एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध | क्या पूरे मामले की कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका में चुनौती दी जा सकती है? : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजा

Update: 2023-10-03 06:50 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ के पास भेजा कि क्या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर आवेदन एससी/एसटी एक्ट के तहत मामले की पूरी कार्यवाही को चुनौती देने योग्य और सुनवाई योग्य है।

जस्टिस जे जे मुनीर की पीठ ने इस मुद्दे को संदर्भित किया, क्योंकि उसने नोट किया कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर किए गए ऐसे आवेदन की स्थिरता के संबंध में हाईकोर्ट के विरोधाभासी निर्णय है।

अदालत ने कहा कि अनुज कुमार उर्फ संजय और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य 2022 लाइव लॉ (एबी) 264 मामले में हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश की राय देवेंद्र यादव और 7 अन्य बनाम यूपी राज्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 135 मामले में अन्य एकल न्यायाधीश की राय के विपरीत थी।

संदर्भ के लिए अनुज कुमार के मामले (सुप्रा) में यह माना गया कि एससी/एसटी एक्ट अपराध में विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित समन आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन दायर नहीं किया जा सकता।

इसमें आगे कहा गया कि जहां आरोपी समन और संज्ञान आदेश के साथ मामले/चार्जशीट की कार्यवाही को रद्द करने की मांग करता है तो इसका उपाय एससी/एसटी एक्ट की धारा 14-ए (1) के तहत अपील के माध्यम से है।

दूसरी ओर, देवेन्द्र यादव मामले (सुप्रा) में यह माना गया कि एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध के लिए किसी आरोपी को समन जारी करने के आदेश को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन दायर करके चुनौती दी जा सकती है।

जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने रामावतार बनाम मध्य प्रदेश राज्य एलएल 2021 एससी 589 और बी वेंकटेश्वरन बनाम पी बख्तवत्चलम 2023 लाइव लॉ (एससी) 14 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए ऐसा कहा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि एससी/एसटी एक्ट से उत्पन्न आपराधिक कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का उपयोग करके रद्द किया जा सकता है।

इस मुद्दे को बड़ी पीठ के पास भेजने का अवसर जस्टिस मुनीर की पीठ द्वारा एससी/एसटी एक्ट के अपराधों से संबंधित सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिकाओं पर सुनवाई करते समय उत्पन्न हुआ।

अपने आदेश में एचसी के दोनों निर्णयों में विरोधाभास को ध्यान में रखते हुए जस्टिस मुनीर का विचार था कि एकल न्यायाधीशों के विरोधाभासी तर्कों का विश्लेषण करना और अपनी राय देना उनके लिए व्यर्थ होगा। यह संघर्ष की तीव्रता को बढ़ाएंगा।

उन्होंने यह भी नोट किया कि अतिरिक्त संघर्ष के अलावा, अब योग्यता पर कोई भी टिप्पणी ऐसे मामलों में न्यायिक अनुशासन के स्थापित सिद्धांतों के विपरीत होगी।

इसलिए कुछ भी कहने से बचते हुए न्यायालय ने निम्नलिखित प्रश्नों को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया:

1. क्या एससी/एसटी एक्ट के तहत किसी मामले की संपूर्ण कार्यवाही को चुनौती दी गई, जिसमें किसी अंतर्वर्ती आदेश यानी समन आदेश को कोई चुनौती नहीं है, गुलाम रसूल खान बनाम यूपी राज्य और अन्य में पूर्ण पीठ द्वारा प्रश्न नंबर (III) के उत्तर में निर्धारित नियम के दायरे में होगा?

2. क्या गुलाम रसूल खान (सुप्रा) में पूर्ण पीठ में सिद्धांत के मद्देनजर, एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन के माध्यम से इस न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है, जहां कार्यवाही के साथ-साथ संज्ञान लेने और आवेदक को तलब करने के आदेश को भी चुनौती दी गई।

उल्लेखनीय है कि गुलाम रसूल मामले में अन्य बातों के अलावा, यह माना गया कि जिस पीड़ित व्यक्ति ने एससी/एसटी की धारा 14 ए के प्रावधानों के तहत अपील के उपाय का लाभ नहीं उठाया है, उसे प्राथमिकता देकर सीआरपीसी की धारा 482 के प्रावधानों के तहत आवेदन दायर कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है?

केस टाइटल- अभिषेक अवस्थी @ भोलू अवस्थी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, संबंधित मामलों के साथ लाइव लॉ (एबी) 359/2023

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