''जन्म देने के लिए मजबूर करने पर पीड़िता को आजीवन दुःख और बच्चे को तिरस्कार का सामना करना पड़ेगा'': छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िता के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी

Update: 2021-06-28 08:30 GMT
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा कि अगर उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है तो पीड़िता को मौजूदा सामाजिक परिदृश्य में आजीवन पीड़ा का सामना करना पड़ेगा।

न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि,

''यह स्पष्ट है कि यदि पीड़िता के साथ बलात्कार किया गया है और उसे मौजूदा सामाजिक परिदृश्य में बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसे जीवन भर पीड़ा का सामना करना पड़ेगा। इस तथ्य के अलावा जो बच्चा पैदा होगा, उसे भी समाज में तिरस्कार का सामना करना पड़ेगा। इन परिस्थितियों के तहत, यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति की हकदार है।''

यह निर्देश एक महिला की तरफ से दायर याचिका पर दिया गया है। इस महिला ने बताया था कि वह बलात्कार के बाद गर्भवती हो गई थी। उसने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति मांगी थी।

याचिकाकर्ता का कहना था कि अगर उसे बलात्कार के कारण ठहरे गर्भ को जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उसे पीड़ा होगी और अंततः उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर होगा।

अपनी दलीलों समर्थन में याचिकाकर्ता ने 17 जून और 23 जून 2021 की मेडिकल रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर रखा। उसकी जांच जिला मेडिकल बोर्ड अस्पताल, दुर्ग में की गई थी, जिसके बाद डॉक्टर ने कहा था कि वह 14 सप्ताह 3 दिन की गर्भवती है,इसलिए वह सुरक्षित रूप से गर्भावस्था का मेडिकल टर्मिनेशन करवा सकती है।

मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने हालिया अधिसूचना दिनांक 25.03.2021 का विश्लेषण किया,जो अधिनियम की धारा 3 के संशोधन से संबंधित थी। इस पर विचार करने के बाद न्यायालय ने कहा किः

''उक्त धारा को पढ़ने से पता चलता है कि गर्भावस्था की अवधि को पंजीकृत चिकित्सक की इस राय से समाप्त किया जा सकता है कि गर्भावस्था महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंचाएगी और जहां गर्भावस्था की अवधि बीस सप्ताह से अधिक नहीं है।''

इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि,

''स्पष्टीकरण 2 में भी यह कहा गया है कि बलात्कार के कारण होने वाली गर्भावस्था को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट का कारण माना जाएगा। वहीं बलात्कार के तथ्य का राज्य द्वारा भी समर्थन किया गया है कि पीड़िता के साथ बलात्कार किया गया था।''

कोर्ट ने निर्देश दिया है कि राज्य सरकार इस मामले पर विचार करने के लिए जल्द से जल्द जिला अस्पताल दुर्ग में विशेषज्ञ डॉक्टरों का एक पैनल बनाए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि, ''अस्पताल याचिकाकर्ता के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखेगा और उसे सभी चिकित्सा सहायता प्रदान करेगा। आगे यह भी निर्देश दिया गया है कि बच्चे के डीएनए को भी इस तथ्य पर विचार करते हुए संरक्षित किया जाए कि पीड़िता ने पहले ही धारा 373 के तहत एक रिपोर्ट दर्ज करा रखी है। इसलिए अंततः भविष्य में उस डीएनए की आवश्यकता होगी।''

केस का शीर्षक- एबीसी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य व अन्य

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