लिव-इन पार्टनर से भरण-पोषण का हक़ नहीं, जब उसी पर लगाया हो रेप का आरोप: जम्मू-कश्मीर-लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि कोई महिला अपने लिव-इन पार्टनर से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती यदि उसने उसी पर रेप का आरोप लगाया हो और उसे दोषी ठहराया गया हो।
जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने प्रिंसिपल सेशन जज कठुआ का आदेश बरकरार रखा, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा महिला को दी गई अंतरिम भरण-पोषण राशि को रद्द कर दिया गया था।
महिला का कहना था कि वह 10 वर्षों तक प्रतिवादी के साथ रही एक बच्चा भी हुआ और विवाह का आश्वासन दिया गया लेकिन शादी नहीं हुई। उसने दलील दी कि लंबे समय तक साथ रहने के कारण उसे पत्नी की तरह भरण-पोषण पाने का अधिकार है।
हाईकोर्ट ने माना कि महिला ने स्वयं ही प्रतिवादी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) का मुकदमा दायर किया और प्रतिवादी दोषी भी ठहराया गया। ऐसे में दोनों को पति-पत्नी के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा कि CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा तभी किया जा सकता है, जब पति-पत्नी का वैधानिक या मान्य संबंध हो।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नाबालिग बच्चे को पहले से मिल रही भरण-पोषण राशि पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
अदालत ने कहा,
“जब महिला ने ही प्रतिवादी पर IPC की धारा 376 का आरोप लगाया और उसे दोषी ठहराया गया तब पति-पत्नी का संबंध स्थापित नहीं किया जा सकता। यदि वे सचमुच पति-पत्नी होते तो सहमति से साथ रहना अपराध नहीं बनता।”
अंततः हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल मजिस्ट्रेट ने अंतरिम भरण-पोषण देकर गलती की और रिविजनल कोर्ट का आदेश सही है।