एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित निर्णय/आदेश पर पुनर्विचार की अनुमति नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित आदेश/निर्णय पर पुनर्विचार की अनुमति नहीं है।
जस्टिस आर रघुनंदन राव की खंडपीठ ने कहा कि पुनर्विचार की शक्ति कानून का विषय है, और किसी कानून में इस प्रकार के प्रावधान के अभाव में किसी आदेश/निर्णय पर पुनर्विचार उसके गुणदोष के आधार पर नहीं की जा सकता है, जब तक कि यह कुछ प्रक्रियात्मक अनियमितता के लिए न हो।
कोर्ट ने माना कि ए एंड सी एक्ट स्पष्ट रूप से या निहितार्थ में, धारा 11 के तहत पारित किसी आदेश पर पुनर्विचार की शक्ति नहीं प्रदान नहीं करता है, इसलिए न्यायालय इस प्रकार के आदेश पर मेरिट के आधार पर पुनर्विचार नहीं कर सकता है।
तथ्य
पार्टियों ने आवेदकों के स्वामित्व वाली जमीन पर अपार्टमेंट बनाने के लिए 14 दिसंबर 2011 को एक समझौता किया। हालांकि बाद में पक्षों के बीच विवाद पैदा हो गया, जिसके बाद प्रतिवादी ने अधिनियम की धारा 11 के तहत एक आवेदन दायर किया। अदालत ने आवेदन को स्वीकार कर लिया और मध्यस्थ नियुक्त कर दिया।
पुनर्विचार का आधार
आवेदकों ने निम्नलिखित आधारों पर आदेश पर पुनर्विचार की मांग की
-प्रतिवादी के दावे सीमा बाधित हैं और पुनर्विचार आवेदक ने उसी के मुताबिक उस आशय पर आपत्तियां उठाई थीं, हालांकि, न्यायालय ने यह मानकर गलती की कि ऐसी कोई आपत्ति नहीं ली गई थी और प्रतिवादी द्वारा दायर आवेदन को अनुमति दी गई थी।
-पुनर्विचार आवेदक ने अपने जवाबी हलफनामे में विशेष रूप से विभिन्न तिथियों की ओर ध्यान दिलाया था, और भले ही स्पष्ट और विशिष्ट तर्क कि आवेदन सीमा बाधित है, उसे उठाया नहीं जा सकता है, तथ्य यह रहता कि अभिवचनों का पठन स्पष्ट रूप से दिखाता कि इस प्रकार की याचिका आशय द्वारा उठाई गई है।
-आक्षेपित आदेश का परिणाम यह है कि प्रतिवादी के दावों की सीमा के संबंध में पुनर्विचार आवेदक का आपत्ति उठाने का अधिकार खो गया है, इसलिए पुनर्विचार आवेदन की अनुमति दी जानी चाहिए।
प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधारों पर आदेश की स्थिरता पर आपत्ति जताई
-ए एंड सी एक्ट तहत कोई प्रावधान नहीं है, जो अधिनियम की धारा 11 के तहत पारित आदेश की पुनर्विचार की अनुमति देता है, इसलिए, आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।
कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने जैन स्टूडियोज लिमिटेड बनाम शिन सैटेलाइट पब्लिक कंपनी लिमिटेड, (2006) 5 SCC 501 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 137 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के तहत एक आदेश/निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार कर सकता है। हालांकि, हाईकोर्ट को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की गई है।
इसके बाद, न्यायालय ने माना कि पुनर्विचार की शक्ति एक अंतर्निहित शक्ति नहीं है, बल्कि कानून का विषय है और कानून में इस प्रकार के प्रावधान के अभाव में, किसी आदेश/निर्णय पर पुनर्विचार उसके गुणदोष के आधार पर नहीं किया जा सकता है, जब तक कि यह कुछ प्रक्रियात्मक अनियमितता के लिए न हो।
न्यायालय ने कहा कि आवेदक का मामला यह नहीं है कि न्यायालय द्वारा आक्षेपित आदेश पारित करते समय कुछ प्रक्रियात्मक अनियमितताएं की गई थी, बल्कि यह मामले के गुण-दोष के आधार पर है।
न्यायालय ने माना कि ए एंड सी एक्ट स्पष्ट रूप से या निहितार्थ से, अधिनियम की धारा 11 के तहत पारित किसी आदेश की पुनर्विचार का प्रावाधान नहीं करता है, इसलिए न्यायालय इस तरह के आदेश की योग्यता के आधार पर पुनर्विचार नहीं कर सकता है। तदनुसार, अदालत ने पुनर्विचार आवेदन को सुनवाई योग्य न होने के रूप में खारिज कर दिया।