मजिस्ट्रेट द्वारा मामला सेशन कोर्ट को सौंपा जाने पर ट्रायल नए सिरे से शुरू होना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जब कोई मामला मजिस्ट्रेट द्वारा सेशन कोर्ट को सौंप दिया जाता है तो ट्रायल नए सिरे से शुरू करना होगा।
जस्टिस अमित बंसल ने कहा कि सेशन कोर्ट पहले आरोप तय करेगा और फिर गवाहों की जांच के लिए आगे बढ़ेगा।
अदालत ने कहा,
“जब कोई मामला मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा सेशन कोर्ट को सौंप दिया जाता है तो मजिस्ट्रेट कार्यात्मक अधिकारी बन जाता है और उसमें दर्ज किए गए किसी भी साक्ष्य को प्रतिबद्ध अदालत के समक्ष नए सिरे से सुनवाई के प्रयोजनों के लिए स्वीकार्य नहीं माना जा सकता है। इसलिए सबूतों को भी नए सिरे से दर्ज करना होगा।”
जस्टिस बंसल एडिशन सेशन जज द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाले आरोपी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। उक्त याचिका में कहा गया कि जब मामला मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा सेशन कोर्ट को सौंप दिया जाता है तो नए सिरे से ट्रायल शुरू करने की आवश्यकता नहीं होती।
भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 341, 323, 308, 506 और 34 के तहत अपराध के लिए 2003 में एफआईआर दर्ज की गई। 2005 में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने मामले में आरोप तय किए और शिकायतकर्ता द्वारा दायर ट्रायल सेशन कोर्ट में सौंपने की मांग करते हुए आवेदन खारिज कर दिया।
एक सेशन कोर्ट ने एमएम के आदेश के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका स्वीकार कर ली और मामला सेशन कोर्ट को सौंप दिया गया।
पिछले साल पारित आदेश के तहत एएसजे ने आदेश दिया कि नए सिरे से ट्रायल शुरू नहीं किया जाना चाहिए, खासकर जब एमएम द्वारा सभी गवाहों की जांच की गई हो।
जस्टिस बंसल ने मद्रास, पंजाब एंड हरियाणा और मध्य प्रदेश के हाईकोर्ट द्वारा इस विषय पर पारित निर्णयों से सहमति व्यक्त करते हुए कहा:
“सीआरपीसी की धारा 323 का अधिदेश स्पष्ट है। जब कोई मामला मजिस्ट्रेट द्वारा सेशन कोर्ट को सौंप दिया जाता है तो ट्रायल नए सिरे से शुरू करना होगा। सेशन कोर्ट पहले आरोप तय करेगा और फिर गवाहों की जांच के लिए आगे बढ़ेगा।
अदालत ने कहा कि सेशन कोर्ट को मजिस्ट्रेट के उत्तराधिकारी के रूप में नहीं माना जा सकता। इसलिए सीआरपीसी की धारा 326 वर्तमान मामले पर लागू नहीं होगी।
विवादित आदेश रद्द करते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि ट्रायल सेशन कोर्ट के समक्ष उसी चरण से आगे बढ़ेगा, जो विवादित आदेश पारित होने से पहले था।
अदालत ने कहा,
"हालांकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वर्तमान एफआईआर वर्ष 2003 में दर्ज की गई, एएसजे से वर्तमान मामले में सुनवाई तेजी से पूरी करने का अनुरोध किया जाता है। अधिमानतः तय तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर मामले का निपटारा किया जाए।"
केस टाइटल: शंकर @ गोरी शंकर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं अन्य राज्य।
ऑर्डर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें