UAPA Act | अगर कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं तो सिर्फ इसलिए जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोप गंभीर हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2023-11-15 05:28 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कड़े गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA Act) के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत दे दी। कोर्ट ने यह यह देखते हुए उक्त व्यक्ति को जमानत दी कि पाकिस्तान के साथ संबंधों के आधार पर कथित तौर पर कुछ आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने की योजना बनाने के मामले में प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है।

एक्टिंग चीफ जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस मनीषा बत्रा की खंडपीठ ने कहा,

"अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के आधार पर प्रथम दृष्टया ऐसा कोई मामला नहीं बनाया जा सकता है, जिससे यह माना जा सके कि दोनों के बीच कोई साजिश हुई। अपीलकर्ता और सह-अभियुक्त पर आतंकवादी गिरोह की सदस्यता लेने और राष्ट्र के हित के खिलाफ कार्य करने का आरोप है।"

कोर्ट ने कहा,

"यूएपीए एक्ट के क़ानून में कड़े प्रावधान हैं, लेकिन यह अदालत के कर्तव्य को और अधिक कठिन बना देता है। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि केवल इसलिए कि आरोप गंभीर है, केवल उस कारण से जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता।"

वर्नोन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य 2023 लाइव लॉ (एससी) 575 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया गया।

अदालत गुरसेवक सिंह की जमानत याचिका पर फैसला कर रही थी, जिसके खिलाफ 2020 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 379-बी, 382, 399, 402, 411, 467, 468, 472, 473, यूएपीए एक्ट की धारा 15, 16, 17, 18, 18बी और शस्त्र एक्ट की धारा 25 उपधारा 6, 7 और 8 और जेल अधिनियम की धारा 52/54 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

यह आरोप लगाया गया कि सिंह उस गिरोह का हिस्सा था, जो देश में विभिन्न स्थानों पर कुछ आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने की योजना बना रहा था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि सह-अभियुक्त के प्रकटीकरण बयान के अनुसार अपीलकर्ता और अन्य आरोपियों ने आईआईएफएल गोल्ड लोन शाखा, गिल रोड, लुधियाना से 30 किलोग्राम सोना लूट लिया।

दलीलों पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि यूएपीए की धारा 45 के अनुसार, कोई भी अदालत केंद्र सरकार या जैसा भी मामला हो, राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना अध्याय IV के तहत आने वाले किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।

माना जाता है कि इस मामले में अपीलकर्ता और सह-अभियुक्तों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी चालान पेश होने की तारीख तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा नहीं दी गई और इसे बाद में दिया गया। फिर उक्त मंजूरी को पूरक चालान रिपोर्ट सहित अदालत में दाखिल किया गया दिखाया गया। इसलिए यह बहस का विषय है कि क्या न्यायालय यूएपीए एक्ट की धारा 16, 17, 18 और 18 बी के तहत दंडनीय अपराधों का संज्ञान लेने के लिए उस तारीख तक सक्षम है, जब यूएपीए एक्ट की धारा 45 के तहत मंजूरी दी गई।

पीठ ने आगे कहा कि राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों का समर्थन करने के लिए सिंह को कोई विशिष्ट भूमिका नहीं दी गई।

कोर्ट ने कहा,

"वह 05.07.2020 से हिरासत में है। अब तक 38 गवाहों में से केवल 1 से पूछताछ की गई। इस मामले में अपीलकर्ता से कोई भी बरामदगी नहीं हुई है और अन्य मामले में उसके पास से कथित तौर पर एक रिवॉल्वर और दस जिंदा कारतूस बरामद किए गए। इस मामले से पहले पुलिस स्टेशन मोहाली में मामला दर्ज किया गया था।"

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के आधार पर प्रथम दृष्टया ऐसा कोई मामला नहीं बनाया जा सकता, जिससे यह माना जा सके कि अपीलकर्ता और सह-अभियुक्तों के बीच आतंकवादी गिरोह की सदस्यता बनाने के लिए कोई साजिश हुई।

यह कहते हुए कि अपीलकर्ता लगभग साढ़े तीन साल की अवधि के लिए हिरासत में है और मुकदमे में समय लगने की संभावना है। अदालत ने राहत दी।

परिणामस्वरूप, जमानत खारिज करने वाले विशेष न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया गया।

अपीयरेंस: अपीलकर्ता की ओर से राजीव मल्होत्रा और अलंकार नरूला, एएजी, पंजाब।

केस टाइटल: गुरसेवक सिंह बनाम पंजाब राज्य

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