''बलात्कार सिर्फ ज़बरदस्ती संभोग नहीं है, इसका मतलब सब कुछ नष्ट हो जाना है''; बाॅम्बे हाईकोर्ट ने POCSO के तहत आरोपी शादीशुदा व्यक्ति को ज़मानत देने से इनकार किया
बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते एक 17 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया। पीड़िता आरोपी के बिजनेस पार्टनर की बेटी थी। इस तथ्य को देखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि, ''बलात्कार सिर्फ ज़बरदस्ती संभोग नहीं है, इसका मतलब बस जाना और सब कुछ नष्ट करना है।''
न्यायमूर्ति भारती डांगरे इस मामले में 34 वर्षीय अमित पाटिल की तरफ से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उसके खिलाफ अभिरुचि पुलिस स्टेशन, सिंहगढ़ रोड, पुणे में आईपीसी की धारा 376, 354-डी व 506 के तहत पीड़ित लड़की की शिकायत पर मुकदमा दर्ज किया गया था। चूंकि पीड़िता नाबालिग थी, इसलिए पाॅक्सो अधिनियम (Protection of Children from the Sexual Offences Act, 2012) की धारा 3, 4, 11 और 12 के प्रावधानों के तहत भी केस बनाया गया था।
पीड़ित के अनुसार, वह पुणे के एक कॉलेज में 11 वीं कक्षा में पढ़ रही थी। वह आवेदक को जानती थी क्योंकि वह उनका एक पारिवारिक मित्र है और उसके पिता का बिजनेस पार्टनर भी। इसलिए पीड़ित लड़की आवेदक से लगभग ढाई साल से परिचित थी। पीड़िता ने आरोप लगाया गया था कि अक्टूबर, 2019 से आवेदक ने उसे अपने व्हाट्सएप पर मैसेज करना शुरू कर दिया था। साथ ही उसे बताया था कि वह उसको पसंद करता है और उसके साथ यौन संबंध भी बनाना चाहता है। परंतु पीड़िता ने उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
चूंकि आवेदक एक पारिवारिक मित्र था, इसलिए पीड़िता ने किसी को यह बात नहीं बताई कि आवेदक उसे अश्लील मैसेज भेज रहा है। 6 दिसंबर, 2019 को, आवेदक ने उसे एक मैसेज भेजा, जिसमें उसने उसके साथ कुछ महत्वपूर्ण पारिवारिक मामलों पर चर्चा करने की बात कही थी। साथ ही उसे अगले दिन मिलने के लिए कहा था। अगले दिन, जब वह अपनी बस के आने का इंतजार कर रही थी, तभी आवेदक दो पहिया वाहन पर वहां आया और पीड़िता से कहा कि वह उसके साथ चले। इसके बाद आवेदक उसे एक नजदीकी फार्महाउस पर ले गया और एक भावनात्मक अपील करते हुए उसे धमकी दी कि अगर वह सहमत नहीं हुई तो वह आत्महत्या कर लेगा। इस तरह पीड़िता को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया था। इस तरह की घटना दो बार और हुई। आखिरी घटना 1 जनवरी, 2020 की थी।
अंत में, 12 जनवरी को पीड़ित लड़की ने अपने माता-पिता को इस घटना के बारे में बताया और 30 जनवरी, 2020 को रिपोर्ट दर्ज करवाई गई।
आवेदक अभियुक्त की ओर से अधिवक्ता वेंकटेश शास्त्री पेश हुए और दलील दी कि पीड़िता की उम्र 17 वर्ष है। यद्यपि वह कानूनी रूप से बालिग नहीं है, लेकिन उसने इतनी परिपक्वता प्राप्त कर ली थी कि वह अपने कार्य के परिणामों को समझ सकें। उसने आवेदक के साथ अपनी मर्जी से रिश्ता बनाया था।
विभिन्न चैट मैसेज की तरफ इशारा करते हुए एडवोकेट शास्त्री ने कहा कि इन मैसेज से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि आरोपी और पीड़ित लड़की के बीच प्रेम संबंध थे। इसके अलावा, वह अपने इरादों के प्रति सचेत थी। उन्होंने हालांकि इस बात से इनकार किया कि वह पीड़िता पर हुए किसी भी यौन हमले के लिए जिम्मेदार हैै।
