पति द्वारा कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना या कोई भी यौन कृत्य बलात्कार नहीं, भले ही वह बलपूर्वक या उसकी इच्छा के विरुद्ध होः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Update: 2021-08-26 05:30 GMT
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को वैवाहिक बलात्कार के अपराध से आरोमुक्त करते हुए कहा है कि पति द्वारा अपनी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ यौन संबंध या कोई भी यौन कृत्य करना बलात्कार नहीं है, भले ही वह पत्नी से बलपूर्वक या उसकी इच्छा के विरुद्ध किया गया हो।

हालाँकि, अदालत ने आरोपी पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत आरोप तय करते हुए कहा कि पत्नी के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाने के उसके कृत्य ने उक्त अपराध को आकर्षित किया है।

आईपीसी की धारा 375 के अपवाद II पर भरोसा करते हुए, न्यायमूर्ति एन.के. चंद्रवंशी ने कहा कि,

''... किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य, जिसकी पत्नी अठारह वर्ष से कम उम्र की न हो, बलात्कार नहीं है। इस मामले में, शिकायतकर्ता आवेदक नंबर 1 की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है, इसलिए आवेदक नंबर 1/पति द्वारा उसके साथ संभोग करना या कोई भी यौन कृत्य करना, बलात्कार का अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही वह बलपूर्वक या उसकी इच्छा के विरुद्ध हो।''

इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि,

''हालांकि, उसके गुप्तांग में उंगली और मूली डालने के अलावा, उसने शिकायतकर्ता के साथ और क्या अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाए, शिकायतकर्ता ने यह नहीं बताया, जो कि सबूत की बात है, लेकिन, केवल इस आधार पर, आईपीसी की धारा 377 के तहत तय किए गए आरोपों को आरोप तय करने के चरण में गलत नहीं कहा जा सकता है। विशेष रूप से आईपीसी की धारा 377 के संदर्भ में, जहां अपराधी का प्रमुख इरादा अप्राकृतिक यौन संतुष्टि पाना, बार-बार पीड़ित के यौन अंग में किसी वस्तु को डालना और परिणामस्वरूप यौन सुख प्राप्त करना है, ऐसा कृत्य प्रकृति के आदेश के खिलाफ एक शारीरिक संभोग के रूप में होगा और ऐसा कृत्य आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध के संघटक को आकर्षित करेगा।''

इस मामले में सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक आपराधिक रिवीजन दायर की गई थी। सत्र न्यायालय ने पत्नी की शिकायत पर पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, 34, 376 और 377 के तहत और ससुराल पक्ष के खिलाफ 498ए के तहत आरोप तय किए थे।

शिकायतकर्ता का आरोप यह है कि शादी के कुछ दिनों बाद ही वे उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करने लगे और उसके साथ शारीरिक हिंसा की।

पति के खिलाफ विशिष्ट आरोप यह है कि उसने विरोध के बावजूद उसकी योनि में उंगलियां और मूली डालकर उसके साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाए।

आरोपी पति का मामला यह है कि उसकी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी होने के नाते, आईपीसी की धारा 376 और 377 के तहत दंडनीय अपराध का गठन करने के लिए उसके खिलाफ कोई भी सामग्री नहीं है। भारत में वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं है और यह आईपीसी की धारा 375 के अपवाद II के मद्देनजर अपराध नहीं है। इस संबंध में निमेशभाई भरतभाई देसाई बनाम गुजरात राज्य मामले में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया गया।

कोर्ट ने कहा कि,''आवेदक नंबर 1/पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत तय किए गए आरोप गलत और अवैध है। इसलिए, आईपीसी की धारा 376 के तहत वह आरोप से मुक्त होने का हकदार है।''

हालांकि, धारा 498ए के तहत आरोपों पर अदालत ने कहा कि लिखित रिपोर्ट और पत्नी के बयानों से यह पता चलता है कि शादी के कुछ दिनों के बाद ही दहेज की मांग के कारण सभी आरोपी व्यक्तियों ने उसके साथ क्रूरता शुरू कर दी थी। इसलिए इन आरोपों में कोई दुर्बलता नहीं है।

पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 377 के तहत आरोप तय करते हुए, न्यायालय ने गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा मोमिना बेगम बनाम भारत संघ के मामले में दिए गए निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया है कि यदि अपराधी का प्रमुख इरादा अप्राकृतिक तरीके से यौन संतुष्टि प्राप्त करना है, तो अपराधी का ऐसा कार्य अपराध को आकर्षित करेगा।

जज ने शुरुआत में कहा कि,'' इसलिए मुझे आवेदक नंबर 1/पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 377 के तहत आरोप तय करने में ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई कोई दुर्बलता या अवैधता नहीं मिली है।''

रिवीजन याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने पति को आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोपमुक्त कर दिया और आईपीसी की धारा 377, 498ए और 34 के तहत आरोपों को बरकरार रखा है।

केस का शीर्षकः दिलीप पांडे व अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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