सर्वेक्षण का परिणाम स्वामित्व विलेख के तहत संपत्ति पर अर्जित अधिकार को प्रभावित नहीं करते, यह केवल सीमा निर्धारण का निर्णायक सबूत: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक नियमित दूसरी अपील को खारिज कर दिया, जिसमें पाया गया कि केरल सर्वेक्षण और सीमा अधिनियम, केरल सर्वेक्षण और सीमा नियमों के तहत सर्वेक्षण अधिकारियों के फैसले उस संपत्ति के अधिकार और स्वामित्व को प्रभावित नहीं करेंगे, जिसे पार्टी ने एक वैध टाइटल डीड के जरिए हासिल किया है।
जस्टिस के बाबू ने कहा कि संपत्ति पर स्वामित्व का दावा मुख्य रूप से वैध टाइटल डीडी के आधार पर किया जा सकता है, न कि सर्वेक्षण अधिकारियों की ओर से किए गए सर्वेक्षण सीमांकन के संदर्भ में। अदालत ने कहा कि सर्वेक्षण का परिणाम सीमा विवाद में सीमाओं के निर्धारण के लिए निर्णायक सबूत है, न कि भूमि के स्वामित्व या कब्जे के निर्धारण के लिए।
कोर्ट ने कहा,
“केरल सर्वेक्षण और सीमा अधिनियम के प्रावधान और उसके तहत बनाए गए नियम केवल भूमि के सर्वेक्षण पर लागू किए जा सकते हैं जैसा कि अधिनियम के अध्याय दो में प्रदान किया गया है। इस मामले में किया गया सर्वेक्षण अधिनियम के अध्याय दो में प्रदान की गई सर्वेक्षण प्रक्रिया के अनुसार नहीं है।
यह भी सामान्य बात है कि अधिनियम के अध्याय दो के तहत सर्वेक्षण अधिकारियों के निर्णय वैध टाइटल डीड के अनुसार किसी पार्टी की अर्जित संपत्ति के अधिकार और स्वामित्व को प्रभावित नहीं करेंगे।
संपत्ति का अधिकार और स्वामित्व सर्वेक्षण सीमांकन के संदर्भ में नहीं बल्कि अन्य ठोस सामग्रियों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए, जिनमें से प्राथमिक टाइटल डीड है। सर्वेक्षण परिणाम का रिकॉर्ड इस बात का निर्णायक प्रमाण होगा कि सीमाएं सही ढंग से निर्धारित और दर्ज की गई थीं।"
मामले के तथ्यों अनुसार, यह विवाद मूल रूप से कृष्णन नांबियार के स्वामित्व वाली संपत्ति से संबंधित था। खाइयों के कारण उनकी संपत्ति अलग-अलग भूखंडों में विभाजित थी।
वादी ने स्वर्गीय कृष्णन नांबियार के कानूनी प्रतिनिधि से खरीदी गई इस संपत्ति के एक हिस्से ("वादी अनुसूची संपत्ति") के संबंध में स्वामित्व की घोषणा, सीमा के निर्धारण और परिणामी निषेधाज्ञा के लिए ट्रायल कोर्ट से संपर्क किया।
यह आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी विभाजित संपत्ति की सीमाओं में हस्तक्षेप कर रहे थे। प्रतिवादियों ने इसका विरोध किया। उन्होंने दावा किया कि वे वादी की संपत्ति में अतिक्रमण नहीं कर रहे थे और वास्तव में, वादी ने वादी अनुसूची संपत्ति पर कब्जा नहीं किया था।
ट्रायल कोर्ट ने भूमि के कुछ भूखंडों पर स्वामित्व की घोषणा करके वादी के पक्ष में मुकदमे का फैसला सुनाया और सीमा तय करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने स्थायी निषेधाज्ञा के एक आदेश के जरिए प्रतिवादियों को वादी की संपत्ति पर अतिक्रमण करने से भी रोक दिया। प्रथम अपीलीय अदालत ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसके खिलाफ प्रतिवादियों ने हाईकोर्ट के समक्ष दूसरी अपील दायर की।
हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने सही कहा था कि प्रतिवादियों ने विभाजन विलेख के अलावा किसी अन्य दस्तावेज़ के आधार पर स्वामित्व का दावा नहीं किया है।
कोर्ट ने केरल सर्वेक्षण और सीमा नियमों के नियम 56 के आधार पर प्रतिवादियों के तर्क को इस आधार पर खारिज कर दिया कि जब पार्टियों ने वैध टाइटल डीड के जरिए भूमि का अधिग्रहण किया तो सर्वेक्षण अधिकारियों का निर्णय लागू नहीं था।
अदालत ने आगे कहा कि वर्तमान मामले में, सर्वेक्षण केरल सर्वेक्षण और सीमा अधिनियम में उल्लिखित सर्वेक्षण प्रक्रिया के अनुसार नहीं किया गया था। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला गया कि वादी ने संपत्ति पर अपना स्वामित्व साबित कर दिया और प्रतिवादी विवादित भूमि पर अपना स्वामित्व स्थापित करने में विफल रहे। जिसके बाद दूसरी अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटलः एलाम्बिलन नानी अम्मा और अन्य बनाम मुलवाना एंटनी और अन्य, RSA No 420/2007
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केर) 698