पीड़ित लड़की के बयान के अनुसार, उसे तीन बार जबरन यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया था। एडवोकेट शास्त्री ने तर्क किया कि फिर वह इतने लंबे समय तक चुप क्यों रही? उन्होंने यह भी तर्क दिया कि प्राथमिकी दर्ज कराने में 18 दिन की देरी हुई है और जिसका कोई उचित कारण नहीं बताया गया है।
इस पर कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि-
''वकील का यह तर्क काफी अजीब है कि पीड़िता आवेदक के इरादों के बारे में जानती थी और उसके बावजूद भी आवेदक ने जब भी उससे आग्रह किया,वह आवेदक के साथ चली गई। पीड़िता अभी एक किशोरी है और इस उम्र में एक हिचकिचाहट होती है। ऐसे में उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह अपने पापा के दोस्त के आग्रह को सीधे ठुकरा देती।''
एपीपी एमएम देशमुख ने की दलीलें समाप्त होने के बाद, जस्टिस डांगरे ने कहा-
''हालांकि एक बात स्पष्ट है कि घटना के समय पीड़िता किशोरी थी और आवेदक एक परिपक्व विवाहित व्यक्ति, जिसकी उम्र 34 वर्ष थी, जिसके दो बच्चे भी हैं। ऐसे में अपने बिजनेस पार्टनर की नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाने का पूरा प्रकरण, अपने आप में उसके इरादों को बयां कर रहा है। आवेदक के वकील की दलीलों को देखने से पता चलता है कि दोनों के बीच एक प्रेम संबंध था या इस संबंध के लिए पीड़ित लड़की ने पहल की थी। अगर ऐसा कुछ था तो भी यह आवेदक की ड्यूटी बनती थी कि वह पीड़िता के माता-पिता को इस बारे में अवगत कराता। लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया और अब दलील दे दी गई कि उन दोनों के बीच प्रेम संबंध था।''
इसके बाद, अदालत ने नाबालिग पीड़ित लड़की की मेडिकल रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि-
''ससून जनरल अस्पताल की रिपोर्ट के अनुसार 30 जनवरी, 2020 को पीड़िता की जांच की गई थी। इस रिपोर्ट में पीड़िता की सारी हिस्ट्री ,नैदानिक परीक्षण निष्कर्ष और प्रयोगशाला की रिपोर्ट को देखने के बाद कहा गया है कि वर्तमान में बिना किसी ताजा शारीरिक चोट के वजाइनल पेनिट्रेशन पाया गया है। रिकॉर्ड पर उक्त चिकित्सीय रिपोर्ट होने के बावजूद भी आवेदक के वकील ने दलील दी है कि वह इस तरह के यौन उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार नहीं है।''
जब कोर्ट ने यह कहा कि ऐसा कोई स्पष्ट कारण नहीं है,जिसके आधार पर पीड़ित लड़की विशेष रूप से आवेदक को फंसाना चाहती है,तो इस पर आवेदक के वकील ने दलील दी कि पीड़ित लड़की का पिता ऐसा करवा रहा है क्योंकि आवेदक उसका बिजनेस पार्टनर है और अब वह इस स्थिति का लाभ उठाना चाहता है।
अदालत ने कहा, ''यह तर्क ध्यान देने योग्य नहीं है क्योंकि इस दलील का समर्थन करने वाली कोई सामग्री पेश नहीं की गई है। यह दलील सिर्फ आवेदक का एक अनुमान है और पीड़िता पर आरोप लगाने के एक उदाहरण के अलावा कुछ नहीं है।''
न्यायमूर्ति डांगरे ने जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि आवेदक ने पीड़िता के साथ बने विश्वसनीय संबंध का लाभ उठाया है और उसे वेदनीय या कमजोर स्थिति में ला दिया है।
अंत में,कोर्ट ने कहा कि-
''बलात्कार'' केवल एक जबरन संभोग नहीं है, इसका मतलब है कि बस जाना और सब कुछ नष्ट कर देना। आवेदक के खिलाफ अभी मुकदमा चलना है,इसलिए वह जमानत पर रिहाई की मांग कर रहा है। परंतु उसके खिलाफ लगाए गए आरोप की गंभीरता और पीड़िता की गवाही, रिकॉर्ड पर आई सामग्री के आधार पर आवेदक के वकील की तरफ से दी गई दलीलों के अनुसार बनी उपरोक्त स्थिति को देखते हुए कोर्ट आवेदक को जमानत पर रिहा करने के लिए इच्छुक नहीं है।''
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