जल और वायु अधिनियम के तहत अभियोजन केवल शिकायत मामले के माध्यम से शुरू किया जा सकता है, पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2024-02-17 11:12 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पुलिस के पास वायु अधिनियम और जल अधिनियम के तहत किसी भी अपराध की जांच या मुकदमा चलाने की कोई शक्ति नहीं है।

ज‌स्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा, "इस न्यायालय की सुविचारित राय है कि पुलिस के पास जल( प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 या वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत किसी भी अपराध की जांच करने, मुकदमा चलाने या उससे निपटने की कोई शक्ति नहीं है।"

ये टिप्पणियां फ़रीदाबाद में आईपीसी की धारा 188, जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 33ए और वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम की धारा 33ए के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका के जवाब में की गईं।

मामले में याचिकाकर्ता मेसर्स महादेव फोर्जिंग्स एंड कंपोनेंट्स फर्म का मालिक है। कहा गया था कि यह इकाई 2005 में "आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के बाद स्थापित की गई थी और गर्म भट्टियों में कच्चे माल की फोर्जिंग और कंप्रेंसिंग करके ऑटोमोबाइल पार्ट्स के निर्माण में लगी हुई थी।"

हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) ने 2014 में याचिकाकर्ता द्वारा चलाई जा रही इकाई को इस आधार पर बंद करने का आदेश जारी किया कि इसे आवश्यक अनुमति प्राप्त किए बिना चलाया जा रहा था। बंद करने के उपरोक्त आदेश को संबंधित अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष चुनौती दी गई थी, लेकिन एक आदेश तहत अपील खारिज कर दी गई, जिस पर अधिकारियों द्वारा इकाई को फिर से सील कर दिया गया।

2015 में एक निरीक्षण के दौरान, याचिकाकर्ता की इकाई जल अधिनियम, 1974 की धारा 33-ए और वायु अधिनियम, 1981 की 33-ए के प्रावधानों के उल्लंघन में, एचएसपीसीबी द्वारा लगाई गई सील को तोड़कर अवैध रूप से संचालित होती पाई गई।

नतीजतन, केएल नागपाल नामक व्यक्ति की शिकायत पर याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उक्त इकाई अधिकारियों द्वारा लगाई गई सील को तोड़कर संचालित हो रही थी।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि, जल अधिनियम की धारा 49 के अनुसार बोर्ड या किसी अधिकृत व्यक्ति द्वारा की गई शिकायत के अलावा किसी अन्य व्यक्ति की शिकायत के आधार पर अदालत अधिनियम के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी और इसी तरह के प्रावधान वायु अधिनियम की धारा 43 के तहत मौजूद हैं।

प्रस्तुतीकरण पर विचार करते हुए, न्यायालय ने वायु अधिनियम की धारा 43 और जल अधिनियम की धारा 49 के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 4 और 195 का भी उल्लेख किया।

प्रावधानों पर गौर करते हुए, न्यायालय ने कहा, "यदि कोई विशेष क़ानून आईपीसी के प्रावधान को छोड़कर किसी विशेष प्रक्रिया के लिए प्रावधान निर्धारित करता है तो आईपीसी के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता है..."

जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 43 और वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 49 यह स्पष्ट करती है कि कोई भी अदालत इस अधिनियम के तहत किसी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी, सिवाय इसके कि शिकायत उपयुक्त प्राधिकारी ने की हो।

यह कहते हुए कि जल अधिनियम और वायु अधिनियम के अनुसार, अभियोजन केवल शिकायत मामले के माध्यम से शुरू किया जा सकता है और एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है, ज‌स्टिस बराड़ ने कहा कि, "इसलिए, लागू एफआईआर और उसके बाद की सभी कार्यवाही शुरू से ही शून्य हैं और रद्द किये जाने योग्य हैं।"

नतीजतन, कोर्ट ने यह कहते हुए एफआईआर को रद्द कर दिया कि "एफआईआर का पंजीकरण ही कानून की नजर में खराब है, क्योंकि जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत अपराध का केवल संबंधित अधिनियम के तहत अधिकृत अधिकारी द्वारा दायर आपराधिक शिकायत पर ही लिया जा सकता है।।"

साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (पीएच) 47

केस टाइटलः रविशंकर गुप्ता बनाम हरियाणा राज्य और अन्य।


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