याचिकाकर्ता ने केवल महाराणा प्रताप के वर्ग (क्षत्रिय या मारवाड़ी) के बारे में अपनी धारणा साझा की; नफरत फैलाने का कोई इरादा नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने FIR रद्द की

Update: 2020-11-25 05:08 GMT

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक फेसबुक पोस्ट के लिए मनोरंजन यादव (याचिकाकर्ता) नामक व्यक्ति के खिलाफ दायर एक एफआईआर को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी धारणा साझा की कि महाराणा प्रताप किस वर्ग में आएंगे, यानि क्षत्रिय या मारवाड़ी के रूप में।

न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ याचिकाकर्ता (मनोरंजन यादव) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 (2000 का अधिनियम 21) 2000 की धारा 66 और 505 आई.पी.सी. के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की प्रार्थना की थी।

याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला

प्राथमिकी में यह आरोप लगाया गया था कि इन्फोरमेंट (Informant), जाति से एक "क्षत्रिय", याचिकाकर्ता (मनोरंजन यादव) के फेसबुक अकाउंट पर एक पोस्ट के प्रकाशन से व्यथित था, जिसे इन्फोरमेंट ने आपत्तिजनक पाया।

न्यायालय का अवलोकन

कोर्ट ने नोट किया कि धारा 66 आई.टी. अधिनियम, 2000 कंप्यूटर से संबंधित अपराध के लिए सजा से संबंधित है जो यह प्रावधान करता है कि यदि कोई व्यक्ति धारा 43 के अंतर्गत आने वाले कोई कार्य करता है तो उसे दोषी करार दिया जाएगा।

इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप, धारा 43 के किसी भी खंड से संबंधित नहीं है क्योंकि यह धारा कंप्यूटर प्रणाली को नुकसान पहुँचाने से संबंधित है।

इस प्रकार, न्यायालय ने टिप्पणी की कि आई.टी एक्ट की धारा 66 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

आईपीसी की धारा 505 के संबंध में, न्यायालय ने देखा,

"बोले गए या लिखे गए शब्द धर्म/जाति/भाषा/क्षेत्र/समुदायों के आधार पर दो गुटों के बीच दुश्मनी, घृणा की भावनाओं को पैदा करने या बढ़ावा देने के इरादे से होने चाहिए।"

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा,

"एक ऐतिहासिक तथ्य के बारे में राय धारणाओं का विषय हो सकती है। दो इतिहासकार एक ऐतिहासिक घटना पर एक ही पृष्ठ पर नहीं हो सकते। एक अप्रिय दृष्टिकोण धारा 505 (2) के तहत अपराध को आकर्षित नहीं करेगा, क्योंकि उसे संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) (जो अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है) द्वारा बचाया जाएगा।"

याचिकाकर्ता द्वारा किए गए पोस्ट के बारे में, कोर्ट ने कहा कि पोस्ट के लेखक (याचिकाकर्ता) केवल अपनी धारणा साझा कर रहे थे कि आखिर महाराणा प्रताप किस वर्ग में आएंगे, यानि क्षत्रिय या मारवाड़ी के रूप में।

अदालत ने यह नहीं पाया कि "बयान दो अलग समूहों के बीच दुश्मनी, नफरत की भावनाओं को बनाने या बढ़ावा देने के लिए था।"

महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने कहा कि "यह प्रावधान किसी कमजोर/संवेदनशील व्यक्ति की भावनाओं के आधार पर लागू करने के लिए नहीं है।"

उपरोक्त चर्चा के प्रकाश में, न्यायालय ने यह विचार किया कि,

"आई.टी की धारा 66 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है और न ही धारा 505 आईपीसी के तहत कोई अपराध बनता है."

रिट याचिका को अनुमति दी गई थी और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 (2000 का अधिनियम 21) और 505 आईपीसी के तहत दर्ज एफ़आईआर पी.एस. बड़हलगंज, गोरखपुर को रद्द किया गया।

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