बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी न देना ड्यूटी छोड़ने का कोई आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सीआरपीएफ कर्मियों का वेतन रोकने का फैसला बरकरार रखा
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने ड्यूटी से अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सीआरपीएफ कर्मियों के वेतन रोकने का फैसला बरकरार रखा। कोर्ट ने उक्त फैसला यह देखते हुए बरकरार रखा कि बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी न देना बिना अनुमति के ड्यूटी छोड़ने का आधार नहीं हो सकता।
सीआरपीएफ में कांस्टेबल मोहम्मद यूसुफ भट द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए जस्टिस सिंधु शर्मा ने कहा,
"छुट्टी देना या न देना सक्षम प्राधिकारी का विशेषाधिकार है, जिसे आवेदक के व्यक्तिगत अनुरोधों पर विचार करते समय प्रशासनिक और आधिकारिक कारकों पर विचार करना होता है। यह निर्णय का विरोध करने और अपने आप कार्रवाई करने का आधार नहीं हो सकता। छुट्टी न देना ड्यूटी छोड़ने का आधार नहीं हो सकता और इसे माफ नहीं किया जा सकता।"
भट को 1994 में सीआरपीएफ में कांस्टेबल के रूप में नियुक्त किया गया था और वह 185वीं बटालियन में तैनात थे। 2011 में उन्होंने अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए बिना अनुमति के अपनी ड्यूटी छोड़ दी और 63 दिनों तक अनुपस्थित रहे। उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया और न्यायिक परीक्षण किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि अपील पर सीआरपीएफ के आईजीपी ने संचयी प्रभाव से दो साल की अवधि के लिए दो वेतन वृद्धि रोकने के दंड के साथ उन्हें बहाल कर दिया।
भट ने अपने ऊपर लगाए गए दंड को चुनौती देते हुए कहा कि उसे सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया और यह दंड उसके द्वारा किए गए अपराध के अनुपात में नहीं था। उसने यह भी दावा किया कि उसने अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी के लिए आवेदन किया, लेकिन उसे छुट्टी नहीं दी गई।
दूसरी ओर प्रतिवादियों ने कहा कि याचिकाकर्ता बिना अनुमति के ड्यूटी से अनुपस्थित था और उसने अधिकारियों के फोन कॉल का जवाब नहीं दिया। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को भगोड़ा घोषित कर दिया गया और उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया लेकिन बाद में उसे दंड के साथ बहाल कर दिया गया।
इस मामले पर निर्णय देते हुए जस्टिस शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता जानबूझकर ड्यूटी से अनुपस्थित रहा और अधिकारियों से पूर्व अनुमति प्राप्त करने में विफल रहा।
इसमें कहा गया,
“संवेदनशील क्षेत्र में काम करने वाले अनुशासित बल के सदस्य के रूप में याचिकाकर्ता शिविर छोड़ने से पहले उचित अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता से पूरी तरह अवगत था। इस याचिका में उसके दावों का समर्थन करने वाले उसके छुट्टी आवेदन का कोई रिकॉर्ड भी नहीं है।”
यह देखते हुए कि बिना अनुमति के ड्यूटी से भट की अनुपस्थिति कदाचार के बराबर है, विशेष रूप से अनुशासित बल के सदस्य के लिए न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने विभागीय जांच के दौरान किसी भी प्रक्रियागत चूक को चुनौती नहीं दी।
न्यायालय ने भारत संघ और अन्य बनाम कांस्टेबल सुनील कुमार और उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य बनाम अशोक कुमार सिंह और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा किया और कहा कि याचिकाकर्ता यह दिखाने में विफल रहा है कि दी गई सजा साबित आरोपों के अनुपात में कैसे असंगत थी।
न्यायालय ने माना कि प्रतिवादियों ने इस तथ्य के बावजूद नरम रुख अपनाया कि याचिकाकर्ता अनुशासित बल का सदस्य था और उसे ड्यूटी पर बहाल कर दिया था।
पीठ ने टिप्पणी की,
"प्रतिवादियों ने दयालु दृष्टिकोण अपनाते हुए केवल वही सजा दी है, जो उचित थी, ऐसे में विवादित आदेश किसी भी हस्तक्षेप के योग्य नहीं है।"
अंत में न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और अनधिकृत अनुपस्थिति के कारण सीआरपीएफ कर्मियों का वेतन रोकना बरकरार रखा।
केस टाइटल- मोहम्मद यूसुफ भट बनाम भारत संघ