तलाकशुदा पत्नी को केवल व्यभिचार के आधार पर भरण-पोषण पाने से वंचित नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-07-23 10:53 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा पत्नी केवल व्यभिचार के आधार पर भरण-पोषण पाने से स्वतः ही अयोग्य नहीं हो जाती।

जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने शिमला में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाले व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण देने में विफल रहने के बाद अचल संपत्ति की कुर्की के लिए वारंट जारी करने का आदेश दिया गया था।

संक्षेप में मामला

व्यभिचार (कथित रूप से पत्नी द्वारा किया गया) के आधार पर फरवरी 2007 में पति के पक्ष में तलाक का आदेश दिया गया। जनवरी 2009 में शिमला में जेएमएफसी कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण आदेश जारी किया, जिसमें पति को अपनी पूर्व पत्नी को प्रति माह 1,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

पति ने इस आदेश को चुनौती दी, लेकिन शिमला के जिला जज (वन) ने दिसंबर 2013 में उसकी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। भरण-पोषण आदेश को लागू करने के लिए पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 128 के तहत आवेदन दायर किया।

पति ने जवाब में याचिका पर आपत्ति दर्ज की, जिसमें तर्क दिया गया कि पत्नी सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है, जो पत्नी के व्यभिचार में रहने पर भरण-पोषण की अनुमति नहीं देता है।

पति ने दावा किया कि परित्याग, क्रूरता और व्यभिचार के आधार पर उसके पक्ष में तलाक का आदेश दिया गया। इसलिए उसने निष्पादन याचिका को खारिज करने की प्रार्थना की।

अपने बचाव में पत्नी ने जवाब दिया कि उसे मई 2008 में ही तलाक के बारे में पता चला। हालांकि उसने तलाक का आदेश रद्द करने के लिए आवेदन दायर किया, लेकिन अपनी जान को खतरे के कारण वह इसे आगे नहीं बढ़ा सकी।

इसके अलावा, उसने व्यभिचार में रहने से स्पष्ट रूप से इनकार किया और अदालत से पति की आपत्तियों को खारिज करने की प्रार्थना की।

इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में ट्रायल कोर्ट ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि तलाक के आदेश के बावजूद अंतरिम भरण-पोषण आदेश वैध था। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जब तक आदेश में बदलाव नहीं किया जाता या उसे रद्द नहीं किया जाता, तब तक उसे इसे निष्पादित करना अनिवार्य है। नतीजतन, पति की अचल संपत्ति के लिए कुर्की का वारंट जारी किया गया।

इसी आदेश को चुनौती देते हुए पति ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उसके वकील ने तर्क दिया कि चूंकि पत्नी व्यभिचार में रह रही है, इसलिए वह सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है।

दूसरी ओर, पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि व्यभिचार के आधार पर तलाक का आदेश पत्नी को अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं करेगा, क्योंकि धारा 125(4) उन पत्नियों पर लागू होती है, जो अभी भी अपने पतियों से विवाहित हैं और उन पत्नियों पर लागू नहीं होती, जिन्होंने तलाक ले लिया है।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने शुरू में रोहताश सिंह बनाम रामेंद्री में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि यदि पत्नी व्यभिचार में रह रही है, अपने पति के साथ रहने से इनकार कर रही है, या आपसी सहमति से अलग रह रही है तो वह अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं होगी; हालांकि, ये शर्तें केवल वैवाहिक संबंध जारी रहने तक ही लागू होती हैं, तलाक के बाद नहीं।

हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वप्न कुमार बनर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य 2019 में इस निर्णय का अनुसरण किया, जिसमें यह माना गया कि तलाकशुदा महिला उस व्यक्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है, जिससे वह पहले विवाहित थी।

उल्लेखनीय है कि स्वप्न कुमार मामले (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से माना कि भले ही पत्नी द्वारा परित्याग के आधार पर तलाक दिया गया हो, यह पत्नी को भरण-पोषण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता।

इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने पति के वकील की इस दलील खारिज की कि तलाकशुदा पत्नी अगर व्यभिचार में रह रही है तो उसे भरण-पोषण का अधिकार नहीं है।

यह निर्णय इस सिद्धांत को रेखांकित करता है कि भरण-पोषण का अधिकार तलाक के बाद पत्नी के निजी जीवन के बारे में नैतिक निर्णयों के बजाय वित्तीय सहायता की आवश्यकता पर आधारित है।

इसके अलावा, यह देखते हुए कि तलाक का आदेश फरवरी 2007 में दिया गया और अंतरिम भरण-पोषण की अनुमति जनवरी 2009 में दी गई, न्यायालय ने इस प्रकार टिप्पणी की:

“भरण-पोषण तब दिया गया जब पक्षकार पति-पत्नी नहीं रहे और तलाक का आदेश और तलाक की कार्यवाही के दौरान दर्ज किए गए निष्कर्ष तलाकशुदा पत्नी के भरण-पोषण के दावे को प्रभावित नहीं करेंगे। इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट ने इस आपत्ति को सही ढंग से खारिज किया कि पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है, क्योंकि वह व्यभिचारी जीवन जी रही थी।”

परिणामस्वरूप, पति की याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल- कृष्ण लाल बनाम चंपा देवी

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