दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय सेना में 'गुज्जर रेजिमेंट' गठित करने की जनहित याचिका खारिज की, बताया 'विभाजनकारी'
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को भारतीय सेना में गुज्जर रेजिमेंट गठित करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की।
चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए इसे 'बिल्कुल विभाजनकारी' बताया।
जनहित याचिका रोहन बसोया नामक व्यक्ति ने दायर की थी, जिसमें दावा किया गया कि समृद्ध सैन्य विरासत के बावजूद सिख, जाट, राजपूत, गोरखा और डोगरा जैसे अन्य सैन्य समुदायों के विपरीत, गुज्जरों को एक समर्पित रेजिमेंट नहीं दी गई।
बसोया अपने वकील के साथ व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए न्यायालय ने वकील को चेतावनी दी कि वादी पर जुर्माना लगाया जाएगा।
चीफ जस्टिस ने बसोया के वकील से पूछा,
"कृपया समझें कि आप परमादेश की मांग कर रहे हैं। परमादेश के लिए क्या शर्त है? आपको किसी कानून या संविधान द्वारा कोई अधिकार दिया जाना चाहिए। ऐसा कौन-सा कानून है, जो आपको इस तरह की रेजिमेंट रखने का अधिकार देता है? वह अधिकार कहाँ है?"
न्यायालय ने आगे पूछा कि भारत के संविधान या किसी अन्य अधिनियम या प्रथागत कानून का कौन सा प्रावधान किसी विशेष समुदाय के लोगों की रेजिमेंट रखने का अधिकार देता है।
खंडपीठ ने वकील को ऐसी जनहित याचिकाओं को लेने से पहले शोध करने की सलाह दी, जिसके बाद वकील ने याचिका वापस ले ली।
न्यायालय ने कहा,
"कुछ देर तक बहस करने के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उन्हें याचिकाकर्ता से निर्देश मिले थे, जो अदालत में मौजूद हैं। इसे वापस लिया गया मानते हुए खारिज किया जाता है।"
जनहित याचिका में कहा गया कि भारतीय सेना ने ऐतिहासिक रूप से जातीय-आधारित रेजिमेंट बनाए रखी हैं, जो राष्ट्रीय रक्षा में विशिष्ट समुदायों के योगदान को मान्यता देती हैं।
इसमें यह भी कहा गया कि व्यवस्था से “गुज्जरों” को बाहर रखने से प्रतिनिधित्व में असंतुलन पैदा होता है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
याचिका में कहा गया कि गुज्जर रेजिमेंट की स्थापना से समान अवसर मिलेंगे, भर्ती बढ़ेगी और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी।
याचिका में कहा गया,
“गुज्जर रेजिमेंट की मांग पहले भी उठाई जा चुकी है, फिर भी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और पंजाब जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में समुदाय की मौजूदगी को देखते हुए गुज्जर रेजिमेंट आतंकवाद विरोधी और सीमा सुरक्षा अभियानों में रणनीतिक सैन्य हितों की भी पूर्ति करेगी।”
केस टाइटल: रोहन बसोया बनाम भारत संघ