धारा 167(2) सीआरपीसी| अभियुक्त पहले फरार रहा हो तब भी वह डिफॉल्ट जमानत का हकदार: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में एक फैसले मे कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत का प्रावधान, एक ऐसे अभियुक्त के साथ जो एक बार फरार हो चुका है और बाद में गिरफ्तार कर गया है, वैसे अभियुक्त से अलग व्यवहार नहीं करता, जो फरार नहीं हुआ था...।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि विचार के लिए प्रासंगिक बिंदु केवल यह है कि आरोपी की गिरफ्तारी की तारीख से, जैसा कि मामला हो सकता है, आरोप पत्र 60/90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर दायर किया गया था।
कोर्ट ने कहा,
"उपरोक्त प्रावधान से यह स्पष्ट है कि यह उस व्यक्ति, जिसे पहले किसी समय पर गिरफ्तार किया गया था और वह व्यक्ति/आरोपी, जिसे उसके फरार होने के कारण बाद में गिरफ्तार किया गया था, और व्यक्ति/आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दायर की जा चुकी हो, जो पहले भी गिरफ्तार हो चुका है, के बीच कोई अंतर नहीं करता है। और, इसके विपरीत यह तब लागू होता है 'जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में रखा जाता है' यानी, चाहे उसे जब भी गिरफ्तार किया गया हो।"
पीठ ने जोर देकर कहा कि धारा 167 (2) सीआरपीसी किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है और इस प्रकार इसे कठोरता से समझा जाना चाहिए क्योंकि किसी भी अन्य व्याख्या से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अभियुक्तों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
मामले के तथ्य यह थे कि अपीलकर्ता और तीन अन्य व्यक्तियों पर आईपीसी की धारा 302, 307, 323, 294, 147, 148, 149 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)5 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाया गया था।
मामले में तीन सह-अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि अपीलकर्ता फरार रहे। अन्य सह-अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया था, अपीलकर्ताओं के खिलाफ जांच खुली रखी गई।
बाद में अपीलकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया, लेकिन उनकी गिरफ्तारी की तारीख से नब्बे दिनों के भीतर उनके खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया था।
अपीलकर्ताओं ने सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत एक आवेदन दायर किया, लेकिन उसे ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि डिफॉल्ट जमानत का लाभ वह अभियुक्त नहीं उठा सकते हैं, जो पहले फरार हो चुके हैं क्योंकि उन्हें अपनी गलतियों का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ।
जिसके बाद अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की।
अपीलकर्ताओं ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उन्हें डिफॉल्ट जमानत मांगने का अधिकारों है, क्योंकि पुलिस ने 90 दिनों की अवधि के भीतर चार्जशीट जमा नहीं की थी।
इसके विपरीत, राज्य ने तर्क दिया कि अपीलकर्ताओं को जमानत के लाभ से वंचित करना सही है क्योंकि वे लगभग 4 साल तक फरार रहे और उन्हें अपनी गलती का फायदा उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी। अपने स्टैंड को मजबूत करने के लिए राज्य ने अनिल सोमदत्त नागपाल और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
पक्षकारों के प्रस्तुतीकरण और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों की जांच करते हुए, न्यायालय ने अपीलकर्ताओं द्वारा दिए गए तर्कों में योग्यता पाई। कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत प्रावधान की जांच करते हुए अनिल सोमदत्त नागपाल मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले से असहमति जताई-
कोर्ट ने कहा,
" पूर्वोक्त निष्कर्ष पर उचित विचार करने पर, यानि धारा 167 (2) सीआरपीसी के प्रावधानों को, संविधान के अनुच्छेद 21 के साथ पढ़ने पर, जो प्रदान करता है कि, 'किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी अन्य तरीके से वंचित नहीं किया जाएगा।"
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत जमानत के पात्र हैं क्योंकि उनके मामले में चार्जशीट 90 दिनों की सीमा से परे जमा की गई थी। तदनुसार, अपील की अनुमति दी गई और अपीलकर्ताओं को डिफॉल्ट जमानत का लाभ दिया गया।
केस टाइटल: दिनेश और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य