सारी बातें बताईं। हालांकि, पुलिस ने बिना जांच किए एलिडा को उसके पिता के साथ वापस जाने को कहा।

याचिका में आगे कहा गया कि एलिडा को अमृता अस्पताल ले जाया गया और उससे जबरन कुछ सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर करवाए गए। उसने याचिकाकर्ता को बताया कि उसे आशंका है कि उसे जबरन कंवर्जन थैरेपी करवानी पड़ेगी। आगे आरोप लगाया गया कि अमृता अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख ने धमकी दी कि अगर वह छुट्टी लेने की कोशिश करती है तो वह एलिडा को मानसिक रूप से बीमार करार दे देंगे।

नालसा बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को जेंडर पहचान के रूप में मान्यता दी है और माना है कि स्व-परिभाषित जेंडर पहचान किसी व्यक्ति का अभिन्न अंग है और यह आत्मनिर्णय, गरिमा और स्वतंत्रता की सबसे बुनियादी विशेषताओं में से एक है।

हाईकोर्ट ने पहले जबरन कंवर्जन थैरेपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आदेश दिया है।

याचिका में कहा गया कि कंवर्जन थैरेपी अवैज्ञानिक प्रथा है।

इसमें कहा गया,

"कंवर्जन थैरेपी अवैज्ञानिक छद्म मेडिकल पद्धति है, जो समलैंगिक लोगों के यौन अभिविन्यास को विषमलैंगिक अभिविन्यास में "रूपांतरित" करने का प्रयास करती है। साथ ही उन पर जबरन विवाह करने का दबाव बनाती है।"

केस टाइटल: आदित्य किरण बनाम स्टेशन हाउस ऑफिसर और अन्य

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