अच्छी तरह से शिक्षित और नौकरी का अनुभव रखने वाली पत्नी को केवल पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए बेकार नहीं बैठना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-03-20 13:26 GMT
अच्छी तरह से शिक्षित और नौकरी का अनुभव रखने वाली पत्नी को केवल पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए बेकार नहीं बैठना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि शिक्षित पत्नी जिसके पास नौकरी का अनुभव है, उसको केवल पति से भरण-पोषण पाने के लिए बेकार नहीं बैठे रहना चाहिए।

जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा,

"इस न्यायालय का विचार है कि एक शिक्षित पत्नी जिसके पास उपयुक्त नौकरी का अनुभव है, को केवल पति से भरण-पोषण पाने के लिए बेकार नहीं रहना चाहिए।"

न्यायालय ने एक पत्नी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें वैवाहिक विवाद में CrPC की धारा 125 के तहत उसे अंतरिम भरण-पोषण देने से इनकार करने वाले फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई। दंपति ने 2019 में शादी की और तुरंत सिंगापुर चले गए।

याचिकाकर्ता पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति और उसके परिवार के सदस्यों के हाथों क्रूरता के कारण याचिकाकर्ता फरवरी, 2021 में भारत वापस आ गई।

यह भी आरोप लगाया गया कि पति ने उसका वैवाहिक वीजा रद्द करवा दिया और वह सिंगापुर में अकेली फंस गई। उसने आरोप लगाया कि पति के पास उसकी कीमती चीजें हैं, जिसके कारण उसे भारत आने के लिए अपने सारे गहने बेचने पड़े और आर्थिक तंगी के कारण वह अपने मामा के साथ रहने लगी।

उसने दलील दी कि उसने वर्ष 2006 में मास्टर डिग्री हासिल की थी, वर्ष 2005 से 2007 तक दुबई में काम किया और उसके बाद वह कभी भी आर्थिक और लाभकारी रोजगार में नहीं लगी।

यह भी दलील दी गई कि फैमिली कोर्ट ने उसकी स्नातक की डिग्री उसकी आखिरी नौकरी और शादी की तारीख के बीच के बड़े अंतर को नजरअंदाज कर दिया, जिससे पता चलता है कि उसने लाभकारी रोजगार नहीं करने का फैसला किया और स्वेच्छा से बेकार रही।

दूसरी ओर पति ने दलील का विरोध किया और तर्क दिया कि पत्नी उच्च शिक्षित है और कमाने में सक्षम है। इसलिए वह केवल इस आधार पर CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती कि वह बेरोजगार है।

यह दलील दी गई कि पत्नी द्वारा मांगी गई 3,25,000 रुपये की मासिक भरण-पोषण राशि भारत में उसकी पिछली जीवनशैली के लिए अत्यधिक और अनुपातहीन है।

यह प्रस्तुत किया गया कि पत्नी ने अपनी संभावित कमाई क्षमता को दबाते हुए अपनी वित्तीय स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर बताया था।

कोर्ट ने कहा कि वह इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकता कि पत्नी बेशक एक अच्छी तरह से योग्य और सक्षम व्यक्ति थी और पूरी स्थिति जहां वह अपने माता-पिता और बाद में मामा के साथ रह रही थी यह दर्शाता है कि वह अदालत को यह विश्वास दिलाना चाहती थी कि वह कमाने में असमर्थ है।

यह देखते हुए कि मामला पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने का औचित्य नहीं रखता, कोर्ट ने कहा,

“जानबूझकर बेरोजगारी के प्रथम दृष्टया साक्ष्य के संबंध में याचिकाकर्ता और उसकी मां के बीच व्हाट्सएप पर हुई बातचीत जिसकी वैधता मुकदमे के उचित चरण में निर्धारित की जा सकती है, जिसमें मां ने सलाह दी है कि रोजगार गुजारा भत्ता के दावों को खतरे में डाल देगा विशेष रूप से बताने वाली है। भरण-पोषण याचिका से पहले यह संचार भरण-पोषण के दावों की मांग करने के लिए बेरोजगार रहने के जानबूझकर प्रयास का दृढ़ता से सुझाव देता है।”

न्यायालय ने कहा,

"ऊपर दी गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए यह न्यायालय इस विचार पर है कि योग्य पत्नियाँ, जो कमाने की क्षमता रखती हैं लेकिन निष्क्रिय रहना चाहती हैं, उन्हें अब अंतरिम भरण-पोषण के लिए दावा प्रस्तुत करना चाहिए।"

इसमें यह भी कहा गया कि पत्नी के पास जो योग्यताएँ हैं। साथ ही उसका पिछला रोजगार रिकॉर्ड भी दर्शाता है कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि वह भविष्य में भी अपना भरण-पोषण करने की स्थिति में न हो।

न्यायालय ने कहा,

"इसके अलावा यह न्यायालय याचिकाकर्ता को आत्मनिर्भर बनने के लिए सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित करता है, क्योंकि उसे पहले से ही व्यापक अनुभव है और वह दुनियावी मामलों से वाकिफ है, जबकि अन्य महिलाएं शिक्षित नहीं हैं और बुनियादी भरण-पोषण के लिए पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर हैं।"

टाइटल: एक्स बनाम वाई

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