S.138 NI Act | स्वामित्व साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया जाता है तो शिकायतकर्ता को आदाता नहीं माना जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-07-12 14:40 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि जब कोई शिकायतकर्ता किसी एकल स्वामित्व वाली संस्था का स्वामित्व साबित करने में विफल रहता है तो उसे परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत आदाता या धारक नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने कहा कि शिकायत दर्ज होने के बाद जारी किया गया मात्र अधिकार पत्र ही प्राधिकरण का पर्याप्त प्रमाण नहीं है।

जस्टिस राकेश कैंथला:

"चूंकि वर्तमान मामले में यह दर्शाने के लिए कोई संतोषजनक सबूत पेश नहीं किया गया कि शिकायतकर्ता शिरगुल फिलिंग स्टेशन का मालिक है, इसलिए निचली अदालत ने सही ही माना था कि शिकायतकर्ता आदाता की परिभाषा में नहीं आता और वह NI Act की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने का हकदार नहीं है।"

पृष्ठभूमि तथ्य:

शिकायतकर्ता अंकुर अग्रवाल शिरगुल फिलिंग स्टेशन के प्रबंधक हैं। अभियुक्त हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग में रजिस्टर्ड सरकारी ठेकेदार है। उसके पास कई वाहन हैं। शिकायतकर्ता ने अभियुक्त को ईंधन की आपूर्ति की थी और अभियुक्त पर कथित तौर पर ईंधन की आपूर्ति के लिए 5,00,000/- बकाया थे।

देयता से मुक्ति पाने के लिए अभियुक्त ने एक चेक जारी किया। हालांकि, जब शिकायतकर्ता ने बैंक में चेक प्रस्तुत किया तो उसे अपर्याप्त धनराशि का पृष्ठांकन करके बाउंस कर दिया गया।

इसके बाद शिकायतकर्ता ने जारीकर्ता को 15 दिनों के भीतर भुगतान की मांग करते हुए नोटिस दिया। अभियुक्त ने कथित तौर पर नोटिस स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसे "अस्वीकार" पृष्ठांकन के साथ वापस कर दिया गया। शिकायतकर्ता ने इस इनकार को सेवा के रूप में माना और परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज कराई।

मुकदमे में यह पाया गया कि यद्यपि चेक शिरगुल फिलिंग स्टेशन के नाम पर जारी किया गया, अंकुर अग्रवाल द्वारा शिकायत केवल एक प्राधिकरण पत्र के आधार पर दर्ज की गई। निचली अदालत ने टिप्पणी की कि प्राधिकरण पत्र कानूनी नोटिस जारी होने और शिकायत दर्ज होने के बाद जारी किया गया।

निचली अदालत ने माना कि प्राधिकरण पत्र को सामान्य/विशेष मुख्तारनामा के समतुल्य नहीं माना जा सकता। अभिलेख में इस बात का कोई प्रमाण नहीं था कि शिवानी गुप्ता वास्तव में शिरगुल फिलिंग स्टेशन की स्वामिनी थीं। परिणामस्वरूप, निचली अदालत ने शिकायत को यह निष्कर्ष निकालते हुए खारिज कर दिया कि यह शिकायत आदाता द्वारा NI Act की धारा 138 के तहत अपेक्षित रूप से दायर नहीं की गई।

निष्कर्ष:

हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि अंकुर अग्रवाल ने अपनी क्रॉस एक्जामिनेशन में कहा था कि शिरगुल फिलिंग स्टेशन का स्वामित्व शिवानी गुप्ता के पास है, लेकिन उन्होंने यह दर्शाने के लिए कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया कि वे प्रबंधक के पद पर तैनात थे या शिकायत दर्ज करने के लिए अधिकृत थे। अभिलेख में प्रस्तुत एकमात्र साक्ष्य केवल उनका यह दावा था कि उनके पास विशेष मुख्तारनामा था।

इस प्रकार, न्यायालय ने टिप्पणी की कि शिरगुल फिलिंग स्टेशन के स्वामित्व के संबंध में अभिलेख में प्रस्तुत एकमात्र साक्ष्य अंकुर अग्रवाल का बयान था। अभियुक्त के लेखा विवरण में शिवानी गुप्ता का नाम भी नहीं था।

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा और कहा कि यह साबित करने के लिए कोई संतोषजनक सबूत पेश नहीं किया गया कि शिवानी गुप्ता शिरगुल फिलिंग स्टेशन की मालिक हैं। इसलिए निचली अदालत ने सही ही माना था कि शिकायतकर्ता आदाता की परिभाषा में नहीं आता है। वह NI Act की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने का हकदार नहीं है।

Case Name: Shirgul Filling Station V/s Kamal Sharma

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