'COVID अस्पतालों में जाकर सेवाएं प्रदान करें', पटना हाईकोर्ट ने कई मामलों में जमानत देते समय रखी शर्त
पटना हाईकोर्ट ने इस हफ्ते (1-4 जून 2020) 20 से अधिक जमानत आवेदन के मामलों में इस शर्त पर जमानत दी कि जमानत आवेदनकर्ता को एक/दो/तीन महीने की अवधि के लिए "स्वयंसेवक" (Volunteer) के रूप में (Covid -19 से मुकाबला करने के लिए) या COVID अस्पताल/जिला स्वास्थ्य केंद्र में "स्वयंसेवक" के रूप में अपनी सेवा प्रदान करनी होगी।
न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय ने जमानत के लिए यह शर्त रखते हुए पटना हाईकोर्ट में जमानत देते हुए इस प्रकार की शर्त लगाने का एक नया चलन स्थापित कर दिया है, हालाँकि इसके पहले भी वो इस प्रकार का एक आदेश दे चुके हैं।
इन आदेशों में, यह भी कहा गया है कि जमानत का आवेदन करने वाला व्यक्ति, संबंधित क्षेत्र के नोडल अधिकारी/सिविल सर्जन को रिपोर्ट करेगा।
इन सभी आदेशों में मुख्य रूप से न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा जमानत की शर्त के रूप में आदेश देते हुए यह कहा गया है कि
"याचिकाकर्ता को COVID -19 अस्पताल/ जिला स्वास्थ्य केंद्र में एक/दो/तीन महीने की अवधि के लिए COVID -19 का मुकाबला करने के लिए स्वयंसेवक के रूप में अपनी सेवा प्रदान करनी होगी और उसे जिला सिविल सर्जन/नोडल अधिकारी को रिपोर्ट करना होगा जो याचिकाकर्ता की सेवा का उचित उपयोग करेंगे।"
कुछ मामलों में अदालत द्वारा शर्त में केवल "स्वयंसेवक" (Volunteer) के रूप में (Covid -19 से मुकाबला करने के लिए) सेवा देने की शर्त रखी गयी और कहा गया है कि,
"याचिकाकर्ता को COVID -19 महामारी का मुकाबला करने के लिए एक/दो/तीन महीने की अवधि के लिए स्वयंसेवक के रूप में अपनी सेवा प्रदान करना होगा और इस तरह उसे नोडल अधिकारी (सम्बंधित जगह के) को रिपोर्ट करना होगा जो उचित रूप से याचिकाकर्ता की सेवा का उपयोग करेगा।"
पटना हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने के लिए रखी गयी हालिया शर्तें
इससे पहले, मार्च 2020 में न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय ने एक मामले मोहम्मद खालिद राशिद बनाम बिहार राज्य (CRIMINAL MISCELLANEOUS No.1659 of 2020) में, पटना शहर के एक बिल्डर, मोहम्मद राशिद को, इस शर्त के साथ जमानत दी थी कि याचिकाकर्ता को COVID -19 महामारी निपटने की प्रक्रिया में अपनी रिहाई की तारीख से तीन महीने की अवधि तक, एक स्वयंसेवक के रूप में अपनी सेवाएं देनी होंगी, और इस उद्देश्य के लिए उसे पटना सिविल सर्जन को रिपोर्ट करने का आदेश भी दिया गया था।
इस बिल्डर पर जालसाजी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था। खालिद राशिद के रूप में पहचाने जाने वाले बिल्डर पर यह आरोप था कि उसने पूरी रकम मिलने के बावजूद, पटना में उसके द्वारा बनवाए जा रहे अपार्टमेंट में एक फ्लैट का कब्जा नहीं देकर, कुमारी प्रियंका नामक महिला को कथित तौर पर धोखा दिया।
'द हिन्दू' अख़बार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता राशिद ने जब अदालत के आदेश के पालन में सिविल सर्जन, राज किशोर चौधरी को सूचना दी, तो उन्होंने याचिकाकर्ता की सेवा लेने हेतु उसे पटना सिविल कोर्ट के गेट पर आगंतुकों की तापमान (Temperature) की जांच करने के लिए एक मेडिकल टीम से जोड़ दिया।
इसके अलावा, पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले रौशन कुमार बनाम बिहार राज्य (CRIMINAL MISCELLANEOUS No.10426 of 2020) में एक व्यक्ति को इस शर्त पर जमानत दी थी कि जमानत के आवेदनकर्ता को COVID-19 राहत के लिए गठित PM CARES फण्ड में 15,000 रूपये का भुगतान करना होगा।
