संदर्भ मुआवजे की मात्रा तक सीमित; यदि बीमाकर्ता देयता पर विवाद करता है तो यह मध्यस्थता-योग्य नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि जहां केवल बीमा पॉलिसी के तहत देय मुआवजे की मात्रा से संबंधित विवाद के संदर्भ में ही मध्यस्थत खंड का प्रावधान किया गया है, बीमा कंपनी द्वारा दायर याचिका में पॉलिसी के तहत अपनी देनदारी पर किया गया विवाद, विवाद को नॉन-अर्बिट्रेबल बना देता है।
जस्टिस भारती डांगरे की पीठ ने दोहराया कि मध्यस्थता खंड की सख्ती से व्याख्या की जानी चाहिए। न्यायालय ने पाया कि पॉलिसी के तहत बीमाकर्ता की स्पष्ट देयता की स्वीकृति मध्यस्थता खंड को लागू करने के लिए अनिवार्य है, जिसके अभाव में पक्षकारों के बीच विवाद अपवादित श्रेणी के अंतर्गत आता है, जिससे मध्यस्थता खंड अप्रभावी और लागू होने में अक्षम हो जाता है।
आवेदक- मेसर्स मल्लक स्पेशलिटीज एक एक्सपोर्ट हाउस है, जिसने प्रतिवादी- न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी से बीमा पॉलिसी ली थी। भारी बारिश के कारण आवेदक की बीमित संपत्ति नष्ट हो जाने के बाद, आवेदक ने बीमा कंपनी के सक्षम प्राधिकारी के समक्ष बीमा दावा दायर किया। आवेदक द्वारा किए गए दावे को बीमा कंपनी द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद, आवेदक ने बीमा पॉलिसी में निहित मध्यस्थता खंड का आह्वान किया और मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया।
निष्कर्ष
सर्वेयर द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार करते हुए, कोर्ट ने कहा कि सर्वेयर ने निष्कर्ष निकाला था कि जल जमाव की घटना, जिसने कथित तौर पर आवेदक के सामान को नष्ट कर दिया था, सच थी। हालांकि, सर्वेयर ने राय दी थी कि आवेदक/बीमित व्यक्ति ने निस्तारण निपटान की अनुमति देने और सहयोग करने में विफल रहकर नीति की शर्तों का उल्लंघन किया; इसके अलावा, आवेदक ने अपनी दावा राशि को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया ।
सर्वेयर ने अपने निष्कर्षों के आधार पर बीमा कंपनी को आवेदक के बीमा दावे को खारिज करने की सिफारिश की थी।
न्यायालय ने पाया कि हालांकि सर्वेयर की रिपोर्ट बीमा कंपनी के लिए बाध्यकारी नहीं है, फिर भी बीमा कंपनी ने रिपोर्ट में की गई टिप्पणियों के आधार पर आवेदक के दावे को खारिज कर दिया। इस प्रकार, पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि बीमा कंपनी ने पॉलिसी के तहत देय मुआवजे की मात्रा पर कभी विवाद नहीं किया, बल्कि उसने पॉलिसी के तहत अपनी देनदारी पर विवाद किया। इसलिए, अदालत ने माना कि पार्टियों के बीच विवाद गैर-मध्यस्थता योग्य था।
पीठ ने कहा कि यह निर्धारित करने के लिए कि कोई विशेष खंड एक मध्यस्थता खंड है या नहीं, यह पार्टियों की मंशा है जिसे समझा जाना है।
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि चूंकि बीमा कंपनी ने विवाद किया था और पॉलिसी के तहत अपनी देयता को स्वीकार नहीं किया था, इसलिए विवाद मध्यस्थता योग्य नहीं था। इस तरह कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी।
केस टाइटल: एम/एस मल्लक स्पेशलिटीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड।