उत्तर प्रदेश की राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 लागू किया

Update: 2020-11-28 11:24 GMT

 उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020) को लागू किया है।

उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने मंगलवार (24 नवंबर) को मसौदा अध्यादेश को मंजूरी दी थी, जिसके तहत व‌िध‌ि विरुद्ध धर्म परिवर्तन को को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध बना दिया गया है। [धारा 7]

अधिनियम की प्रस्तावना-

"दुर्व्यपदेशन, बल, असम्यक असर, प्रपीड़न, प्रलोभन द्वारा या किसी कपटपूर्ण साधन द्वारा या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन का प्रतिषेध करने और उससे संबंधित या आनुषंगिक विषयों का उपबन्ध करने के लिए।"

अध्यादेश में प्रमुख प्रावधान

* दुर्व्यपदेशन, बल, कपट, असम्यक असर, प्रपीड़न, प्रलोभन या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में सपंरिवर्तन का प्रतिषेध

कोई व्यक्ति दुर्व्यपदेशन, बल, असम्यक असर, प्रपीड़न, प्रलोभन के प्रयोग या पद्धति द्वारा या किसी कपटपूर्ण साधन द्वारा या विवाह द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अन्यथा रूप में एक धर्म से दूसरे धर्म में संपरिवर्तित नहीं करेगा/करेगी या संपरिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा/करेगी और न ही किसी ऐसे व्यक्ति को ऐसे धर्म संपरिवर्तन के लिए उत्प्रेरित करेगा/करेगी, विश्वास दिलाएगा/दिलाएगी या षडयंत्र करेगा/करेगी;

परन्तु यह कि यदि कोई व्यक्ति अपने ठीक पुराने धर्म में पुनः संपरिवर्तन करता है/करती है, तो उसे इस अध्यादेश के अधीन धर्म संपरिवर्तन नहीं समझा जाएगा। (धारा 3)

* अध्यादेश के अनुसार, यदि कोई धर्म परिवर्तन-प्रलोभन, नगद या वस्तु के रूप में किसी उपहार, परितोषण, सुलभ धन या भौतिक लाभ, रोजगार, किसी धार्मिक निकाय द्वारा संचालित प्रतिष्ठित विद्यालय में निशुल्क शिक्षा, या बेहतर जीवन शैली, दैवीय अप्रसाद या प्रपीड़न या कपटपूर्ण साधनों के जर‌िए किया जाता है तो ऐसे धर्म परिवर्तन धारा 5 के तहत दंडनीय होगा।

* अध्यादेश के अनुसार दुर्व्यपदेशन, बल, असम्यक असर, प्रपीड़न, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण साधन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन प्रतिबंध‌ित होगा।

*कोई व्यथित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहिन या ऐसा कोई व्यक्ति, जो उससे रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण से संबंध‌ित हो, ऐसे धर्म परिवर्तन, जिससे धारा 3 के प्रवाधानों का उल्लंघन होता हो, के संबंध में एफआईआर दर्ज करा सकता है/सकती है।

* अध्यादेश में कहा गया है कि जो कोई धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा/करेगी, वह किसी सिविल दायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसी

अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा/की जाएगी, जो एक वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जो पाचं वर्ष तक बढ़ सकेगी और वह ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा/होगी, जो 15 हजार रुपए से कम नहीं होगाः

* अध्यादेश में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई किसी अवयस्क, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जन जाति के व्यक्ति के संबंध में धारा 3 के उपबंधों का उल्लंघन करेगा/करेगी, तो वह ऐसी अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा/की जाएगी, जो दो वर्ष से कम नही होगी, लेकिन जो दस वर्ष तक बढ़ सकेगी और वह ऐसे जुर्माने का दायी होगा/होगी ,जो पच्चीस हजार रुपए से कम नहीं होगा;

* अध्यादेश के अनुसार, जो कोई सामूहिक धर्म संपरिवर्तन के संबंध में धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा/करेगी वह ऐसी अवधि के लिए कारावास स दण्डित किया जाएगा/की जाएगी, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी लेकिन जो दस वर्ष तक हो सकेगी और वह ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा/होगी, जो पच्चास हजार रुपए से कम नहीं होगा।

* इसके अलावा, अदालत अभियुक्त को ऐसे धार्मिक रूपांतरण के पीड़ित को मुआवजे के रूप में (5 लाख रुपये तक) का भुगतान करने का निर्देश दे सकती है।

* विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन के एकमात्र प्रयोजन से किया गया विवाह या विपर्ययेन शून्य घोषित होगा-यदि विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन के एकमात्र प्रयोजन से या विपर्ययेन एक धर्म के पुरुष द्वारा अन्य धर्म की महिला के साथ विवाह के पूर्व या बाद में या तो स्वयं का धर्म संपरिवर्तन करके या विवाह के पूर्व या बाद में महिला का धर्म परिवर्तन करके किया गया विवाह, विवाह के किसी पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार के विरुद्ध प्रस्तुत की गयी याचिका पर कुटुम्ब न्यायालय द्वारा या जहां कुटुम्ब न्यायालय स्थापित न हो, वहां ऐसे मामले का विचारण करने की अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया जाएगा। (धारा 6)

दूसरे शब्दों में, यह धारा कहती है कि कि दोनों परिदृश्यों में, अर्थात जब विवाह, वि‌ध‌ि विरुद्ध धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किया जाता है या जब एक वि‌ध‌ि विरुद्ध धर्मांतरण विवाह के एकमात्र उद्देश्य के लिए किया जाता है, तो ऐसे विवाह को शून्य घोषित किया जा सकता है ( विवाह के एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के खिलाफ दायर याचिका पर।)

