अनुच्छेद 21 के तहत बलात्कार, पीड़िता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन : गुवाहाटी हाईकोर्ट
संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बलात्कार, पीड़िता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। यह कहते हुए गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक बीस वर्षीय लड़की से बलात्कार करने के मामले में दोषी करार दिए एक व्यक्ति की तरफ से दायर अपील को खारिज कर दिया है।
न्यायमूर्ति रूमी कुमारी फुकन ने कहा कि बलात्कार महिला के श्रेष्ठ सम्मान के लिए एक गंभीर आघात है और इसी तरह पूरे समाज के खिलाफ भी एक अपराध है।
नासीरउद्दीन अली को आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया गया था और ट्रायल कोर्ट ने उसे 9 (नौ) साल की अवधि के लिए सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। लड़की दिहाड़ी पर एक निजी अस्पताल में काम करती थी। अभियोजन पक्ष का कहना यह था कि 26 नवम्बर 2009 की रात लगभग 10 बजे पीड़िता डिगबोई चाराली बाजार से पैदल अपने घर जाने के लिए निकली थी। जब वह डिगबोई क्लब के पास पहुंची तो आरोपी उसे जबरदस्ती पास के स्विमिंग पूल के बाथरूम में ले गया और उसके साथ बलात्कार किया।
हाईकोर्ट के समक्ष आरोपी ने दलील दी थी कि पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर उसे सजा देना कानूनन उचित नहीं है।
रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि पीड़िता के अकेले बयान को घटना के वास्तविक बयान के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। जिसे बचाव पक्ष के बयान के साथ ही रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य साक्ष्यों का पूरा समर्थन प्राप्त है। यह भी देखा गया कि पीड़िता की अभियुक्त व्यक्ति के साथ कोई दुश्मनी/विवाद नहीं था। वहीं इस मामले में समर्थन करने वाले सबूत भी मौजूद हैं।
न्यायमूर्ति रूमी कुमारी फुकन ने सजा के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि
"इस तरह का अपराध होते ही एक महिला की पवित्रता भंग हो जाती है। जबकि सभ्य समाज में, सम्मान या प्रतिष्ठा एक बुनियादी अधिकार है। समाज का कोई भी सदस्य इस विचार की कल्पना नहीं कर सकता है कि वह एक महिला के सम्मान में एक खोखलापन पैदा कर सकता है। ऐसी सोच न केवल निराशाजनक है, बल्कि निंदनीय भी है। युवा उत्तेजना और क्षणिक आनंद पाने के लिए एक व्यक्ति की ओर से किया गया यह प्रयास, पीड़ित के पूरे शरीर और दिमाग पर विनाशकारी प्रभाव ड़ालता है।"
यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस तरह के अपराध एक महिला की गरिमा को कम करते हैं और उसकी प्रतिष्ठा को खतरे में डालते हैं। न्यायालय इस बात से अवगत हैं कि बलात्कार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले पीड़िता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। वहीं सबसे घृणित अपराध होने के नाते, बलात्कार एक महिला के श्रेष्ठ सम्मान के लिए एक गंभीर आघात हैै और इसी तरह पूरे समाज के खिलाफ भी एक अपराध है।
आरोपी की तरफ से दलील दी गई थी कि चिकित्सा साक्ष्य के अनुसार, पीड़िता के शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं था। इस पर पीठ ने कहा कि बलात्कार किया गया है या नहीं, यह तय करने के लिए चोट एक अनिवार्य शर्त नहीं है। पीड़िता का आचरण उल्लेखनीय है, जिसने घटना के तुरंत बाद आस-पास के लोगों को, पुलिस को व डिगबोई क्लब के अधिकारियों को इस घटना के बारे में बता दिया था। बिना किसी देरी के घटना के अगले दिन ही जीडी एंट्री और एफआईआर दर्ज कर दी गई थी। वहीं पीड़िता के बयान में भी किसी तरह की भिन्नता नहीं थी।
हालांकि, अदालत ने इस तथ्य पर विचार करते हुए सजा को सात साल के कारावास में तब्दील कर दिया कि आरोपी व्यक्ति का अपना परिवार है,जिसमें पांच बच्चे भी हैं। वहीं जिस दिन से उसे सजा हुई है,तब से वह जेल में बंद है।
केस का विवरण-
केस का नाम-नासीर उद्दीन अली बनाम असम राज्य
केस नंबर-सीआरएल ए 227/2016
कोरम- जस्टिस रूमी कुमारी फुकन
प्रतिनिधित्व- एडवोकेट एन जमान, एडीशनल पीपी एन के कलिता