पत्नी द्वारा अपने माता-पिता की आर्थिक मदद करने पर पति का आपत्ति करना क्रूरता के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पति अपने माता-पिता को आर्थिक रूप से समर्थन देने की पत्नी के कृत्य पर आपत्ति जताता है, तो यह क्रूरता होगी।
जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस संजीव एस कलगांवकर की पीठ ने यह भी कहा कि पत्नी के नियोक्ताओं से शिकायत करना कि उन्होंने उसकी (पति की) अनुमति के बिना उसे नौकरी पर कैसे रखा, पत्नी के साथ "गुलाम" के रूप में व्यवहार करना, उससे उसकी पहचान का अधिकार छीनना है। इस प्रकार क्रूरता बनती है।
ये टिप्पणियां खंडपीठ ने परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 19 के तहत पति द्वारा दायर एक अपील को खारिज करते हुए की, जिसमें परिवार न्यायालय के एक फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत पत्नी की याचिका की अनुमति दी थी और तलाक की डिक्री दी गई थी।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
मामले के तथ्यों के साथ-साथ पारिवारिक अदालत के फैसले की जांच करते हुए, अदालत ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने सही पाया कि पति की अपनी पत्नी के नियोक्ताओं से की गई शिकायतें, जिसमें कहा गया था कि उसे उसकी सहमति के बिना नियोजित नहीं किया जाना चाहिए था, क्रूरता है।
अदालत ने यह भी पाया कि अपीलकर्ता/पति अपनी नियमित आय के बारे में कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका, जिससे यह आरोप दूर हो सके कि वह केवल अपनी पत्नी की आय पर निर्भर था। इसके अलावा, अदालत ने पति के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उसके माता-पिता के लालच के कारण, वैवाहिक संबंध टूट गए हैं, क्योंकि उसने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सही पाया था कि एक बेटी होने के नाते, प्रतिवादी/पत्नी हमेशा आर्थिक रूप से स्वतंत्र थी कि वह अपने माता-पिता का सहयोग करे और यदि अपीलकर्ता/पति की ओर से इस पर कोई आपत्ति है, तो यह क्रूरता के समान है।
न्यायालय ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि 15 साल से अधिक समय बीत चुका है जब से वे दोनों अलग-अलग रह रहे हैं और अपीलकर्ता/पति के कहने पर सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए हाईकोर्ट द्वारा किए गए प्रयास भी व्यर्थ हो गए।
कोर्ट ने माना कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से प्रतिबिंबित समग्र परिस्थितियों पर विचार करते हुए, ट्रायल कोर्ट ने अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत तलाक की डिक्री देने में कोई त्रुटि नहीं की। इन्हीं टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पति की अपील को खारिज कर दिया।
केस टाइटलः पवन कुमार बनाम डॉ बबीता जैन