संभावित अपराध की गुप्त सूचना पर एफआईआर दर्ज करना आवश्यक नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2020-10-10 14:00 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य [(2014) 2 SCC 1] के फैसले में निर्धारित अनुपात, जिसमें कहा गया है कि ऐसी सूचना प्राप्त होने के बाद, जिसमें संज्ञेय अपराध का खुलासा किया गया हो, स्टेशन हाउस ऑफ‌िसर एफआईआर का पंजीकरण करने के लिए बाध्य है। यह उन मामलों में लागू नहीं होगा, जिनमें किसी अधिकारी को किसी अपराध के बारे में गुप्त सूचना मिलती है, जिसे अभी घटित होना है।

न्यायालय ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत आरोपी व्यक्तियों की जमानत याचिका को खारिज करते हुए यह ‌टिप्‍पणी की।

अभियुक्त तस्लीम एनपी और अन्य को 11 जून को पुलिस ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 8 (सी), 22 (बी) और 22 (सी) के तहत गिरफ्तार किया गया था। जमानत य‌ाचिका की सुनवाई में उनकी ओर से पेश वकील ने कहा कि पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज किए बिना तैयार जब्ती पंचनामा अवैध है।

दलील को खारिज करते हुए जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार ने कहा, "ललिता कुमारी (सुप्रा) में, स्टेशन हाउस ऑफिसर की ड्यूटी पर ध्यान केंद्रित किया गया है, एक बार जब वह अपराध के बारे में जानकारी प्राप्त करता है, तो इसका मतलब है कि जानकारी में एक अपराध खुलासा होना चाहिए, जो कि पहले ही हो चुका है। और ऐसी स्थिति में, यदि अपराध संज्ञेय हो, स्टेशन हाउस ऑफिसर समय बर्बाद किए बिना एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है।"

कोर्ट ने कहा, "लेकिन गुप्त सूचना किसी अपराध के होने का खुलासा नहीं करती है, यह केवल एक अपराध, जो कि होने वाला है, के बारे में पुलिस को सचेत करती है। ऐसी सूचना प्राप्त होने के बाद पुलिस अधिकारी को अपराध को रोकने के लिए स्‍थल पर जाना होगा या परिस्थिति के अनुसार अन्य उपाय करने होंगे। इसके बाद यदि वह एक रिपोर्ट तैयार करता है, तो उसे आगे की कार्रवाई के लिए एफआईआर के रूप में माना जा सकता है।"

अभियोजन के मामले के अनुसार, पुलिस इंस्पेक्टर को विश्वसनीय सूचना मिली थी कि मकान नंबर 65, कपिला क्रॉस रोड, मारुति डेंटल कॉलेज के प‌ीछे, विनायक लेआउट, हुल‌िमावु में रहने वाले छह लोगों के पास गांजा, एमडीएमए, आनंद‌ित करने वाली गोलियां और एलएसडी स्ट्रिप्स जैसे नशीले पदार्थ रखे हुए हैं और वे उन पदार्थों को बेचने वाले हैं।

अदालत ने कहा, "कभी-कभी, पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में अपराध होते हैं। ऐसी स्थिति में, उसका पहला कर्तव्य आरोपियों को गिरफ्तार करना और सबूत इकट्ठा करना है, न कि एफआईआर दर्ज करना। मामले में पुलिस अधिकारी को एनडीपीएस एक्ट के तहत अपराध की आशंका के बारे में रिपोर्ट प्राप्त हुई हो, मुखबिर ने केवल प्रतिबंधित पदार्थों होने का संदेह किया है, उसके बारे में सच्चाई का पता लगाए बिना कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। जब्ती पंचनामा में खुलासा किया गया है कि याचिकाकर्ताओं और अन्य आरोपियों के पास प्रतिबं‌ध‌ित पदार्थ था, जिसे उन्होंने बेचने के लिए रखा था। उन्होंने पदार्थों को जब्त कर लिया और उसी की रिपोर्ट बनाई। इसमें कोई त्रुटि नहीं पाई जा सकती है। "

अदालत ने अभियुक्तों के इस तर्क को भी ठुकरा दिया कि पदार्थों को अभियुक्तों के 'सचेत' कब्जे से जब्त नहीं किया गया था।

इसमें कहा गया है कि "यह बताना आवश्यक है कि 'सचेत' शब्द किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति और किसी चीज के बारे में उसके ज्ञान से संबंधित है। इसमें शारीरिक कब्जे के गुणों को नहीं लिया जाता है। यदि एक बैग, जिसमें प्रतिबंध‌ित पदार्थ है, वह आरोपी के घर में पाया जाता है, तो एक सामान्य विवेकपूर्ण आदमी की पहली धारणा यह होगी कि बैग आरोपी का है और उसे इसकी सामग्री के बारे में पता होना चाहिए। यदि वह यह कहता है कि उसे सामग्री के बारे में पता नहीं था, तो यह सिद्ध करने की जिम्मेदारी भी उसी की होगी।"

अदालत ने यह कहते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया कि "इन याचिकाओं में याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया सामग्री है, जिससे एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 आकर्षित होती है। इसलिए, याचिकाओं को खारिज किया जाता है।"

केस टाइटल: तसलीम एनपी @ और कर्नाटक राज्य

केस नंबर: CRIMINAL PETITION No.3073 OF 2020

आदेश की तिथि: 1 अक्टूबर, 2020

कोरम: जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार

प्रतिनिध‌ित्वः एडवोकेट सोफिया, a/w एडवोकेट कमालुद्दीन (याचिकाकर्ता के लिए) एडवोकेट केपी यशोधा (प्रतिवादी के लिए)

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