उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पोस्ट की फैक्ट चेक करने की अनुमति देने वाले आईटी नियमों में 2023 के संशोधन को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उस जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका 'इन लिमिन' को खारिज कर दिया, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी नियमों [2023 आईटी संशोधन नियमों के नियम - 3 (i) (II) (सी)] में नए संशोधन के अधिकार को चुनौती दी गई। केंद्र सरकार को सोशल मीडिया में अपने बारे में 'फेक न्यूज' की पहचान करने का अधिकार देना है।
चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने कहा कि वह जनहित याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है, क्योंकि इसमें केंद्रीय विधान को चुनौती दी गई है, जो 'शून्य में' है।
कोर्ट ने कहा,
"चुनौती की सराहना करने में सक्षम होने के लिए हमारा विचार है कि यह आवश्यक है कि हमारे सामने वास्तविक तथ्य स्थिति होनी चाहिए, जिससे यह देखा जा सके कि जिस कानून को चुनौती दी गई है उसका मामले के तथ्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है।''
कोर्ट ने आगे कहा कि उसने जनहित याचिका याचिका को 'अस्थायी रूप से' खारिज कर दिया।
एडवोकेट डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता के माध्यम से सत्य देव त्यागी द्वारा दायर जनहित याचिका में इस साल अप्रैल में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) द्वारा प्रख्यापित 2023 संशोधन के नियम 3(i)(II)(C) को चुनौती दी गई।
याचिका में विवादित नियमों को भारत के संविधान के अनुच्छेद - 14, 19 और 21 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा - 79 के दायरे से बाहर घोषित करने की मांग की गई। इसमें केंद्र सरकार को इसे लागू न करने का निर्देश देने की भी मांग की गई।
उल्लेखनीय है कि विवादित नियम केंद्र सरकार की एक फैक्ट चेक यूनिट को सूचित करने का अधिकार देता है, जो केंद्र सरकार के किसी भी व्यवसाय के संबंध में नकली या गलत या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री की पहचान करेगा।
इस संशोधन का प्रभाव यह है कि सोशल मीडिया साइटों (फेसबुक, ट्विटर इत्यादि) और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को उपयोगकर्ता को सूचित करना होगा कि वे संबंधित किसी भी जानकारी को होस्ट, प्रदर्शित, अपलोड, संशोधित, प्रकाशित, प्रसारित, स्टोर, अपडेट या शेयर न करें। केंद्र सरकार के किसी भी व्यवसाय की पहचान ऐसी तथ्य जांच इकाई द्वारा नकली या गलत या भ्रामक के रूप में की जाती है।
उक्त नियम यह कहता है कि ऑनलाइन मीडिएटर को किसी भी ऑनलाइन कंटेंट को हटाना होगा, जिसे मंत्रालय द्वारा नियुक्त फैक्ट चेक यूनिट 'नकली' या 'भ्रामक' के रूप में चिह्नित करता है।
बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ वर्तमान में आईटी संशोधन नियम, 2023 के नियम 3(i)(II)(C) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। याचिकाएं भारतीय पत्रिका संघ गिल्ड के संपादक और स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा द्वारा दायर की गई हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पाया कि आईटी नियम 2022 में नए संशोधन में प्रथम दृष्टया आवश्यक सुरक्षा उपायों का अभाव है।
केंद्र ने कामरा की याचिका के जवाब में विस्तृत हलफनामे में कहा कि अगर कोई सोशल मीडिया या समाचार वेबसाइट सरकार की फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) द्वारा दी गई जानकारी को 'झूठा' या 'भ्रामक' बताती है और यदि कार्रवाई की जाती है तो उसे अदालत के समक्ष अपना बचाव करना होगा।
हाईकोर्ट ने 16 जुलाई को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि सरकार स्वयं लोकतंत्र में भागीदार है, जिसे अपने बारे में नागरिकों के संदेहों का उत्तर देना है। इस प्रकार केंद्र की फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) के पास सरकार के बारे में फर्जी खबरों की पहचान करने की शक्ति है।"
केस टाइटल- सत्य देव त्यागी बनाम भारत संघ और अन्य
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