सीआरपीसी की धारा 468 | परिसीमा की गणना की तारीख फाइनल रिपोर्ट दाखिल करने की तारीख है, एफआईआर दर्ज करने की नहीं: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि सीआरपीसी की धारा 469 के तहत परिसीमा अवधि की गणना की तारीख अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने की तारीख से होगी, न कि एफआईआर दर्ज करने की तारीख से।
जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि एफआईआर से उत्पन्न मामले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल होने पर मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लिया जाता है। अदालत ने कहा कि एफआईआर का आधार केवल पुलिस अधिकारियों द्वारा प्राप्त जानकारी है, न कि कोई "शिकायत" जिस पर संज्ञान लिया गया हो।
अदालत ने यह चर्चा उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें इस आधार पर जांच ट्रांसफर करने की मांग की गई कि पुलिस ने जांच पूरी करने के लिए कदम नहीं उठाए। अन्य मामले में याचिका एफआईआर रद्द करने के लिए है, क्योंकि फाइनल रिपोर्ट आज तक दायर नहीं की गई। इस प्रकार यह तर्क दिया गया कि संज्ञान लेने में बाधा है।
सुनवाई के दौरान, एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर ने अदालत को सूचित किया कि पहले मामले में फाइनल रिपोर्ट दायर की गई, लेकिन चूंकि अंतिम रिपोर्ट परिसीमा अवधि से काफी देर बाद दायर की गई, इसलिए अदालत ने इसका संज्ञान नहीं लिया और नोटिस जारी किया।
किशोर बनाम राज्य मामले में मद्रास हाईकोर्ट के अन्य फैसले पर भरोसा करते हुए यह तर्क दिया गया कि चूंकि शिकायत परिसीमा अवधि के भीतर पुलिस में दर्ज की गई, इसलिए माफी की कोई आवश्यकता नहीं है। उपरोक्त मामले में, एकल न्यायाधीश ने देखा कि सीआरपीसी की धारा 468 के लिए प्रासंगिक तारीख शिकायत दर्ज करने की तारीख या अभियोजन शुरू करने की तारीख है।
जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने सीआरपीसी की धारा 154 के तहत पुलिस को दी गई जानकारी को धारा 9 (डी) के तहत शिकायत के रूप में गलत समझा।
अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 154 के अनुसार, एफआईआर रजिस्ट्रेशन "सूचना" पर आधारित है और इसे "शिकायत" के बराबर नहीं माना जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि शिकायत केवल अदालत में की जा सकती है, किसी पुलिस अधिकारी से नहीं।
सुनवाई के दौरान, अदालत ने सारा मैथ्यू बनाम इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियो वैस्कुलर डिजीज मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी चर्चा की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि संबंधित तारीख शिकायत दर्ज करने की तारीख थी। हालांकि, अदालत ने कहा कि सारा मैथ्यू धारा 190(1)(ए) के तहत मजिस्ट्रेट को की गई शिकायत से उत्पन्न हुई थी। यह पुलिस रिपोर्ट पर आधारित नहीं थी।
अदालत ने अरुण व्यास बनाम अनिता व्यास मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी गौर किया, जहां अदालत ने कट-ऑफ तारीख को वह तारीख माना, जिस दिन अंतिम रिपोर्ट दायर की गई, न कि एफआईआर दर्ज करने की तारीख। अदालत ने यह भी कहा कि इस फैसले को एच.पी. राज्य बनाम तारा दत्त में तीन जजों की पीठ और रमेश बनाम टी.एन. राज्य में दो जजों की पीठ ने बरकरार रखा था।
इस प्रकार, अदालत ने कहा कि एकल न्यायाधीश के पहले के फैसले में सारा मैथ्यू मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गलती से भरोसा किया गया, जो शिकायत पर आधारित है। इस प्रकार उसमें लिए गए दृष्टिकोण से सहमत नहीं था।
पहले मामले में अदालत ने मजिस्ट्रेट को आरोपी को सुनवाई का अवसर देने और छह सप्ताह के भीतर याचिका का निपटारा करने का निर्देश दिया।
दूसरे मामले में, अदालत ने कहा कि हालांकि अपराध 2015 में दर्ज किया गया, लेकिन आज तक कोई फाइनल रिपोर्ट दायर नहीं की गई, जबकि इसे 3 साल के भीतर दायर किया जाना चाहिए था। इस प्रकार, अदालत ने कहा कि एफआईआर को लंबित रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इस तरह एफआईआर रद्द कर दी गई।
एडवोकेट एम मोहम्मद रियाज़ और एस थिरुवेंगदाम ने भी सुनवाई में बार की सहायता की।
याचिकाकर्ता के वकील: आर. वेंकटसुलु और एम. विजयराघवन।
प्रतिवादी के वकील: ए दामोदरन एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर।
केस टाइटल: ए. कलियापेरुमल बनाम पुलिस सुपरिटेंडेंट।
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