'बेबुनियाद दावों से सक्षम अधिकारियों के दस्तावेज़ों को अमान्य नहीं किया जा सकता': जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी मामलों में खास दलीलों की ज़रूरत पर ज़ोर दिया

Update: 2025-12-24 16:24 GMT

धोखाधड़ी का आरोप लगाते समय सटीक दलीलों की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि सक्षम अधिकारियों द्वारा जारी किए गए दस्तावेज़ों की सच्चाई के बारे में बड़े और बेबुनियाद आरोप लगाने से ऐसे दस्तावेज़ अविश्वसनीय नहीं हो जाएंगे।

जस्टिस संजय धर की बेंच ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी मुक़दमेबाज़ के लिए यह ज़रूरी है कि वह कथित धोखाधड़ी का पूरा ब्यौरा सबूतों के साथ दे।

ये टिप्पणियां एक याचिका खारिज करते हुए की गईं, जिसमें पेट्रोलियम आउटलेट की स्थापना के लिए वैधानिक अधिकारियों द्वारा दी गई अनुमतियों को यह देखते हुए चुनौती दी गई कि अस्पष्ट आरोप, जो ब्यौरे से समर्थित नहीं हैं, न्यायिक हस्तक्षेप का आधार नहीं हो सकते।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत यह याचिका बारामूला ज़िले में कृषि भूमि को गैर-कृषि उपयोग में बदलने और एक डीसी पॉइंट पेट्रोल पंप स्थापित करने की अनुमति देने से संबंधित विवाद से उत्पन्न हुई। याचिकाकर्ताओं ने ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ अपीलीय अदालत से लगातार प्रतिकूल आदेश मिलने के बाद हाई कोर्ट के पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का सहारा लिया।

यह विवाद इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा जम्मू और कश्मीर में रिटेल आउटलेट डीलरों की नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन से शुरू हुआ, जिसके बाद वादी और प्रतिवादी नंबर 7 दोनों ने आवेदन किया। वादी ने सब जज, बारामूला के समक्ष स्थायी निषेधाज्ञा के लिए यह तर्क देते हुए मुकदमा दायर किया कि प्रतिवादी नंबर 7 ने धोखाधड़ी और झूठे दस्तावेज़ों का सहारा लेकर भूमि उपयोग में बदलाव की अनुमति प्राप्त की थी।

वादियों के अनुसार, दी गई अनुमति केवल एक जीसी पेट्रोल पंप के लिए थी, न कि ग्रामीण रिटेल आउटलेट डीलरशिप के लिए और उसके बाद नियमों का उल्लंघन करते हुए पेट्रोल पंप स्थापित करने के लिए भूमि पट्टे पर दी गई। इन दावों के आधार पर वादियों ने डिप्टी कमिश्नर, बारामूला द्वारा दी गई अनुमति रद्द करने की मांग की।

प्रतिवादियों ने मुकदमे का विरोध करते हुए कहा कि सभी प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया गया और अनुमतियां कानून के अनुसार दी गईं। ट्रायल कोर्ट ने दलीलों का विश्लेषण करने के बाद इस आधार पर अंतरिम राहत देने से इनकार किया कि वादी एक मज़बूत प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में विफल रहे हैं। इस आदेश के खिलाफ अपील भी एडिशनल ज़िला जज, बारामूला ने खारिज की।

मामला जब हाईकोर्ट पहुंचा तो जस्टिस धर ने आर्टिकल 227 के तहत सुपरवाइजरी ज्यूरिस्डिक्शन की तय सीमाओं को दोहराते हुए कहा कि कोर्ट ट्रायल कोर्ट के आदेशों पर अपील कोर्ट के तौर पर काम नहीं करता है और सिर्फ़ ज्यूरिस्डिक्शन में गलती, बड़ी अनियमितता, या साफ़ तौर पर अन्याय के मामलों में ही दखल देगा।

कोर्ट ने ज़ोर देते हुए कहा,

"कानून में सिर्फ़ गलती या तथ्यों में गलती भी सुपरवाइजरी पावर का इस्तेमाल करने का आधार नहीं बन सकती, जब तक कि इससे न्याय में कोई कमी न आई हो।"

धोखाधड़ी के मुख्य तर्क पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि हालांकि याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि ज़मीन के इस्तेमाल में बदलाव की अनुमति धोखाधड़ी वाले और जाली दस्तावेज़ों पर आधारित थी, लेकिन न तो धोखाधड़ी की प्रकृति और न ही कथित जाली दस्तावेज़ों के बारे में शिकायत में या हाई कोर्ट के सामने याचिका में बताया गया।

एक साफ़ टिप्पणी में कोर्ट ने कहा,

"सक्षम अधिकारियों द्वारा जारी किए गए दस्तावेज़ों की सच्चाई के बारे में बड़े और बेबुनियाद आरोप लगाने से ऐसे दस्तावेज़ अविश्वसनीय नहीं हो जाएंगे। यह याचिकाकर्ताओं की ज़िम्मेदारी है, जिन्होंने धोखाधड़ी का आरोप लगाया, कि वे कथित धोखाधड़ी का ब्यौरा दें और इन आरोपों को सबूतों के साथ साबित करें।"

कोर्ट ने आगे कहा कि ज़रूरी ब्यौरे और सहायक सबूतों की गैरमौजूदगी में ऐसे आरोपों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

जस्टिस धर ने यह भी कहा कि नियमों और गाइडलाइंस के उल्लंघन के बारे में दावे सामान्य प्रकृति के हैं और उनमें ज़रूरी ब्यौरे की कमी है, जो ट्रायल कोर्ट्स द्वारा उन पर कार्रवाई करने से इनकार करने को सही ठहराता है।

इस दलील पर कि दी गई इजाज़त सिर्फ़ एक डीसी पॉइंट के लिए थी, न कि रिटेल आउटलेट पेट्रोल पंप के लिए कोर्ट ने बारामूला के डिप्टी कमिश्नर द्वारा जारी किए गए परमिशन लेटर की जांच की और पाया कि इसमें साफ़ तौर पर बताई गई जगह पर एक डीसी पॉइंट पेट्रोल पंप बनाने की इजाज़त दी गई।

कोर्ट ने पाया कि दूसरे विभागों द्वारा जारी किए गए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट भी डीसी पॉइंट पेट्रोल पंप के संबंध में हैं, जिसमें "पहली नज़र में, एक रिटेल पेट्रोलियम आउटलेट का संचालन भी शामिल होगा।"

कोर्ट ने बारामूला के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा जारी एक बाद के कम्युनिकेशन पर भी ध्यान दिया, जिसमें यह साफ़ किया गया कि अलग-अलग विभागों की रिपोर्ट और NOC के आधार पर रिटेल आउटलेट स्थापित करने के लिए NOC जारी किया गया, जिससे परमिशन की प्रकृति के बारे में कोई भी अस्पष्टता दूर हो गई। इस प्रकार कोर्ट ने माना कि इस संबंध में याचिकाकर्ताओं की दलील में कोई दम नहीं था।

निष्कर्ष में कोर्ट को ट्रायल कोर्ट और अपीलीय कोर्ट के एक जैसे फ़ैसलों में दखल देने का कोई आधार नहीं मिला और यह माना कि याचिका में कोई दम नहीं है। तदनुसार, याचिका को संबंधित आवेदनों के साथ खारिज कर दिया गया।

Case Title: Kafil Ahmad Mangral Vs Union of India

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