दिल्ली हाईकोर्ट ने समझौते के आधार पर FIR रद्द करने वाली याचिकाओं की सुनवाई के लिए विशेष पीठों के गठन की मांग वाली याचिका बंद की
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को जनहित याचिका को यह कहते हुए बंद कर दिया कि समझौते के आधार पर FIR रद्द करने वाली याचिकाओं की सुनवाई के लिए विशेष नामित पीठों का गठन एक “प्रशासनिक” विषय है न कि न्यायिक।
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने वकील आदित्य सिंह देशवाल से कहा कि वे अपने सुझाव हाईकोर्ट के प्रशासनिक पक्ष के समक्ष प्रस्तुत करें।
चीफ जस्टिस ने देशवाल से कहा,
“एक रिट याचिका में मांगी गई 'मैंडेमस' (न्यायिक आदेश) की मूल भावना पर चर्चा करें। यह तय करना आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता कि कौन से प्रैक्टिस डायरेक्शन अपनाए जाएं। यदि आपको किसी प्रैक्टिस डायरेक्शन में कोई कमी दिखती है तो आप 'सर्टियोरारी' (निरस्त करने का आदेश) की मांग कर सकते हैं। लेकिन 'मैंडेमस' के लिए पहले यह साबित करना होता है कि आपका कोई कानूनी अधिकार प्रभावित हुआ है।”
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि यह जनहित याचिका एक सुझाव जैसी प्रतीत होती है और याचिकाकर्ता को प्रशासनिक पक्ष के समक्ष सुझाव देने की अनुमति दी जाती है।
कोर्ट ने आदेश दिया,
“याचिका में उठाई गई शिकायत की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए हम याचिकाकर्ता को सुझावों के साथ प्रशासनिक पक्ष से संपर्क करने की अनुमति देते हैं।”
कोर्ट ने आगे कहा कि सुझाव दो सप्ताह के भीतर प्रस्तुत किए जाएं और उन पर विचार कर याचिकाकर्ता को निर्णय से अवगत कराया जाए।
इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका को बंद कर दिया।
यह याचिका दिसंबर, 2023 में जारी प्रैक्टिस डायरेक्शन के दायरे को बढ़ाने की मांग कर रही थी ताकि अविवादित और समझौते पर आधारित एफआईआर रद्द करने की याचिकाओं के निपटान के लिए विशेष पीठों का गठन किया जा सके।
केस टाइटल: आदित्य सिंह देशवाल बनाम दिल्ली हाईकोर्ट, रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से