भोपाल गैस त्रासदी: हाईकोर्ट ने मीडिया से पिथमपुर में यूनियन कार्बाइड कचरे के निपटान पर फर्जी खबरें न प्रकाशित करने को कहा
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार (6 जनवरी) को मीडिया को आदेश दिया कि वह पीथमपुर संयंत्र में यूनियन कार्बाइड अपशिष्ट पदार्थ के निपटान के बारे में कोई भी फर्जी खबर या गलत सूचना प्रकाशित न करे।
चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा,
"मीडिया को कोई भी फर्जी खबर प्रकाशित नहीं करनी चाहिए, जिससे अपशिष्ट पदार्थ के निपटान के बारे में जनता में भय और भ्रम पैदा हो।"
3 दिसंबर, 2024 को दिए गए अपने अंतिम आदेश में न्यायालय ने कहा था कि भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल बीत चुके हैं लेकिन अब बंद हो चुकी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में अभी भी जहरीला अपशिष्ट पदार्थ पड़ा हुआ है। इसलिए न्यायालय ने अधिकारियों को साइट को तुरंत साफ करने और क्षेत्र से अपशिष्ट/सामग्री के सुरक्षित निपटान के लिए सभी उपचारात्मक उपाय करने का निर्देश दिया था।
सोमवार (6 जनवरी) को एडवोकेट जनरल ने अनुपालन का हलफनामा पेश किया, जिसमें कहा गया कि अपशिष्ट पदार्थों को 12 अग्निरोधक और रिसाव-रोधी कंटेनरों में भरकर पीथमपुर अपशिष्ट सुविधा केंद्र में ले जाया गया। अपशिष्ट पदार्थों का परिवहन पुलिस और प्रशासन के सहयोग से किया गया, जिसमें डॉक्टरों, अग्निशमन कर्मचारियों और कुशल श्रमिकों से युक्त आरक्षित टीम को तैनात किया गया। हालांकि एडवोकेट जनरल ने कहा कि सामग्री बस वहीं पड़ी हुई, क्योंकि निपटान के बारे में बहुत सारी फर्जी मीडिया रिपोर्ट्स आई, जिससे जनता में भय और भ्रम की स्थिति पैदा हुई।
न्यायालय ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा,
"हलफनामे में आगे कहा गया कि मीडिया के विभिन्न वर्गों द्वारा कुछ काल्पनिक मीडिया रिपोर्टों के आधार पर भारी जन आक्रोश है, जिसमें निराधार अफवाहें फैलाई गई, जिससे यह तस्वीर पेश की जा सके कि अगर अपशिष्ट को पीथमपुर में सुविधा केंद्र में उतारकर उसका निपटान किया गया तो एक और औद्योगिक आपदा आ जाएगी, जिससे पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। उक्त दुष्प्रचार को दूर करने के लिए प्रतिवादी ने राज्य के विभिन्न अधिकारियों को विश्वास बहाली के लिए कार्रवाई करने तथा उन्हें वास्तविक जानकारी देकर उनके मिथक को दूर करने का निर्देश जारी किया, जिससे वे फर्जी खबरों तथा बदमाशों और निहित स्वार्थों द्वारा फैलाई गई गलत सूचनाओं से गुमराह न हों।”
एडवोकेट जनरल ने अदालत के समक्ष यह भी प्रार्थना की कि उक्त अभ्यास में कुछ समय लगेगा तथा अदालत को आश्वासन दिया कि वे अपने कर्तव्यों तथा दायित्वों का पालन करेंगे। इसके लिए जनता को विश्वास में लेंगे। इसके अलावा हस्तक्षेप करने वाले आवेदन पर विचार करते हुए अदालत ने राज्य को सभी सुरक्षा उपायों पर विचार करने तथा तदनुसार 3 दिसंबर, 2024 के आदेश का अनुपालन करने का निर्देश दिया। एडवोकेट ने अनुपालन के लिए छह सप्ताह का समय मांगा, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया। इसके बाद राज्य ने ट्रेलरों को उतारने तथा सामग्री को पीथमपुर में भंडारण सुविधा में रखने का निर्देश देने की मांग की।
अदालत ने आगे आदेश दिया,
“एडवोकेट जनरल ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें ट्रेलरों से सामग्री उतारने की अनुमति दी जाए। यहां यह उल्लेख करना उचित है कि दिनांक 03.12.2024 के आदेश में राज्य को भोपाल से सामग्री लेने और मानदंडों के अनुसार उसका निपटान करने का निर्देश दिया गया, इसलिए उसे उतारने के लिए किसी और आदेश की आवश्यकता नहीं है। इस न्यायालय के निर्देशानुसार उसे उतारना और उसका निपटान करना प्रतिवादी राज्य का विशेषाधिकार है।"
मामले की सुनवाई छह सप्ताह बाद की जानी है।
केस टाइटल: आलोक प्रताप सिंह (मृतक) इन रेम बनाम भारत संघ, WP 2802/2004