असहायों के लिए वास्तविक न्याय की आवश्यकताः बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेलवे क्लेम और अपीलों की अधिक संख्या को देखते हुए लोक अदालतों की मांग की

Update: 2021-12-27 06:36 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल (आरसीटी) के विभिन्न क्षेत्रों में लोक अदालतों के गठन की मांग की ताकि ट्रिब्यूनल के समक्ष बड़ी संख्या में लंबित मामलों में "जरूरतमंद और असहाय वादियों को न्याय प्रदान किया जा सके।"

जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण ने 23 दिसंबर को आदेश पारित करते हुए कहा,

"यह सामान्य बात है कि रेलवे दुर्घटना में अधिकांश पीड़ित/मृत्यु मुख्य रूप से आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि वाले समाज के सामाजिक रूप से वंचित तबके से हैं।"

अदालत ने यह भी कहा कि न्याय हासिल करने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए "जो समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तत्वों से वंचित प्रतीत होता है, कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 संसद द्वारा अधिनियमित किया गया" का उपयोग किया जाना चाहिए।

न्यायालय को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 30 सितंबर, 2020 तक विभिन्न आरसीटी के समक्ष लंबित मामलों की कुल संख्या 26,395 थी। विभिन्न चरणों में हाईकोर्ट के समक्ष लंबित अपीलों की संख्या 577 थी। इनमें सबसे पुराना दायर मामला वर्ष 1995 में 25 साल पहले किया गया था।

अदालत ने ऊपर उल्लिखित लंबित मामलों के ब्योरे से अवगत कराने के बाद टिप्पणियां की।

जस्टिस चव्हाण के समक्ष रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन, मुंबई के अध्यक्ष एडवोकेट जी जे मोहन राव ने इस मुद्दे का उल्लेख किया।

राव ने प्रस्तुत किया,

"समय-समय पर लोक अदालतें आयोजित करना समीचीन है ताकि पर्याप्त संख्या में अपीलों का निपटारा किया जा सके। वादियों को वास्तविक अर्थों में न्याय दिया जा सके।"

इसके सात ही राव ने अदालत से संबंधित कानूनी सेवा प्राधिकरण को उचित निर्देश जारी करने का अनुरोध किया।

आरसीटी, मुंबई के समक्ष प्रैक्टिस करने वाले एक अन्य वकील बालासाहेब देशमुख ने दावा मामलों के विषय पर रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा प्रधान मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधकों, अखिल भारतीय रेलवे को दिनांक 16 नवंबर, 2020 को अदालत के संज्ञान में लाया। इन मामलों को राष्ट्रीय लोक अदालतों के माध्यम से निपटाया जाना है।

रिपोर्ट में आरसीटी के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद आरसीटी के समक्ष दावा मामलों की उच्च लम्बितता पर प्रकाश डाला गया। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि कैसे दावा मामलों के लंबे समय से लंबित होने के कारण रेलवे ब्याज के रूप में भारी खर्च कर रहा है। रेलवे के खजाने को हो रहे इस नुकसान को दावा मामलों के शीघ्र निपटान के माध्यम से टाला जा सकता है।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि आरसीटी के पत्रों के जवाब में रेलवे बोर्ड ने तीन मार्च, 2018 को एक पत्र में जोनल रेलवे के सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किए थे। इसमें लोक अदालत के माध्यम से निपटाए जा सकने वाले मामलों की श्रेणी बताई गई थी।

पत्र में कहा गया,

"इसके बाद मुंबई, लखनऊ, भोपाल, अहमदाबाद और गोरखपुर खंडपीठ लोक अदालतों के माध्यम से मामलों का निपटान करने में सक्षम थे। हालांकि, सभी क्षेत्रीय रेलवे ने मामले को बल के साथ आगे नहीं बढ़ाया और विषय को उतना ध्यान नहीं मिला। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।"

पत्र में कहा गया कि रेलवे दावा न्यायाधिकरण के अध्यक्ष, जस्टिस के एस अहलूवालिया ने इच्छा व्यक्त की कि लंबित मामलों को कम करने के लिए उस सिस्टम के माध्यम से तय किए जा सकने वाले मामलों के निपटान के लिए जल्द से जल्द लोक अदालतों का आयोजन किया जाए। दिशानिर्देश निर्धारित करने के उद्देश्य से एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया और समिति की रिपोर्ट को आरसीटी अध्यक्ष आरसीटी द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।

जस्टिस चव्हाण ने अदालत के समक्ष लाए गए सभी विवरणों पर ध्यान देने के बाद निर्देश दिया,

"उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और इस न्यायालय में अपील की लंबितता को देखते हुए रजिस्ट्रार (न्यायिक) को इस संबंध में आवश्यक निर्देशों के लिए माननीय कार्यकारी अध्यक्ष महाराष्ट्र राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण, मुंबई के समक्ष यह आदेश देने का निर्देश दिया जाता है।

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