न्यायालय को आरोपी को रिहा करना उचित लगे तो जमानत रोकना दंड के समान: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि जहां न्यायालय को आरोपी को गुण-दोष के आधार पर रिहा करना उचित लगे, वहां जमानत रोकना दंड के समान है।
जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा,
"यदि न्यायालय को आरोपी को गुण-दोष के आधार पर जमानत देना उचित लगे तो उक्त राहत रोकना दंड के समान माना जाएगा।"
न्यायालय ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 के तहत दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में लोक सेवक युद्धवीर सिंह यादव को नियमित जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।
यादव दिल्ली पुलिस में उप-निरीक्षक के पद पर कार्यरत थे। आरोप है कि उन्होंने 2.5 लाख रुपये की रिश्वत मांगी और स्वीकार की।
जस्टिस सिंह ने कहा कि न्यायालयों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 483 के तहत नियमित जमानत के मामले में राज्य के व्यापक हित को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
अदालत ने कहा,
"किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों से संबंधित अपराधों से निपटने के दौरान न्यायालयों द्वारा संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे उन सरकारी कर्मचारियों पर जनता का भरोसा कम होता है, जो उनकी रक्षा करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं।"
उन्होंने कहा कि जमानत आवेदन को मंजूर या अस्वीकार करना न्यायालयों के न्यायिक विवेक पर निर्भर करता है। उक्त विवेक का प्रयोग प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के संबंध में किया जाएगा।
न्यायालय ने कहा,
"अभियुक्त के विरुद्ध लगाए गए आरोपों पर विचार करते समय न्यायालयों को, साथ ही "जमानत नियम है और जेल अपवाद" के संबंध में स्थापित सिद्धांत का पालन करना चाहिए, जिस पर विभिन्न न्यायालयों द्वारा बार-बार जोर दिया गया है।"
जस्टिस सिंह ने कहा कि यादव के विरुद्ध मामला ऐसे अपराधों से संबंधित है, जिनमें अधिकतम कारावास 7 वर्ष तक है और उनके विरुद्ध जांच पूरी हो चुकी है।
न्यायालय ने जमानत देते हुए कहा,
"याचिकाकर्ता के विरुद्ध लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और जनता की नैतिकता के विरुद्ध हैं। हालांकि, साथ ही इस न्यायालय को स्थापित कानून को ध्यान में रखना और उसका मूल्यांकन करना आवश्यक है कि सजा के रूप में जमानत नहीं रोकी जानी चाहिए। यह बार-बार कहा गया कि जमानत से वंचित करना सजा के रूप में माना जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है, जब तक कि विधिवत ट्रायल न हो जाए और दोषी साबित न हो जाए।”
केस टाइटल: युद्धवीर सिंह यादव बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो सचिव, भारत सरकार के माध्यम से