सच्चा प्यार पुलिस कार्रवाई से नियंत्रित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट
दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि दो व्यक्तियों के बीच सच्चा प्यार, जिनमें से एक या दोनों नाबालिग हो सकते हैं, या वयस्क होने की कगार पर हैं, उसको कानून की कठोरता या राज्य की कार्रवाई के माध्यम से नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि अदालत के सामने कभी-कभी दुविधा एक किशोर जोड़े के खिलाफ राज्य या पुलिस की कार्रवाई को उचित ठहराने की हो सकती है। एक-दूसरे से शादी करते हैं और शांतिपूर्ण जीवन जीते हैं और परिवार का पालन-पोषण करते हैं, और देश के कानून का सम्मान करते हैं।
उन्होंने कहा,
“जब न्याय के तराजू को तौलना होता है तो वे हमेशा गणितीय शुद्धता या गणितीय सूत्रों के आधार पर नहीं होते हैं, लेकिन कभी-कभी, तराजू के एक तरफ जहां कानून होता है, वहीं तराजू का दूसरा पहलू बच्चों और उनके माता-पिता की खुशी और पूरे जीवन को ढो सकता है।”
अदालत ने आगे कहा,
"जो पैमाना बिना किसी आपराधिकता के ऐसी शुद्ध खुशी को प्रतिबिंबित और चित्रित करता है, वह निश्चित रूप से कानून को लागू करने वाले पैमाने के बराबर होगा, क्योंकि कानून का प्रयोग कानून के शासन को बनाए रखने के लिए होता है।"
जस्टिस शर्मा ने आरिफ खान नामक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज अपहरण और बलात्कार का मामला रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जो नाबालिग लड़की के साथ भाग गया और एक ही धर्म का होने के कारण मुस्लिम रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार शादी कर ली।
एफआईआर लड़की के पिता ने दर्ज करायी थी। जब वह बरामद हुई तो वह पांच महीने की गर्भवती थी। उसने यह कहते हुए बच्चे का गर्भपात कराने से इनकार कर दिया कि यह उसके वैवाहिक मिलन और अपने पति के प्रति प्यार से पैदा हुआ है।
उस व्यक्ति को जून 2015 में गिरफ्तार किया गया और जमानत मिलने तक वह अप्रैल, 2018 तक जेल में रहा। तब से दंपति एक साथ रह रहे हैं और उनकी शादी से एक और बेटी भी पैदा हुई।
जस्टिस शर्मा ने जनवरी, 2015 में दर्ज की गई एफआईआर रद्द करते हुए कहा कि जांच एजेंसी के प्रवेश से जोड़े की प्रेम कहानी "दुर्भाग्य से बाधित" हो गई, जिसे मौजूदा कानून के अनुसार काम करना है।
लड़की ने अदालत को बताया कि वह स्वेच्छा से खान के साथ सहमति से रिश्ते में आई। घटना के समय उसकी उम्र 18 साल थी। वहीं दिल्ली पुलिस ने इस पर विवाद किया, क्योंकि स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार उसकी उम्र 18 वर्ष से कम दिखाई गई।
अदालत ने कहा कि जब खान को गिरफ्तार किया गया था तब लड़की गर्भवती थी और उसने गर्भावस्था जारी रखने और बच्चे को जन्म देने का विकल्प चुना।
अदालत ने कहा,
“यह अदालत वर्तमान याचिका पर निर्णय लेते समय इस तथ्य पर ध्यान देता है कि इसमें शामिल पक्षों ने आपस में चुनाव किया, भले ही कानून उन्हें वैवाहिक संघ में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देता। हालांकि, उन्होंने हर स्तर पर याचिकाकर्ता खान के मामले का समर्थन किया, न कि राज्य के मामले का। दोनों पक्षों की शादी को अब लगभग नौ साल हो गए और उनकी दो बेटियां हैं। वे ख़ुशी से अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रहे हैं।”
जस्टिस शर्मा ने कहा कि न्यायालय की भूमिका केवल क़ानूनों को लागू करने और व्याख्या करने से परे है। इसमें व्यक्तियों और बड़े पैमाने पर समुदाय पर इसके निर्णयों के निहितार्थ की समझ शामिल है।
अदालत ने आगे कहा,
“इस संतुलन को बनाए रखने के लिए तथ्यों, कानूनी मिसालों और जिस समाज की सेवा की जाती है, उसके विकसित होते लोकाचार की गहन जांच की आवश्यकता होती है। अदालतों को अपने निर्णयों के संबंधित पक्षों पर प्रभाव और न्याय, निष्पक्षता और सामाजिक व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए प्रतिस्पर्धी हितों को तौलना चाहिए।”
इसमें कहा गया,
“यह न्यायालय मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों और इस तथ्य पर ध्यान दे रहा है कि यदि, इन विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, प्रश्न में एफआईआर को रद्द नहीं किया जाता है, तो इससे पैदा हुई बेटियों के भविष्य पर असर पड़ेगा। इस मिलन के परिणामस्वरूप प्रभावी और वास्तविक न्याय विफल हो जाएगा।”
याचिकाकर्ता के वकील- धीरज कुमार सिंह और श्रंजन कुमार।
उत्तरदाताओं के लिए वकील- अमोल सिन्हा, राज्य के लिए एएससी