इस धारा में कहा गया है कि धारा 8 और 9 के सभी प्रावधान ऐसे विवाह पर लागू होंगे।

* स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन की इच्छा - जो अपने धर्म को स्वैच्छा से परिवर्तित करने की इच्छा रखता है, वह कम से कम 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष अनुसूची I में निर्धारित प्रपत्र पर घोषणा देगा।

प्रपत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए कि धर्मांतरण अपनी इच्छा से किया जा रहा है और व्यक्ति अपने धर्म को बिना बल, अनुचित प्रभाव, प्रपीड़न और प्रलोभन के, परिवर्तित करना चाहता है।

ऐसा नहीं करने पर, कारवास का दण्ड दिया जाएगा, जो छह महीने से कम नहीं होगा, लेकिन 3 साल तक बढ़ सकता है और जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगा।

जिला अध‌िकारी को स्वयं को संतुष्ट करना होगा कि धर्मांतरण स्वैच्छिक रूप से किया गया है, यदि अनुमति प्रदान की जाती है, तो संबंधित पुरोहित, पुजारी, मौलवी / मुल्ला, पादरी डीएम को स्‍थल और समय के संबंध में सूच‌ित करेंगे कि वह कब किसी व्यक्ति विशेष का धर्मांतरण कराने जा रहे हैं। यदि वह प्रस्तावित रूपांतरण के बारे में डीएम को सूचित नहीं करता है, तो वह सजा का उत्तरदायी होगा। [धारा 8]

* विवाह के परिवर्तन की घोषणा - एक बार परिवर्तित होने के बाद, व्यक्ति को, उस जिले, जिसमें वह रहता है, के जिला मजिस्ट्रेट को परिवर्तन की तारीख के 60 दिनों के भीतर, अध्यादेश में निर्धारित प्रपत्र पर एक घोषणा भेजनी होगी। 21 दिनों के भीतर जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष खुद को शारीरिक रूप से प्रस्तुत करना होगा।

उसे यह बताना होगा कि वह एक विशेष धर्म से संबंधित है और अब वह दूसरे धर्म में परिवर्तित हो गया है। ऐसा नहीं करने पर उक्त धर्मातरण को अवैध और शून्य माना जाएगा। [धारा 9]

* अपराध के पक्षकार जब अध्यादेश के अधीन कोई अपराध कारित किया जाय, तब अपराध के कारित करने में निम्नलिखित प्रत्येक व्यक्ति सहभागी हुआ समझा जाएगा/सहभागी हुई समझी जाएगी और वह अपराध का दोषी होगा/होगी और उसे इस प्रकार आरोपित किया जाएगा, मानों उसने वास्तव में उक्त अपराध कारित किया हो/की हो, अर्थात-

(1) प्रत्येक व्यक्ति, जो वास्तव में ऐसा कृत्य करता/करती है, जिससे अपराध संरचित होता है;

(2) प्रत्यके व्यक्ति, जो अन्य व्यक्ति को अपराध कारित करने में सक्षम बनाने या सहायता करने के प्रयोजन से कोई कृत्य करता/करती है या करने का लोप करता/करती है;

(3) प्रत्येक व्यक्ति, जो अपराध कारित करने में अन्य व्यक्ति की सहायता करता/करती है या उसे दुष्प्रेरित करता/करती है;

(4) कोई व्यक्ति, जो अपराध कारित करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को परामर्श देता/देती है, विश्वास दिलाता/दिलाती है या उपाप्त करता/करती है। (धारा 11)

सबूत का भार

इस तथ्य के सबूत का भार कि कोई धर्म परितर्वन दुर्व्यपदेशन, बल, असम्यक् असर, प्रपीड़न, प्रलोभन के माध्यम से या किसी कपटपूर्ण साधन द्वारा या विवाह द्वारा प्रभावित नही है, उस व्यक्ति पर, जिसने धर्म परिवर्तन कराया है और जहां ऐसा धर्म परिवर्तन किसी व्यक्ति द्वारा सुकर बनाया गया हो वहां ऐसे अन्य व्यक्ति पर होगा।

पृष्ठभूमि

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा "लव जिहाद" के खिलाफ एक प्रभावी कानून लाने का वादा करने के सप्ताह भर बाद उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने अध्यादेश को मंजूरी दी है।

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने प्रियांशी @ कुमारी शमरेन और अन्य बनाम स्टेट ऑफ यूपी और अन्य [2020 की रिट सी 14288], जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें एक विवाहित जोड़े द्वारा पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी, का भी हवाला दिया था।

अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि लड़की जन्म से मुस्लिम थी और उसने शादी से एक महीने पहले ही अपना धर्म बदलकर हिंदू धर्म अपना लिया था।

विशेष रूप से, जज ने, नूरजहां बेगम @ अंजलि मिश्रा और अन्‍य बनाम उत्तर प्रेदश राज्य और अन्य, जिसमें कहा गया ‌था कि विवाह के उद्देश्य से धर्मातरण अस्वीकार्य है, का भी उल्लेख किया था।

11 नवंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक जजमेंट में माना था कि नूरजहां और प्रियांशी में फैसले अच्छे कानून नहीं हैं।

ज‌स्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा था, "हम यह समझने में विफल हैं कि यदि कानून एक ही लिंग के दो व्यक्तियों को एक साथ शांति से रहने की अनुमति देता है, तो न तो किसी व्यक्ति और न ही परिवार या यहां तक ​​कि राज्य को भी दो वयस्‍कों के संबंधों पर आपत्ति हो सकती है..."

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