GST दरों में कटौती के बाद समान का दाम कम करना ज़रूरी, सिर्फ़ मात्रा बढ़ाकर वही दाम रखना सही नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब GST परिषद किसी उत्पाद पर लागू GST दरों में कमी करती है तो इसका लाभ ऐसे उत्पादों की कीमतों में कमी के माध्यम से अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचना चाहिए।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस शैल जैन की खंडपीठ ने कहा कि निर्माताओं को समान दाम वसूलते हुए उत्पाद की मात्रा बढ़ाने की अनुमति देने से दरों में कटौती का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
अदालत ने कहा,
"उपभोक्ता को मिलने वाले लाभ भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। GST में कमी का उद्देश्य उत्पादों और सेवाओं को उपभोक्ताओं के लिए अधिक लागत प्रभावी बनाना है। यदि कीमत समान रखी जाती है और उत्पाद में कुछ अज्ञात मात्रा बढ़ा दी जाती है तो यह उद्देश्य विफल हो जाएगा, भले ही उपभोक्ता ने बढ़ी हुई मात्रा के लिए अनुरोध न किया हो।"
अदालत मेसर्स हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड के वितरक शर्मा ट्रेडिंग कंपनी द्वारा 2018 में दायर याचिका पर विचार कर रहा था। इस याचिका में राष्ट्रीय मुनाफाखोरी निरोधक प्राधिकरण द्वारा उसके विरुद्ध की गई कार्रवाई को चुनौती दी गई। इस शिकायत में कहा गया कि वैसलीन उत्पाद पर जीएसटी की दर में कमी के बावजूद, याचिकाकर्ता (एचयूएल वितरक) ने वही राशि वसूलना जारी रखा।
HUL वितरक ने तर्क दिया कि GST दरों में बदलाव के बाद संबंधित उत्पाद की मात्रा में 100 मिलीलीटर की वृद्धि हुई, इसलिए उसके द्वारा ली गई राशि उचित होगी।
अदालत ने रेकिट बेनकिज़र इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ (2024) का हवाला देते हुए इस तर्क को खारिज कर दिया, जहां एक समन्वय पीठ ने माना कि किसी भी योजना द्वारा मात्रा या वजन में वृद्धि या अतिरिक्त मुफ्त सामग्री की आपूर्ति उपभोक्ताओं को प्राप्त लाभ को हस्तांतरित करने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।
इसमें यह निर्णय दिया गया,
"विधायी अधिदेश यह है कि कर की दर में कमी या इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ न केवल कीमतों में कमी के रूप में परिलक्षित होना चाहिए, बल्कि यह वस्तुओं या सेवाओं के प्राप्तकर्ता तक भी पहुंचना चाहिए। आपूर्तिकर्ता द्वारा इस अधिदेश के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, वास्तविक कीमत में कमी के लाभ को किसी अन्य रूप से प्रतिस्थापित करके, जैसे कि मात्रा या वजन में वृद्धि, या अतिरिक्त या मुफ्त सामग्री की आपूर्ति, या 'दिवाली धमाका' या क्रॉस-सब्सिडी जैसी त्यौहारी छूट... यह आवश्यक है कि कर की दर में कमी और इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ कीमतों में समानुपातिक कमी के माध्यम से 'नकद' के रूप में अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचे..."
इसी राह पर चलते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि पुराने दाम के पहले से मौजूद स्टॉक के कारण निर्माताओं को कुछ संक्रमणकालीन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन साथ ही यह भी कहा,
“हालांकि, GST दरों में कमी के उद्देश्य को नकारा नहीं जा सकता। ऐसी समस्याएं और कुछ नहीं, बल्कि वे हैं जिनके लिए निर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं को तैयार रहना चाहिए। उदाहरण के लिए, GST दरों में तत्काल कमी करने पर उत्पाद का दाम वही रह सकता है, लेकिन GST घटक कम करना होगा, भले ही इसका मतलब यह हो कि उत्पाद दाम से कम कीमत पर बेचा जा रहा हो।”
अदालत ने आगे कहा,
“अनजाने में उत्पाद की मात्रा बढ़ाना और वही दाम वसूलना धोखे के अलावा और कुछ नहीं है। उपभोक्ता की पसंद पर अंकुश लगाया जा रहा है। कीमत में कमी न करने को इस आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता कि मात्रा बढ़ा दी गई है या कोई ऐसी योजना है, जो कीमत में वृद्धि को उचित ठहराती है। इस अदालत की राय में ऐसा दृष्टिकोण जीएसटी दरों में कमी के पूरे उद्देश्य को विफल कर देगा और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।”
Case title: M/s Sharma Trading Company v. Union of India