न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण ने यह दर्ज करने के बाद कि जमानत का आवेदन करने वाले व्यक्ति ने PM CARES फण्ड राहत कोष में दान करने की सहमति दी है, यह भी कहा कि,
"पीएम केयर फंड में 15,000/- (रुपए पंद्रह हजार) जमा कराये जाने की रसीद दिखाने पर, याचिकाकर्ता के जमानत बॉन्ड को निचली अदालत द्वारा स्वीकार किया जायेगा।"
हालिया जमानत शर्तें जो चर्चा का विषय रहीं
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच (न्यायमूर्ति शील नागू की पीठ) ने बीते मई में तमाम जमानत आवेदनों में इस शर्त पर जमानत दी थी कि याचिकाकर्ता को संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष खुद को "COVID -19 वॉरियर्स" के रूप में पंजीकृत करना होगा। इसके पश्च्यात, उन्हें COVID -19 आपदा प्रबंधन का काम सौंपा जायेगा।
उल्लेखनीय है कि अदालत ने इन मामलों में याचिकाकर्ताओं की जमानत पर लगायी गयी इस शर्त को (COVID -19 वॉरियर के तौर पर कोरोना आपदा प्रबंधन सम्बन्धी कार्य करना), इन याचिकाकर्ताओं के मौलिक कर्तव्य [संविधान के अनुच्छेद 51-ए (डी/घ) के अंतर्गत आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करना] से जोड़ कर देखा था।
वहीँ इससे पहले, अप्रैल के महीने में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदौर-निवासी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए यह शर्त रखी कि वह PM CARES फंड में 10,000 / रुपये जमा करे और एक सप्ताह के लिए स्वैच्छिक सेवा करे। इस व्यक्ति को लॉकडाउन उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
ज़मानत देते हुए न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने व्यक्ति को यह निर्देश दिया कि किराना दुकान के मालिक दिलीप विश्वकर्मा को पैंतीस हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।
कोरोना/ PM CARES में फंड जमा कराने की शर्त को केरल एवं एमपी हाईकोर्ट ने माना अनुचित
हालाँकि कुछ मामलों में इन शर्तों को अदालतों द्वारा अनुचित भी माना गया है। हमारे समक्ष दो उदाहरण हैं, केरल हाईकोर्ट एवं मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का।
दरअसल, केरल हाईकोर्ट (जस्टिस सीएस डायस की पीठ) ने अप्रैल ही के महीने में एक मामले [चिन्ना राव स्वयंवरप्पु बनाम केरल राज्य एवं अन्य (Crl MC (TMP) No. 5 of 2020)] में सत्र न्यायाधीश द्वारा जमानत देने की कंडीशन में याचिकाकर्ता को कोरोना रिलीफ फंड में 25 हज़ार रुपए जमा कराने की शर्त को अनुचित एवं अन्यायपूर्ण कहा था।
दरअसल, इस मामले में सत्र न्यायाधीश ने ज़मानत की शर्त के रूप में कहा था कि याचिकाकर्ता को कोरोना रिलीफ फंड में 25,000/- रुपये की राशि जमा करनी चाहिए। हाईकोर्ट ने इसे अनुचित और अन्यायपूर्ण माना था।
एकल न्यायाधीश ने हाईकोर्ट के एक फैसले का संदर्भ दिया जिसमें मोती राम बनाम मध्यप्रदेश राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा करते हुए यह कहा गया था कि जमानत के लिए नकद सुरक्षा या किसी भी राशि के अनुदान के लिए राशि जमा करना अन्यायपूर्ण, अनियमित और अनुचित है।
इसी क्रम में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मई के महीने में एक मामले में [फहाद अहमद एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य (MCRC 13259/2020)] स्थानीय अदालत द्वारा लगाई गई जमानत शर्त को निरस्त कर दिया था।
दरअसल, जमानत के लिए याचिकाकर्ताओं को PM CARES फंड में प्रत्येक को 25,000 / - रुपये की राशि जमा करने को कहा गया था।
भोपाल निवासी फ़हद अहमद और हाफ़िज़ एम हसीन ने इस जमानत की शर्त को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था। केरल उच्च न्यायालय के ऊपर बताये गए निर्णय के साथ स्वयं को सहमत पाते हुए, न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल ने इस शर्त को रद्द कर दिया था।