[धारा 19 पीसी एक्ट] अगर सीबीआई संवैधानिक अदालत के आदेश पर मामले की जांच करती है तो लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की जरूरत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि संवैधानिक न्यायालय जब सीबीआई को किसी मामले की जांच सौंपता है, और ऐसे अपराध में लोकसेवक आरोपी के रूप में सामने आता है तो धारा 19 पीसी एक्ट के तहत लोकसेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच ने कहा है कि अगर सीबीआई ने हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किसी मामले की जांच की है और किसी सरकारी/लोक सेवक के खिलाफ चार्जशीट दायर की है तो ऐसे सरकारी/लोक सेवक (सेवारत या सेवानिवृत्त) पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकारी से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत मंजूरी प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
पीठ डॉ सैयद फरीद हैदर रिजवी (एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने निचली अदालत के आदेश, जिसके तहत सीबीआई ने उसके खिलाफ दायर चार्जशीट का संज्ञान लिया गया था, को चुनौती दी था। रिजवी के खिलाफ मनरेगा स्कैम में मामला दर्ज किया गया था और गिरफ्तारी का गैर जमानती वारंट जारी किया गया था।
मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2014 के एक आदेश के अनुसार, सीबीआई ने वर्ष 2007-2008 और 2008-2009 के दरमियान मनरेगा स्कीम से संबंधित घोर अनियमितताओं, बड़े पैमाने पर हेराफेरी और सरकारी धन के दुरुपयोग के संबंध में एक नियमित मामला दर्ज किया था।
आरोपी/आवेदक संबंधित समय पर जिला विकास अधिकारी, बलरामपुर के रूप में कार्यरत था, उसे सीबीआई की चार्जशीट में नामजद किया गया था। उस पर सरकार को 9,24,159/- का नुकसान कराने का आरोप था।
सीबीआई ने 15 नवंबर, 2018 को आरोप पत्र दायर किया था। हालांकि इस बीच, आरोपी आवेदक सेवानिवृत्त हो गया। चार्जशीट दाखिल होने पर ट्रायल कोर्ट ने चार्जशीट का संज्ञान लिया और उसके खिलाफ गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया। उसी आदेश के खिलाफ आरोपी हाईकोर्ट चले गए।
निष्कर्ष
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि सीबीआई या तो राज्य सरकार की सहमति से (दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 6 के तहत जैसा जनादेश) या संवैधानिक न्यायालयों के निर्देश पर अपराध की जांच कर सकती है। हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट डीएसपीई एक्ट के वैधानिक प्रतिबंधों से बंधे नहीं हैं।
न्यायालय ने आगे कहा कि हाल के दिनों में, कई राज्यों ने सीबीआई द्वारा अपराध की जांच के लिए धारा 6 डीएसपीई अधिनियम के तहत सामान्य सहमति वापस ले ली है, हालांकि, यह भी कहा कि सहमति वापस लेने के बावजूद, संवैधानिक न्यायालय अभी भी ऐसे राज्यों में मामले की जांच सौंप सकते हैं, अगर यह पता चलता है कि राज्य पुलिस के हाथों निष्पक्ष जांच पर संदेह किया गया था।
न्यायालय ने कहा कि ऐसा हो सकता है कि एक संवैधानिक न्यायालय सीबीआई को उस राज्य में एक अपराध की जांच करने का आदेश दे, जिसने अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली है और यदि किसी लोक सेवक का नाम अभियुक्त के रूप में सामने आता है, तो राज्य पीसी एक्ट की धारा 19 के तहत अनुमति देने से इनकार कर देता है और इसलिए, राज्य सरकार से मंजूरी लेना एक निरर्थक अभ्यास होगा।
नतीजतन, अदालत ने आगे कहा कि जहां संवैधानिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश के अनुसार एक अपराध की जांच सीबीआई को सौंपी गई है और लोक सेवक ऐसे अपराध के आरोपी के रूप में सामने आता है, ऐसे लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए धारा 19 पीसी एक्ट के तहत आवश्यक होगा।
इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी गई और आवेदक को आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए आवेदन करने के लिए चार दिन का समय दिया गया।
केस टाइटलः डॉ सैयद फरीद हैदर रिजवी @ डॉ एसएफएच रिजवी बनाम एसपी/एसीबी लखनऊ के माध्यम से सीबीआई [APPLICATION U/S 482 NO. - 8292 OF 2018]
केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एबी) 511