सार्वजनिक शौचालय 'घोटाला' | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीडीओ और एसपी के खिलाफ 'आपराधिक साजिश' का संज्ञान लेने वाले बाराबंकी सीजेएम के आदेश को रद्द किया
इलाहाबाद हाईकार्ट ने पिछले सप्ताह बाराबंकी जिले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण में कथित घोटाले के संबंध में जिले के तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) के खिलाफ 120 बी आईपीसी (आपराधिक साजिश) के तहत अपराध का संज्ञान लिया गया था।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने सीजेएम, बाराबंकी के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका पर यह आदेश पारित किया। कोर्ट ने कहा कि सीडीओ, एसपी और एसएचओ ने कथित आपत्तिजनक कृत्य करते समय अपने आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन किया था और उनके कृत्यों का संज्ञान, भले ही वह अपराध की श्रेणी में आता हो, सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नहीं लिया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा,
“ऐसा प्रतीत होता है कि मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता द्वारा बनाई गई धारणा से प्रभावित होकर कि शौचालयों के निर्माण में कुछ अवैधताएं की गई थीं, विवादित आदेश पारित किया है। हालांकि, कर्तव्य की प्रत्येक लापरवाही मुकदमे का मामला नहीं बनेगी, जब तक कि मुकदमा शुरू करने के लिए आवश्यक शर्तें पूरी नहीं हो जातीं और सीजेएम कोर्ट ने इस बात की जांच करने पर ध्यान नहीं दिया कि क्या अपराध के आवश्यक तत्व और संज्ञान लेने के लिए अन्य शर्तें पूरी की गई हैं या नहीं।”
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि प्रारंभिक आरोप बीना के खंड विकास अधिकारी अनूप कुमार सिंह और बीना के ग्राम पंचायत अधिकारी के खिलाफ लगाए गए थे और सीडीओ, पुलिस अधीक्षक, थाना प्रभारी या जांच अधिकारी के खिलाफ कोई आरोप नहीं था।
अदालत ने कहा इसके बावजूद संबंधित सीजेएम ने जांच के बाद प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट के खिलाफ दायर विरोध याचिका को स्वीकार करते हुए उन अपराधों का संज्ञान लिया जिनके संबंध में कोई तथ्यात्मक साक्ष्य नहीं था और राज्य सरकार की अनुमति के बिना मुकदमा चलाने के लिए सीडीओ, पुलिस अधीक्षक, एसएचओ और जांच अधिकारी को तलब किया।
कोर्ट ने कहा,
“…सीजेएम के समक्ष धारा 190 (1) (बी) सीआरपीसी के तहत किसी भी अपराध के संज्ञान को उचित ठहराने के लिए बिल्कुल भी कोई सामग्री नहीं थी। आपराधिक अभियोजन केवल इस धारणा पर शुरू नहीं किया जा सकता है कि कोई अपराध किया गया है, बल्कि मजिस्ट्रेट को शिकायत के तथ्यों से या ऐसे तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट से या पुलिस अधिकारी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त जानकारी से, या उसकी खुद की जानकारी प्रथम दृष्टया संतुष्टि पर पहुंचना होगा कि ऐसा अपराध किया गया है।''
इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय ने पाया कि सीजेएम के समक्ष ऐसी कोई सामग्री उपलब्ध नहीं थी जिसके आधार पर किसी अपराध का संज्ञान लिया जा सके। अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता द्वारा बनाई गई इस धारणा से प्रभावित होकर कि शौचालयों के निर्माण में कुछ अवैधताएं की गई हैं, विवादित आदेश पारित किया है।
उपरोक्त टिप्पणी के मद्देनजर सीजेएम के आक्षेपित आदेश को पेटेंट अवैधताओं से ग्रस्त पाते हुए न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया।
केस टाइटलः उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बाराबंकी और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 160
केस साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एबी) 160